Saturday, May 4, 2024
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मोदी सरकार की नाक में दम करने वाले आंदोलन

नेहा राठौर

केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में पिछले 75 दिनों से किसानों आंदोलन नें गणतंत्र दिवस पर ट्रेक्टर परेड की आड़ में लाल किले पर जो हिंसा की उसकी चौतरफा निंदा हुई। हालांकि मोदी सरकार के खिलाफ पहले भी कई आंदोलन हो चुके हैं।  बीजेपी की अगुवाई वाली राजग सरकार के सत्ता में आने के बाद कई बार इस सरकार को विरोध का सामना करना पड़ा है। हर बार विरोध शांति से शुरू होता है और अचानक से आक्रामक होकर हिंसा में परिवर्तित हो जाता है। इन विरोध प्रदर्शनों में कई बार कई लोगों की जान तक चली जाती है। स्थानीय लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। जब भी कहीं सरकार के विरोध में आंदोलन होता है तब उसमें कई विपक्षी पार्टियां भी अपने हाथ सेंकने लगती हैं। जो कहीं न कहीं एक छोटी सी चिंगारी को आग में बदलने का काम करती है। सिर्फ विपक्षी पार्टियां ही नहीं इस आग में हाथ सेंकने वाले और भी कई लोग होते हैं। जैसे किसान आंदोलन में अंतराष्ट्रीय हस्तियां।

किसान आंदोलन ( 2020-2021)

27 नवंबर 2020 से तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की जिद्द पर अड़े किसान पिछले दो महीनों से दिल्ली की सीमा पर आंदोलन कर रहे थे। इस आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार और किसान नेताओं के बीच कुल 11 बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन कोई हल नहीं निकला। सरकार ने किसानों को कानूनों में संशोधन करने का आश्वासन दिया है, लेकिन किसानों ने कहा कि वह तब तक घर नहीं जाएंगे जब तक सरकार इन कानूनों को वापस नहीं ले लेती। 26 जनवरी 2021 को आंदोलन ने हिंसक रूप धारण कर लाल किले पर किसानों और निशान साहिब का झंड़ा लगा दिया। इस हिंसा में 400 पुलिसकर्मी घायल हुए और दो किसानों की मौत हो गई।  

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नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ आंदोलन (2019-2020)

सरकार द्वारा 2019 में लाया गया नागरिकता संशोधन कानून के मुताबिक पड़ोसी देशों से शरण के लिए भारत आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान था। इस कानून में मुस्लिम समुदाय को शामिल नहीं किया गया था। इसलिए कानून के खिलाफ मुस्लिम समुदाय ने आंदोलन शुरू किया था। मुस्लिम समुदाय का मानना था कि मोदी सरकार द्वारा लाया गया ये कानून संविधान के खिलाफ है और अल्पसंख्यकों के खिलाफ माहौल बनाता है।

धीरे—धीरे इस आंदोलन ने दंगे का रूप ले लिया था। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र सहित उत्तर भारत के शहरों में आंदोलन तेज हो गया था। दिल्ली के जामिया नगर इलाके में इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन ने 15 दिसंबर को हिंसक रूप ले लिया, इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने बस, बाइक, गाड़ियों में आग लगा दी, जिससे हालात बिगड़ते चले गए। दिल्ली पुलिस ने भी जामिया कैंपस में घुसकर छात्रों पर जमकर लाठियां बरसाईं। वहीं, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी पुलिस और छात्रों के बीच झड़प हुई। इसके बाद यूपी प्रशासन ने कई जिलों में इंटरनेट बंद कर दिया गया था।

कश्मीर विरोध प्रदर्शन (2019)

5 अगस्त 2019 को कश्मीर से धारा 370 हटाने और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद कश्मीर वासियों ने विरोध जताया, लेकिन हिंसा की आशंका के वजह से उन्हें कोई आंदोलन या कोई प्रदर्शन नहीं करने दिया गया। हिंसा के डर से धारा 370 हटाने के बाद जम्मू कश्मीर में दो पूर्व मुख्य मंत्रियों और विपक्ष के कई नेताओं को हाउस अरेस्ट कर दिया गया था और वहां इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई थी। संसद में धारा को हटाने को लेकर गुलाम नबी आजाद ने कहा कि ‘आज भाजपा ने संविधान की हत्या कर दी है’ हिंसा ना हो इसलिए देशभर में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों पर भी विशेष ध्यान देने के आदेश दिया गए थे।

प्रो-जल्लीकट्टू विरोध, तमिलनाडु, 2017

इस आंदोलन की शुरुआत तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने पेटा (एक पशु-अधिकार संगठन) द्वारा पशु क्रूरता के बारे में वर्षो की शिकायतों के बाद पारंपरिक बुलटैमिंग खेल जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था, इस प्रतिबंध का तमिलनाडु के लोगों ने विरोध किया था। इसपर प्रदर्शनकारियों ने कहा कि खेल उनकी सांस्कृतिक पहचान का केंद्र है। यह विरोध प्रदर्शन तब हिंसक हो गया, जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को बाहर निकालने की कोशिश की। विरोध प्रदर्शन में एकजुटता दिखाने के लिए चेन्नई के मरीन बीच के पास लगभग दो लाख लोग सड़क पर आ गए। विरोध को देखते हुए 23 जनवरी को तमिलनाडु सरकार ने जल्लीकट्टू को वैध कर दिया और पीसीए (पशु क्रूरता निवारण अधिनियम) 1960 कानून में संशोधन के लिए एक विधेयक पारित किया गया।

जेएनयू विरोध(JNU) (2016)

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों ने 2001 में संसद पर हमले की साजिश रचने वाले एक कश्मीरी अलगाववादी, अफ़ज़ल गुरू की 2013 में होने वाली फांसी की सजा के विरोध में प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन में विभिन्न छात्र समूहों के बीच संघर्ष हुआ। इस संघर्ष के चार दिन बाद ही जेएनयू के छात्रों के असंगठित अध्यक्ष कन्हैया कुमार को पुलिस ने गिरफ्तार कर, उन पर देशद्रोह का मुकदमा दारयर किया गया था। इस के बाद जेएनयू के उमर खालिद के साथ और दो छात्रों को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। इस संघर्ष को लेकर जेएनयू अधिकारियों ने जांच की और 21 छात्रों के खिलाफ कार्रवाई की थी। इस कार्रवाई में कई छात्रों पर जुर्माना भी लगाया गया। फरवरी 2016 में इस का विरोध करने के लिए छात्र अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। हड़ताल को देखते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय की कार्रवाई को निलंबित कर दिया। इसके बाद छात्रों ने हड़ताल समाप्त कर दी।

पाटीदार आरक्षण आंदोलन (2015)

जलाई 2015 में पाटीदार समुदाय के युवाओं ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए शिक्षा और नौकरी में आरक्षण की मांग करते हुए (गुजरात) राज्य भर में सार्वजनिक प्रदर्शन किए। युवाओं ने हार्दिक पटेल की अध्यक्षता में सार्वजनिक प्रदर्शन 22 जुलाई को मेहसाणा में आयोजित किया। 23 जुलाई को विसनगर में प्रदर्शन हिंसक हो गया। हिंसा में आंदोलनकारियों ने वाहनों में आग लगा दी और भारतीय जनता पार्टी के विधायक, ऋषीकेश पटेल के कार्यालय में तोड़फोड़ भी की।

25 अगस्त को अहमदाबाद के जीएमडीसी मैदान में भी आरक्षण मांग रहा पटेल समुदाय हिंसक हो गया। प्रदर्शन के लिए पटेल समुदाय के 18 लाख लोग अहमदाबाद में थे। माहौल देखते हुए पुलिस ने हार्दिक पटेल को हिरासत में ले लिया था, लेकिन इसके बाद माहौल और बिगड़ता चला गया। इस वजह से पुलिस को हार्दिक को छोड़ना पड़ा। लेकिन तब तक पटेल समुदाय के लोग अहमदाबाद व सूरत समेत 12 से ज्यादा शहरों में सड़को पर उतर चुके थे। आंदोलनकारियों ने तोड़फोड़ के साथ सवा सौ गाड़ियों मे आग लगा दी और 16 थाने जला दिए। ट्रैन की पटरियां भी उखाड़ दी। पुलिस ने रातों रात अहमदाबाद, सूरत, मेहसाणा, ऊंझा, विसनगर में कर्फ्यू लगा दिया था। हार्दिक पटेल, लालजी पटेल और के. डी. शेलडीया जैसे आंदोलनकारियों की तरफ से गुजरात बंद की घोषणा की गयी थी, जिसके बाद स्कूल और कॉलेजों की छुट्टी कर अनेक जिलों की इंटरनेट सेवा बंद कर दी गयी थी। इससे पहले भी कई बार प्रदर्शन हुए, जिन्होंने हिंसा का रूप ले लिया था।

रोहित वेमुला कांड (2015)

यह प्रदर्शन हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के होस्टल में एक रिसर्च स्कॉलर रोहित वेहमुला का आत्महत्या से शुरू हुआ। वेमुला एक दलित समाज से था। इस घटना के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। इस घटना के बाद पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए लखनऊ में बाबा भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में दलित छात्रों ने मुर्दाबाद और वापस जाओ के नारे लगाए थे। इस कारण उन्हें अपना भाषण रोकना पड़ा था। रोहित की मौत का कारण यह था कि अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन और आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं के बीच मारपीट हुई और इसका फैसला करने के लिए आरएसएस के नेताओं ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी को पत्र लिखकर मामले में कार्रवाई करने का अनुरोध किया। इस पर फैसला लेते हुए होस्टल के अधिकारियों को अंबेडकर स्टूडेंट्स को होस्टल खाली करने का आदेश दे दिया। उसमे रोहित वेमुला भी शामिल था। जिसके बाद रोहित ने अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। हालांकि रोहित ने आपने आखिरी पत्र में अपनी मौत का जिम्मेदार किसी को नहीं बताया था।

इसके बाद दलित छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया और देखते ही देखते यह प्रदर्शन देश भर में फैल गया। अपने इस फैसले पर सफाई देते हुए स्मृति ईरानी के महिषासूर वाले बयान ने इस प्रदर्शन में आग में घी डालने जैसा काम किया। यह प्रदर्शन अब सरकार विरोधी बन गया था। इसके बाद स्मृति ईरानी का मंत्री पद बदल गया। इस प्रदर्शन में जेएनयू ने बढ़कर हिस्सा लिया।

एफटीआईआई आंदोलन, 2015

जून 2015, में गजेंद्र चौहान को फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इसका छात्रों ने विरोध किया क्योंकि न केवल चौहान के पास अपेक्षित क्रेडेंशियल्स की कमी थी बल्कि वह 20 के लिए एक दक्षिणपंथी हार्डलाईनर भी था। छात्र विरोध करने के लिए अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। दिल्ली में इस विरोध प्रदर्शन के चलते छात्रों और पुलिस के बीच कई झड़पें हुई। इस विरोध को बढ़ावा तब मिला जब निर्देशक आनंद पटवर्धन, दिवाकर बनर्जी और FTII के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन करने वाले छात्रों के साथ एकजुटता दिखाते हुए राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा दिए। यह आंदोलन 150 से ज्यादा दिनों तक चला, इसके बाद छात्रों ने अपना विरोध प्रदर्शन बंद कर दिया।

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