नेहा राठौर ( 24 जनवरी )
आज का दिन यानी 24 जनवरी भारत के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। देश में संविधान लागू होने से 2 दिन पहले आज ही के दिन डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 1950 में संविधान सभा द्वारा देश का पहला राष्ट्रपति भी चुना गया था और आज ही के दिन देश में जन गण मन को राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया था।
राष्ट्रपति बनने से पहले डॉ राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा में अध्यक्ष का पद संभाला था। यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि आजादी से पहले डॉ. राजेंद्र प्रसाद का नाम बिहार के बड़े वकीलों में से एक थे। पटना में बड़ा सा घर और घर में कई नौकर चाकर थे। उस समय उनकी फीस काफी ज्यादा हुआ करती थी। राजनीति में डॉ. राजेंद्र ने गांधी जी के अनुरोध पर कदम रखा था और उन्हीं के कहने पर आजादी की लड़ाई में शामिल हुए थे। आजादी के बाद देश को लोकतंत्र बनाने का काम जोरो पर था। इसकी शुरूआत बहुत पहले हो चुकी थी।
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संविधान सभा का निर्माण
देश को लोकतांत्रिक बनाने का योजना आजादी से पहले ही यह तय कर ली गई थी। देश को एक साथ चलाने के लिए एक संविधान की जरूरत 9 साल पहले ही महसूस हो गई थी और उस संविधान को बनाने के लिए एक संविधान सभा का गठन करने की योजना भी पहले ही बन चुकी थी। यह 1938 की बात है जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा की मांग रखते हुए कहा था कि कांग्रेस स्वतंत्र और लोकतंत्रात्मक राज्य का समर्थन करती है। उन्होंने यह प्रस्ताव किया है कि स्वतंत्र भारत का संविधान बिना बाहरी हस्तक्षेप के ऐसी संविधान सभा द्वारा बनाया जाना चाहिए, जो वयस्क मतदान के आधार पर निर्वाचित हो। लेकिन ऐसा नहीं हुआ 1946 संविधान सभा तो बनी पर कैबिनेट मिशन योजना के तहत। इस सभा में 389 सदस्यों को शामिल किया गया। जिनमें से 292 प्रांतीय सभाओं ने चुने, 93 रियासतों ने और 4 चीफ कमिश्नर के प्रांतों से चुने गए। इस सभा में 15 महिला प्रतिनिधि भी शामिल थी। इस सभा ने अपना काम दिसम्बर 1946 से शुरू कर दिया था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को इस सभा का प्रमुख अध्यक्ष चुना गया।
राजेंद्र प्रसाद की मिसालें
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कई मिसालें देश में प्रख्यात है, अपने पद के रूप में जितना भी वेतन मिलता था। वह उसका आधा राष्ट्रीय कोष में दान कर देते थे। वह देश के पहले राष्ट्रपति बने जिन्हें लगातार 2 बार राष्ट्रपति के रूप में चुना गया।
उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद राष्ट्रपति भवन में अंग्रेजों के तौर तरीके को नहीं अपनाया। वह हमेशा नीचे ज़मीन पर कपड़ा बिछा कर भोजन करते थे। इसी से उनकी सादगी का अनुमान लगाया जा सकता है। उसके बाद 1963 में पटना में उनका निधन हो गया।
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