G-20 Summit : वियतनाम पहुंचते ही बाइडेन ने दूर कर दी मोदी की गलतफहमी!

मोदी सोच रहे थे कि जो वह चाहेंगे वह बाइडेन से बुलवाएंगे, खुद तो मीडिया को फेस करते ही नहीं बाइडेन को भी मीडिया से रूबरू नहीं होने दिया मोदी ने 

चरण सिंह राजपूत 
जी-20 शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडेन को लेकर ऐसा शो कर रहे थे कि जैसे बाइडेन अब सब कुछ उनके अनुसार ही करेंगे। बाइडेन से गलबहिया कर वह यह दर्शाने की कोशिश कर रहे थे कि उनकी वजह से दुनिया का सबसे ताकतवर देश भारत के साथ है। ऐसा ही उन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प के समय भी किया था। अमेरिका में ट्रंप का चुनाव प्रचार करने लगे थे। वहां उन्होंने अबकी बार ट्रम्प सरकार का नारा लगा दिया था। क्या बाइडेन यह सब भूल गए होंगे ?
मोदी ने इस सम्मेलन में यह दिखाने की कोशिश की कि उन्होंने अमेरिका को पूरी तरह से साध लिया है। यह वजह रही कि वह देश के नेताओं से बाइडेन से मिलवा रहे थे।

मोदी ने कार्यक्रम में बाइडेन को सबसे अधिक तवज्जो दी। मोदी यह भूल रहे थे कि अमेरिका कभी न तो भारत का हुआ है और न होगा। वह अमेरिका के चक्कर में भारत के पुराने दोस्त रूस को और खो देंगे। पीएम मोदी खुद तो मीडिया को फेस करते ही नहीं उन्होंने विदेशी मीडिया से बात करने से जो बाइडेन को भी रोक लिया। वह समझ रहे होंगे कि उन्होंने ऐसा करके बहुत बड़ा काम कर दिया पर अमेरिका ठहरा अमेरिका। मोदी को आशंका थी कि विदेशी मीडिया मणिपुर हिंसा और अल्पसंख्यक उत्पीड़न का मामला न उठा दे।
बाइडेन कहां चूकने वाले थे। जैसे ही दिल्ली से वियतनाम पहुँचे तो सबसे पहले उन्होंने प्रेस कॉन्फ़्रेंस की और कहा कि उन्होंने मोदी जी से मानवाधिकार, प्रेस की स्वतंत्रता और सामुदायिक भेदभाव का मुद्दा उठाया! दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन चाहते थे कि एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस हो। अखबारों में खबर छपी थी कि अमेरिका या व्हाइट हाउस ने इसके लिए ‘सर्वश्रेष्ठ’ और ‘दुस्साहसिक’ प्रयास किये पर नाकाम रहा। आखिरकार यह एलान कर दिया गया था कि वे वियतनाम पहुंच कर प्रेस कांफ्रेंस करेंगे। प्रेस कांफ्रेंस हुई भी। वहां उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ उन्होंने मानवाधिकार और स्वतंत्र प्रेस के महत्व का मुद्दा उठाया था।
खबरों के अनुसार, सम्मेलन खत्म होने से पहले ही वे वियतनाम रवाना हो गये और हनोई में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में यह टिप्पणी की। बीबीसी की एक खबर के अनुसार, आलोचकों का कहना है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिन्दू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने के बाद से अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों पर हमले बढ़ गये हैं। उनकी सरकार ने इससे इनकार किया है।

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