महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 295वीं जयंती
नेहा राठौर
बचपन से हम सभी राजा महाराजाओं की वीर गाथाएं सुनते आये हैं। ऐसा नहीं है कि इस देश में सिर्फ पुरुषों ने ही महना कार्य किये है। भारत वर्ष के इतिहास में कई महान महिलाओं ने भी अपनी बहादुरी और आत्मनिष्ठा के बल पर आपने नाम दर्ज किये हैं। आज के दिन यानी 31 मई को ऐसी ही एक बहादुर महिला महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 295वीं जयंती मनाई जा रही है। उन्हें हमेशा बहादुर और निडर महिला के रूप में याद किया जाता है।

अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी गांव में हुआ था, जो वर्तमान में अहमदनगर के नाम से जाना जाता है। वह 18वीं सदी की सर्वश्रेष्ठ योद्धा रानियों में से एक थीं, जो अपनी प्रजा की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहती थीं। उन्होंने अपने शासनकाल में काफी नाम कमाया, जिस कारण आज भी वह लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
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महारानी का वैवाहिक जीवन
उनका विवाह मल्हार राव के बेटे खंडेराव के साथ हुआ था, लेकिन विवाह के कुछ सालों बाद 1754 में ही उनके पति की मृत्यु हो गई। जिसके बाद उन्होंने सती होने का निर्णय लिया। अहिल्याबाई शिक्षित थीं, ऐसे में उनके ऐसे फैसले ने सभी को हैरान कर दिया था, लेकिन उन्होंने बाद में अपने ससुर के समझाने पर अपना फैसला बदल दिया। कुछ समय बाद ही महारानी के बेटे की भी मृत्यु हो गई, जिसके बाद उन्होंने 1767 में खुद राजगद्दी संभालने का फैसला लिया।

जनहित के कार्य
उन्होंने अपने शासनकाल में कई हिंदू मंदिरों का निर्माण करवाया, जिन्हें आज भी लोगों द्वारा पुजा जाता है। उन्होंने कई साल इंदौर शहर पर राज किया और एक सफल शासक के रूप में अपना नाम बनाया। उन्होंने जनहित के लिए अपने शासनकाल में पुरे देश में सड़कों का निर्माण करवाया, पानी की टंकियां और धर्मशालाओं की बनवाईं।

‘द फिलॉसोफर क्वीन’ की मिली उपाधि
इतना ही नहीं वह एक सफल प्रशासक के साथ-साथ एक दार्शनिक और कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं। उनके इन्हीं गुणों के कारण राज्य में राजनीति से जुड़ी कोई भी बात छुपी नहीं रहती थी। उनकी इन्हीं खूबियों के चलते ब्रिटिश इतिहासकार जॉन कीस ने उन्हें ‘द फिलॉसोफर क्वीन’ की उपाधि से सम्मानित किया था। इसके कुछ सालों बाद ही 13 अगस्त 1795 में उनकी मृत्यु हो गईं।
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