Saturday, May 4, 2024
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क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह: क्रांतिकारी पार्टी के संस्थापक

नेहा राठौर

जिंदगी जिंदा-दिली को जान ऐ रोशन, वरना कितने ही यहां रोज़ फ़ना होते है। आपने यह शेर तो सुना होगा। यह वही शेर है जिसे क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह ने मरने से पहले अपने आख़िरी पत्र में लिखा था। आज ही के दिन यानी 22 जनवरी 1892 को भारतीय स्वतंत्रता सेनानी श्री रोशन सिंह या कहे की क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह का जन्म हुआ था। इनका जन्म का जन्म उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जनपद में फतेहगंज से करीब 10 किलोमीटर दूर स्थित गांव नबादा में हुआ था। उनकी माता का नाम कौशल्या देवी जी और पिता का नाम ठाकुर जंगी सिंह जी था। पूरा परिवार आर्य समाज से प्रेरित था।

क्रांतिकारी पार्टी का स्थापना

रोशन अपने पांचों भाई बहनों में सबसे बड़े थे। गांधी द्वारा चलाया गया असहयोग आंदोलन में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर और बरेली जिले के ग्रामीण क्षेत्र ने अद्भुत योगदान दिया था। आंदोलन तक ठीक था लेकिन सिर्फ यही नहीं, बरेली में जो गोली काण्ड हुआ था उसमें एक पुलिस वाले की रायफल छीनकर जबर्दस्त फ़ायरिंग शुरू कर दी थी। जिस वजह से पुलिस वालों को वापस भागना पड़ा और इसी लिए रोशन सिंह को सेण्ट्रल जेल बरेली में दो साल कैद की सजा दी गई थी। ठाकुर साहब का निशान बहुत पक्का था। उन्हें निशाने बाजी बहुत अच्छे से आती थी। जेल में उनकी कई लोगों से मुलाकात हुई जैसे पण्डित राजेन्द्र नाथ लाहिडी़, श्री रामदुलारे त्रिवेदी व श्री सुरेशचन्द्र भट्टाचार्य। ठाकुर साहब ने इन सब के साथ जेल से बाहर आने के बाद श्री रामप्रसाद बिसमिल की बात की और राष्ट्रीय स्तर पर हथियारों के साथ एक क्रांतिकारी पार्टी बनाने का निर्णय लिया।

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पहली डकैती उर्फ एक्शन

गया में कांग्रेस पार्टी विचारों के मतभेदों के चलते दो भागों में बट गई और श्री मोतीलाल नेहरु और श्री देश बंधु चितरंजन दास ने अपनी अलग अलग स्वराज पार्टी बना ली थी। इन दोनों पार्टियों के पास पैसे की कमी नहीं थी, लेकिन क्रांतिकारी पार्टी को अपनी पार्टी को बनाने के लिए पैसे की जरूरत थी उनके पास पैसा छोड़कर संविधान, विचारधारा और दृष्टि सब था। इसलिए उन्होंने इस कमी को पूरा करने के लिए डकैती का रास्ता निकाला, जिसे इन्होंने एक्शन का नाम दिया। इन्होंने पहली डकैती 25 दिसम्बर 1924 में पीलीभीत जिले के गांव बमरौली में एक खण्डसारी व सूदखोर बलदेव प्रसाद के यहां डाली थी। इस डकैती में 4000 रुपये और कुछ सोने-चाँदी के जेवरात क्रांतिकारियों के हाथ लगे। लेकिन वहीं एक आदमी के चिल्लाने पर ठाकुर साहब ने उसे गोली मार दी। बस वही गलती हो गई जिस वजह से उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।

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काकोरी काण्ड

अगली बार फिर 1 अगस्त 1925 को डकैती हुई इसमें काकोरी स्टेशन के पास सरकारी ख़ज़ाना लूट लिया गया था। लेकिन इस बार इस डकैती में ठाकुर साहब शामिल नहीं थे लेकिन उन्हीं की उम्र का एक व्यक्ति केशव चक्रवर्ती शामिल था। जो बंगाल की अनुशील समिति के सदस्य थे, उनके बदले श्री रोशन सिंह को पकड़ लिया गया क्योंकि पुलिस पहले से ही इन्हें बमरौली डकैती मामले में ढूंढ रही थी और ठाकुर साहब के खिलाफ सारे सबुत मिल गए थे। इस लिए पुलिस ने केशव चंद को ढूंढा ही नहीं और अपनी सारी ताकत रोशन सिंह को फांसी की सजा दिलाने में लगा दी। CID के कप्तान खान बहादुर तसद्दुक हुसैन श्री राम प्रसाद बिस्मिल पर बार-बार यह दबाव डालते रहे कि श्री बिस्मिल किसी भी तरह अपने दल का सम्बन्ध बंगाल के अनुशीलन दल या रूस की बोल्शेविक पार्टी से बता दें, लेकिन श्री बिस्मिल टस से मस न हुए और आखिरकार श्री रोशन सिंह को सजाये-मौत की सजा दी गयी। उन्होंने फांसी से पहले नैनी जेल में रखा गया था, जहां उन्होंने फांसी से पहले अपने मित्र को एक पत्र लिखा था और उसके अगले दिन ही उन्हें 19 दिसम्बर 1927 में फांसी दी गई।

जहां ठाकुर साहब की मृत्यु हुई आज वहां स्वरूप रानी अस्पताल बना हुआ है, जिसके मुख्य गेट के पास उनकी मूर्ति स्थापित की गई है, जिसके नीचे उनके द्वारा आख़िरी पत्र मे लिखा गया शेर को अंकित किया गया है।  

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