कोरोना के कारण खत्म होती रिश्तों की मधुरता

संवाददाता


जी हैं! कोरोना ने न केवल हमें बीमार बनाया, मौत का तांडव दिखाया, कर्ई बच्चों को अनाथ बनाया, आर्थिक मुसीबतें बढ़ा दी और हमारी तरक्की को काफी पीछे ढकेल दिया, बल्कि आपसी रिश्तों की मिठास भी कम कर दी। कोरोना के कारण लोगों में मानसिक तनाव काफी हद तक बढ़ गया है। लोग संबंधों को संभाल नहीं पा रहे हैं, संस्कार की बात तो छोड़ दीजिए।


कोरोना ने लोगों की आर्थिक स्थिती को इस कदर बिगाड़ कर रख दिया है कि उसका सबसे अधिक असर गरीब और निम्न मध्यम तबके के लोगों पर देखने को मिल रहा है। यदि किसी परिवार में किसी व्यक्ति को कोरोना हो जाए तो परिवार के सदस्य ही उसके साथ ऐसा व्यवहार करने लगते हैं, जैसे  उसे देखते ही कोरोना संक्रमण हो जाएगा। कोरोना न हुआ कोई छुआछूत की बीमारी हो गई हो। माना जाता है कि कोरोना एक दूसरे के संपर्क में आने से फैलता है। हालाकि अब तक इसका कोई वैज्ञानिक सबूत सामने नहीं आया है कि क्या सच में कोरोना एक—दूसरे के छुने से और एक—दूसरे के साथ रहने और बोलने—बतियाने से फैलता है।

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यदि किसी व्यक्ति को कोरोना हो जाए तो उसके साथ ऐसा व्य्वहार किया जाता है कि मानों जैसै उसे कोई छुआ छूत की बिमारी हो गई हो। जैसै – उसे अलग कमरे में रहने को कहा जाता है, जिस कारण नहीं चाहते हुए भी वह अपने परिवार वालों से अलग रहने पर मजबूर हो जाता है। केवल इतना ही नहीं यदि किसी परिवार के वरिष्ठ स्दस्य को कोरोना हो जाता है, तो उसे अलग कमरे में रहने के लिए छोड़ दिया जाता है।  यहां तक कि उनके बर्तन भी अलग कर दिए जाते हैं, जिसके कारण लोगों में मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा है। जैसै नींद नहीं आना, अकेलापन महसूस होना, हीन भावना से ग्रस्ती होना आदि। जिस कारण आने वाले समय में लोगों में मानसिक रोग बढ़ने की आशंका अधिक रहती है।


कोरोना के कारण लोगों की आर्थिक स्थिती इतनी खराब हो गई है कि यदि किसी व्यक्ति की आकाल मत्यु हो जाती है, तो लोगों के पास उसका अंतिम संस्कार करने के लिए प्रयाप्त साधन तक नहीं है। जो अंतिम संस्कार पहले कम पैसै में हो जाया करता था, अब लोगों को उसका इंतज़ाम करने के लिए भी काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है। यहां तक कि मृत शरीर को शमशान तक ले जाना मुश्किल हो गया है। लोग उसे छूने से डरते हैं। जिसके परिणाम पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में देखने को मिला। हज़ारों लोगों के शव लावारिस की तरह मिट्टी और बालू में दफना दिए गए। यह परिवार वालों के लिए काफी दुखदायी होता है, किंतु वे ऐसा करने को मजबूर हो गए। यहॉ यह सवाल सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या हमारे देश में अंतिम संस्कार करना भी इतना मंहगा हो गया है या फिर एक छोटे से वायरस के कारण लोगों का अंतिम संस्कार तक नही हो सकता।

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कोरोना का डर लोगों में इतना ज्यादा फैल गया है कि अगर किसी के रिश्तेदार को माहामारी हो जाती है तो लोग उसके घर जा कर देखना तक पसंद नही करते हैं, क्योंकि उन्हें इस बात का डर रहता है कि कहीं हम भी इस बीमारी की चपेट में ना आ जाएं, जिस कारण रिश्तों की मधुरता खत्म होती जा रही है। केवल व्हाट्सएप और फोन कॉल के ज़रीए ही एक दूसरे का हाल पूछ लेते हैं, ताकि घर भी नहीं जाना पड़े और रिश्तें की गरिमा भी बनी रहे। अब तो हालात यहं तक आ गए हैं कि किसी की मौत की खबर आ जाने पर लोग फोन पर ही शोक प्रकट करना ही ठीक समझने लगे हैं। एसे में यह कहना गलत नही होगा कि कोरोना ने लोगों की जिंदगी को पूरी तरह से अपने काबू में कर लिया है। या कहें कि लोगों की संवेदनाएं को कोरोना ने डंस लिया है।

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