नई दिल्ली राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश को दिए जाने वाले अपने संबोधन में कहा कि संसद चर्चा की बजाय लड़ाई का मैदान बन गई है। इसके लिए सुधार भीतर से ही होना चाहिए।संसद के मॉनसून सत्र में कोई भी काम नहीं हो पाने के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रपति ने अपनी टिप्पणी में कहा, ‘यदि लोकतंत्र की संस्थाएं दबाव में हैं तो लोगों और उनकी पार्टियों के लिए गंभीरता से विचार करने का यही समय है।’ देश के 69वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए मुखर्जी ने प्रकट रुप में खंडित राजनीति और संसद को लेकर चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने कहा, ‘जीवंत लोकतंत्र की जड़े गहरी हैं लेकिन पत्तियां कुम्हलाने लगी हैं। नवीकरण का यही समय है।’ उन्होंने कहा, ‘यदि हमने अभी कार्रवाई नहीं की तो क्या सात दशक बाद के हमारे उत्तराधिकारी हमें उस आदर सम्मान से याद रखेंगे, जैसे हम उन्हें याद रखते हैं, जिन्होंने 1947 में भारत के सपने को आकार दिया था ? उत्तर शायद सुखद नहीं होगा लेकिन प्रश्न तो पूछा ही जाएगा। राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान का सबसे कीमती उपहार लोकतंत्र है, ‘हमारी संस्थाएं इस आदर्शवाद का बुनियादी ढांचा हैं। बेहतरीन विरासत के संरक्षण के लिए उनकी लगतार देखरेख करते रहने की जरुरत है।’ उन्होंने कहा, ‘लोकतंत्र की हमारी संस्थाएं दबाव में हैं। संसद चर्चा की बजाय युद्ध का मैदान बन गई है।’
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