Friday, October 11, 2024
Homeदेशभारत रत्न पुरस्कार देने की पहली शुरूआत

भारत रत्न पुरस्कार देने की पहली शुरूआत

आज का दिन / नेहा राठौर

कहते हैं कि हर दिन कुछ न कुछ खास होता है, हर दिन के पिछे कोई न कोई ऐतिहासिक घटना या किसी नई चीज की शुरुआती यादें जुड़ी होती हैं। हर एक दिन कुछ खट्टी-मिठी यादें लेकर आता है। इसी तरह आज का दिन यानी 2 जनवरी को भी पिछले कुछ सालों में भारत ने बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ खोया है। आज के दिन को अलग-अलग रुप में याद रखा जाता है। अगर 2 जनवरी को घटने वाली घटनाओं की सूची बनाई जाए तो इस दिन की एक लंबी सूची तैयार होगी। आज के दिन भारत ने कई महान स्वतंत्रता सेनानी और नेताओं को खोया था, जिनमें भारत की वीरांगना डॉ. राधाबाई का नाम भी शामिल है।

आज ही के दिन 1954 को पहली बार भारत में साहित्य, कला, विज्ञान, समाज सेवा और खेल जैसे विशिष्ट क्षेत्रों असाधारण और राष्ट्र सेवा करने वालों को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न पुरस्कार प्रदान करने की भी शुरूआत हुई थी। पहला भारत रत्न सम्मान चक्रवर्ती राजगोपालचरी को प्रदान किया गया था। पहले मरने के बाद इस पुरस्कार को देना का कोई चलन नहीं था, लेकिन एक साल बाद इसमें बदलाव किया गया और इस पुरस्कार को मरने के बाद सम्मानित व्यक्ति के परिवार के सदस्यों को दिया जाने लगा। आज ही के दिन 1954 में पद्म विभूषण पुरस्कार की भी शुरूआत हुई थी।

ये भी पढ़ें कोलीकाता से कोलकाता बनने का सफ़र

वीरांगना डॉ. राधाबाई का समाजसुधार

रानी लक्ष्मीबाई, केतकी बाई, फुलकवंर बाई आदि के नाम तो सबने सुने होंगे, लेकिन डॉ. राधाबाई को बहुत कम ही लोग जानते होंगे। डॉ. राधाबाई का नाम गांधी जी के सत्याहग्रह आंदोलन की याद दिलाता है। उनका जन्म नागपुर में 1875 में हुआ था। वह पहले दाई का काम करती थीं और किसी जात-पात के भेदभाव को नहीं मानती थीं। इसलिए बस्ती के बच्चे उन्हें प्यार से मां भी बुलाते थे। देश की सेवा करने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने औरतों के लिए पर्दा प्रथा को रोकने और वेश्यावृत्ति में लगी बहनों को मुक्ती दिलाने में अहम भूमिका निभाई। राधाबाई गांधी जी के साथ हर आंदोलन में साथ खड़ी रही, फिर चाहे वो कौमी एकता, स्वदेशी, नारी- जागरण, अस्पृश्यता निवारण हो या शराब बंदी इन सभी आंदोलन में राधाबाई की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही। इन सब में सबसे कठिन शराब बंदी का मोर्चा था। शराबियों का शराब छुड़ाना, शराब बेचने वालों से शराब भट्टी बंद करवाना कोई आसान काम नहीं था। लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं छोड़ी।

आपने पूरे जीवन काल में वह आंदोलन के चलते कई बार जेल भी गई। 2 जनवरी 1950 को 85 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया और उनका घर अनाथालय को दे दिया गया।

देश और दुनिया की तमाम ख़बरों के लिए हमारा यूट्यूब चैनल अपनी पत्रिका टीवी (APTV Bharat) सब्सक्राइब करे।

आप हमें Twitter , Facebook , और Instagram पर भी फॉलो कर सकते है।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments