Monday, April 29, 2024
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फिल्मी पटकथा की तर्ज पर चल रहा है जामिया नगर हिंसा मामला, अब मामला दिल्ली हाईकोर्ट में

जामिया नगर हिंसा मामले में पुलिस ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है जिसके बाद हाईकोर्ट ने शरजील इमाम से जवाब मांगा है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने छात्र कार्यकर्ताओं शरजील इमाम, आसिफ इकबाल तनहा और अन्य से 2019 के जामिया नगर हिंसा मामले में आरोपमुक्त करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की याचिका पर उनका पक्ष जानना चाहा है। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने दिल्ली पुलिस की याचिका पर इमाम और अन्य को नोटिस जारी किया और स्पष्ट किया कि निचली अदालत की टिप्पणियों से मामले या मुकदमे में आगे की जांच प्रभावित नहीं होगी।

पुलिस की दलील में कहा गया है कि निचली अदालत ने न केवल आरोपी व्यक्तियों को आरोपमुक्त किया, बल्कि भावनाओं में बह गई। अभियोजन एजेंसी पर आक्षेप लगाया है। पुलिस ने कहा है कि अभियोजन एजेंसी और जांच के खिलाफ गंभीर पूर्वाग्रहपूर्ण और प्रतिकूल टिप्पणी की गई है। इमाम पर 13 दिसंबर, 2019 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में भड़काऊ भाषण देकर दंगे भड़काने का आरोप लगाया गया था। इमाम जेल में ही रहेंगे, क्योंकि वह 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों की साजिश मामले में आरोपी हैं।

आपको बता दें कि निचली अदालत ने 4 फरवरी के अपने आदेश में इमाम और तनहा सहित 11 लोगों को यह कहते हुए आरोपमुक्त कर दिया था कि उन्हें पुलिस द्वारा बलि का बकरा बनाया गया था और असहमति को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, न कि दबाया जाना चाहिए।

दिसंबर 2019 में यहां जामिया नगर इलाके में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों और पुलिस के बीच झड़प के बाद भड़की हिंसा के संबंध में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। पुलिस ने अपनी याचिका में कहा है कि निचली अदालत का आदेश कानून के स्थापित सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और इसमें काफी विसंगतियां हैं। निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि निश्चित रूप से घटनास्थल पर बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी थे। भीड़ के भीतर कुछ असामाजिक तत्व व्यवधान और तबाही का माहौल बना सकते थे। निचली अदालत ने 11 आरोपियों को आरोपमुक्त करते हुए एक आरोपी मोहम्मद इलियास के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया था। जामिया नगर पुलिस थाना ने इमाम, तनहा, सफूरा जरगर, मोहम्मद कासिम, महमूद अनवर, शहजर रजा खान, मोहम्मद अबुजर, मोहम्मद शोएब, उमैर अहमद, बिलाल नदीम, चंदा यादव और मोहम्मद इलियास के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था।

केन्द्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून पारित किया गया था। जिसका उद्देश्य अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान तथा भारत के अन्य पड़ोसी देशों से आकर भारत में रहते शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देना था परन्तु इस कानून में पड़ोसी देशों से आकर विस्थापित होने वाले मुसलमान समुदाय से संबंधित लोगों को नागरिकता देने से वंचित रखा गया था। इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने देश की नागरिकता का एक राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार करने का भी फैसला किया था। इन दोनों मुद्दों को लेकर देश भर में अलग-अलग स्थानों पर कड़ा आन्दोलन हुआ था तथा कई स्थानों पर हिंसा भी हुई थी। इस आन्दोलन में मुबई, दिल्ली, उार प्रदेश तथा देश के कई अन्य भागों की यूनिवर्सिटियों के छात्रों ने सक्रियता से भाग लिया था। केन्द्र सरकार तथा भाजपा की अन्य प्रदेश सरकारों ने इस आन्दोलन  से सती के साथ निपटने की नीति अपनाई थी। इस सन्दर्भ में ही जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी तथा जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी दिल्ली में आन्दोलनकारी छात्रों तथा पुलिस के बीच तीव्र टकराव हुए थे। पुलिस द्वारा इस संबंध में कई छात्रों पर बहुत-से मामले दर्ज किए गए थे। जामिया नगर में हुई हिंसा के संबंध में ही उपरोत छात्रों पर मामला दर्ज किया गया था तथा लगभग विगत तीन वर्ष से यह छात्र जेल में बंद थे। उपरोत मामले का फैसला सुनाते हुए सैशन न्यायाधीश अरुल वर्मा ने दिल्ली पुलिस के कामकाज संबंधी भी बड़ी गंभीर टिप्पणियां की थीं। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अरुल वर्मा ने दिसंबर 2019 में जामिया नगर में हुई हिंसा के संबंध में एक मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था, जिसमें आसिफ इकबाल तन्हा सहित कई आरोपितों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

अब मामला हाईकोर्ट में है। सूत्रों के अनुसार, मामले की सुनवाई अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सोनू अग्निहोत्री 18 मार्च को कर सकते हैं। देखना होगा अबकी इस फिल्म सी पटकथा में कौन सा सीन सामने आएगा।

 

 

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