Wednesday, May 15, 2024
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देश के लिए अपनी जान देने वाले स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय

नेहा राठौर ( 28 जनवरी )

‘मेरे सिर पर लाठी एक एक प्रहार, अंग्रेजी शासन के ताबूत की कील साबित होगा’ उन्नीसवीं सदी में लाला लाजपत राय के कहे गए यह चंद शब्द आजादी से पहले अंग्रेजों के विरूद्ध भारत में छीड़ी क्रांति की याद दिलाते हैं। उन्नीसवीं सदी में भारत की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ उठाने वाली कई क्रांतिकारी आवाज़ों में एक बुलंद आवाज़ लाला लाजपत की भी शामिल थी, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान तक न्योछावर कर दी। उनका जन्म 28 जनवरी 1865 में उनके ननिहाल के ग्राम ढुंढ़िके ज़िला फ़रीदकोट पंजाब में हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कानून की उपाधि हासिल करने के लिए 1880 में लाहौर के राजकीय कॉलेज में एडमिशन ले लिया था। इस बीच वह आर्य समाज के आंदोलन में भी शामिल हो गए थे।

वकालत की शुरुआत

उन्होंने अपनी कानूनी शिक्षा पूरी करने के बाद जगरांव में वकालत की शुरुआत की। इसके बाद वह रोहतक और हिसार में भी वकालत करने लगे। लाला जी ने आर्य समाज के कार्यकर्ता होने के नाते दयानंद कॉलेज के लिए कोष इकट्ठा करने का काम भी किया था। इस वजह से लाला जी को हिसार नगर निगम का सदस्य भी चुना गया था। स्वामी दयानंद सरस्वती के निधन के बाद लालाजी ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर एंग्लो वैदिक कॉलेज के विकास की कोशिश करनी शुरू कर दी थी।

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देश ने दी पंजाब केसरी की उपाधि

इसके बाद धीरे धीरे लाला जी ने हिसार में कांग्रेस की बैठकों में भी भाग लेना शुरू कर दिया था और इसी के चलते वह कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता बन गए थे। लाला जी ने देश की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ी, जब 1897 और 1899 में देश में अकाल पड़ा था और लोग अपना घर छोड़कर लाहौर आ रहे थे तो लाला जी ने अपने घर में उन्हें ठहराया था। उन्होंने बच्चों के लिए भी कई काम किए।

जब 1905 में अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन कर दिया था तो लाला जी ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिलाकर अंग्रेजों का विरोध किया था। उन्होंने गांधी जा के साथ मिलकर स्वेदेशी वस्तुएँ अपनाने के लिए अभियान चलाया था। लाला जी की बढ़ती क्रांतिकारी गतिविधियों को देखते हुए 1907 में अंग्रेजों ने उन्हें रावलपिंडी में गिरफ्तार कर लिया था, लेकिन रिहा होने के बाद भी उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा। 1917 में लाला जी ने न्यूयॉर्क में इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका के नाम से एक संगठन बनाया था। वहां रहकर भी लाला जी ने अपने देश और देशवासियों के भविष्य के लिए काम किया। जब वह भारत लौटे तो उन्होंने खुद को अपने देशवासियों के बीच एक नायक के रूप में पाया।

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साइमन कमीशन वापस जाओ का नारा

लाला जी गांधी की नीतियों से इत्फाख़ रखते थे इसीलिए गांधी द्वारा 1920 में चलाया गए असहयोग आंदोलन में कूद पड़, जो की रौलेट एक्ट के खिलाफ था। लाला जी के नेतृत्व में यह आंदोलन पंजाब में आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे ‘पंजाब के शेर’ या कहे की ‘पंजाब केसरी’ जैसे नामों से जाने जाने लगे।

इसके बाद 1928 में कमीशन भारत आया था, जिसके का पूरे देश ने मिलकर विरोध किया था। उस समय लाला लाजपत राय ने साइमन कमीशन वापस जाओ का नारा दिया था। उसी साल 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में एक बड़ी घटना घटी, जब लाला जी के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया था वहीं एक पुलिस अधिकारी ने लाला जी के सर पर ड़ंड़ा मार दिया जिसके दो हफ्ते बाद 17 नवंबर 1928 को लाला जी का निधन हो गया।

उन्हीं की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव ने ठानी। भगत का मानना था कि लाला जी को लाठी स्कॉट ने मारी थी, जिस वजह से उनकी जान चली गई। इस  लिए उन तीनों ने स्कॉट को मारने की योजना बनाई, लेकिन गलती से ब्रिटिश पुलिस के अफसर सांडर्स को गोली मार दी, जिस वजह से तीनों को 23 मार्च 1931 में फांसी दी गई।

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