Friday, May 3, 2024
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शाचींद्रनाथ सान्याल: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के संस्थापक

आज का दिन (7 फरवरी)

नेहा राठौर

भारत में रहने वाले लोग इस देश की मिट्टी को मां मानते है। अब अगर मां पर कोई वार करे तो उसकी कोई भी संतान कैसे शांत रह सकती है। शाचींद्रनाथ सान्याल भी उन्हीं संतानों में से एक है, जिसने अपनी मां को अंग्रेजी हुक़ूमत से आज़ाद कराने के लिए कई संघर्ष किए और उन्हें इसी संघर्ष के लिए जीवन ने दो बार काला पानी की सजा मिली। आज के दिन यानी 7 फरवरी 1942 को उन्होंने आखिरी सांस ली थी। उन्होंने 1923 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की शुरुआत की थी। शाचींद्रनाथ भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे। वह देश को आज़ाद कराने में राष्ट्रीय और क्रांतिकारी आंदोलनों में सक्रिय भागीदार होने के साथ-साथ क्रांतिकारियों की नई पीढ़ी के प्रतिनिधि भी थे।

उनका जन्म 1893 में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। इनके पिता का नाम हरिनाथ सान्याल और माता का नाम वासिनी देवी था। वह चार भाई थे उनके भाई के नाम रविंद्रनाथ, जितेंद्रनाथ और भूपेंद्रनाथ थे। उनके पिता ने अपने सभी बेटों को बंगाल की क्रांतिकारी संस्था अनुशीलन समिति के कार्यों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था। इसी का यह परिणाम था कि वह सारे भाई आगे चलकर क्रांतिकारी बने। शाचींद्रनाथ सान्याल के बड़े भाई रविंद्रनाथ सान्याल को बनारस षडयंत्र केस मे नजरबंद कर दिया गया था और छोटे भाई भूपेंद्रनाथ सान्याल को ‘काकोरी काण्ड’ में पांच साल की कैद हुई थी। उनके तीसरे भाई जितंद्रनाथ 1929 के लाहौर षडयंत्र केस में भगत सिंह आदि के साथ जेल गए थे।

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शाचींद्रनाथ और रासबिहारी बोस

शाचींद्रनाथ का जीवन जन्म से देश की राष्ट्रवादी आंदोलनों की परिस्थियों में बीता। 1908 में पंद्रह साल की उम्र में उन्होंने काशी में अनुशीलन समिति की स्थापना की थी। देश की आज़ादी के लिए क्रांतिकारी जीवन में शाजींद्रनाथ सान्याल, रासबिहारी बोस के जैसे कई अन्य सहयोगी क्रांतिकारी के रूप में आगे बढ़ रहे थे। नवंबर , 1914 में ये दोनों ही एक बम परीक्षण के दौरान घायल हो गये थे। घायल होने के बाद भी इनके अंदर जल रही क्रांति की लौ टस से मस नहीं हुई। ठीक होने के बाद एक बार फिर अपने कार्य में जुट गये। इन दोनों ने मिलकर अपने संगठन का विस्तार राजस्थान तक किया।

गदर पार्टी और क्रांतिकारी संगठनों ने 1914 से शुरू हुए प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेजों के फंसे होने के चलते कमजोर पर रहे अंग्रेजी शासन के विरुद्ध हिंदुस्तानी सैनिकों के विद्रोह के जरिए देश को पूरी तरह से स्वतंत्रत करा लेने का फैसला किया। इन सब ने मिलकर 21 फरवरी, 1915 को इस सैन्य विद्रोह और स्वतंत्रता संग्राम को शुरू करने की पक्की तैयारी कर ली थी। तभी भारी संख्या में ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार की गई। इसी के परिणाम स्वरूप 26 जून 1915 में शाचींद्रनाथ को पकड़ लिया गया और फरवरी 1916 में उन्हें काला पानी की सजा सुनाई गयी।

उसके बाद दिल्ली के अधिवेशन में उन्होंने एक पार्टी का नाम ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ रखा था। बाद में चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह तथा उनके साथियों ने इसका नाम बदलकर ‘हिंदुस्तान प्रजातांत्रिक समाजवादी संगठन’ कर दिया था।

आजीवन कारावास

1925 में सूर्यकांत सेन के नेतृत्व में चटगांव दल, शाचींद्रनाथ की कोशिश से हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से मिल गया था। इसके बाद शाचींद्रनाथ बंगाल आर्डिनेंस के अधीन गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी से पहले ही दि रिह्वलूशनरी नाम का पर्चा पंजाब से लेकर वर्मा तक बंट चुका था। इस पर्चे के लेखक और प्रकाशन के रूप में बांकुड़ा में शाचींद्रनात पर मुकदमा चला और राजद्रोह के अपराथ में उन्हें दो साल क जेल की सजा हुई। कैद की हालत में ही वे काकोरी षडयंत्र केस में शामिल किए गए और संगठन के प्रमुख नेता के रूप में उन्हें दोबारा 1927 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।

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लेकिन 1937 में संयुक्त प्रदेश में कांग्रेस मंत्रिमंडल की स्थापना के बाद अन्य क्रांतिकारियों के साथ उन्हें दोबारा रिहा किया गया। रिहा होने पर कुछ दिन वे कांग्रेस के प्रतिनिधि थे, लेकिन बाद में वे फारवर्ड ब्लाक में शामिल हो गए। इसी दौरान काशी में उन्होंने ‘अग्रगामी’ नाम से एक दैनिक पत्र निकाला। वह स्वयं इस पत्र के संपादक थे। द्वितीय महायुद्ध छिड़ने के कोई साल भर बाद 1940 में उन्हें पुन: नजरबंद कर राजस्थान के देवली शिविर में भेज दिया गया। वहाँ टी.बी से ग्रस्त होने पर इलाज के लिए उन्हें रिहा कर दिया गया, लेकिन उन्हें घर पर नजरबंद रखा गया था। उसके बाद 7 फरवरी सन 1942 में भारत मां का यह पुत्र उनकी गोद में हमेशा के लिए चिर निद्रा में सो गया।

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