Friday, May 3, 2024
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बैरम खां: मुगल साम्राज्य का वफादार

नेहा राठौर

आज के दिन यानी 31 जनवरी 1561 को उस बैरम खां की मृत्यु हुई थी, जिसने हुमायूं और अकबर की भारत में शासन स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। अकबर के बारे में आप सबने सुना होगा, लेकिन बैरम खां के बारे में कम ही जानते होंगे क्योंकि वह कोई शासक नहीं था। इतिहास हमेशा शासकों के बारे में बताता है, लेकिन उन्हें शासक किसने बनाया कभी यह सोचा है। बैरम खां एक असाधारण सैन्य जनरल था जिसने मुगल सम्राट हुमायूं और उसके बेटे अकबर के लिए सेवा की और उनके राज्य का विस्तार करने में मदद की।

बैरम खां वह व्यक्ति है जिसने पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू के खिलाफ अकबर की जीत के लिए सेना का नेतृत्व किया था। खां नें एक योग्य संरक्षक के रूप में शत्रुतापूर्ण स्थितियों के दौरान अकबर को निर्देशित भी किया। अकबर की जिंदगी में बैरम खां के अलावा एक और शक्स थी महामंगा जिसे वो सबसे ज्यादा मानता था। खां का मुगल साम्राज्य के प्रति तब तक वफादार रहा जब तक कि वह अपनी दाई मां महा मंगा के करीब नहीं आया था, क्योंकि महा मंगा अकबर की बजाय अपने बेटे को राजा बनाना चाहती थी। इसलिए वह अकबर और खां के बीच मतभेद पैदा कर दिए थे।

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बैरम खां का योगदान

एक बार जब हुमायूं को इस्लाम शाह की मौत के बारे में खबर मिली थी, तो वह भारत पर आक्रमण करने के लिए वापस आया, उस समय बैरम खां ने उनकी मदद की थी। उन्होंने अफगानों को हराकर पंजाब पर विजय प्राप्त की और दिल्ली पर कब्जा कर लिया। तब ही से बैरम खां चर्चा में आया था। उसके बाद जब अकबर 14 साल का था तो हुमायू की मौत हो गई थी, जिसके बाद खां ने अकबर के मार्गदर्शन की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ली। उन्हीं के साथ के कारण अकबर मुगल साम्राज्य को एक विशाल साम्राज्य में बदल पाया। इसके बाद हेमू विक्रामादित्य के तहत अफगान सेना ने आगरा और दिल्ली पर कब्जा कर लिया, उस वक्त भी बैरम खां की अगुआई में अकबर की सेना ने पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू को हरा दिया और दिल्ली और आगरा पर वापस कब्जा कर लिया।

अकबर और खां में मतभेद

जैसे-जैसे अकबर महामंगा के करीब जाता गया वैसे-वैसे खां से अलग हो गया। माहम हमेशा से अपने बेटे आधम खां के साथ-साथ खुद भी शासन करना चाहती थी। उसने बैरम खां को अकबर से अलग करने के लिए अकबर से कहा की वह अब बूढ़े हो चुके है और कार्यभार संभालने में असमर्थ हो गए हैं। अकबर माहम की बातों में आ गया और उसने खां के लिए हज पर मक्का भेजने की व्यवस्था कर दी। बैरम खां को पता था अकबर के इस फैसले के पीछे माहम का हाथ है, लेकिन उसने अकबर से कुछ नहीं कहा क्योंकि वह माहम पर आंख बंद करके विश्वास करता था। खां शांति से यात्रा के लिए रवाना हो गया, लेकिन रास्ते में उन्हें आधम खां की भेजी हुई सेना मिली, जिसने उस से कहा कि पहरेदार के रूप में साथ जाने के लिए मुगल साम्राज्य द्वारा भेजा गया है।

बैरम खां को इस में अपमानित महसूस हुआ और उसने सेनाओं के खिलाफ विद्रोह की शुरुआत कर दी। जिसके वजह से बैरम को बंदी बना कर अकबर के सामने पेश किया गया। अकबर ने उसका अनादर करने की बजाय, उसका आदर और सम्मान किया और मक्का की उनकी उचित यात्रा को व्यवस्था की, इतना होने के बाद भी बैरम की किस्मत उसे मौत के मुंह में ले गई। यात्रा करते हुए जब वह खंभात के बंदरगाह शहर पहुंचे तो अफगान (जिसके पिता को खां ने पांच साल पहले एक युद्ध में मारा था) ने उसकी पीठ पर छुरा मार दिया, जिस वजह से उनकी मौत हो गई।

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