उद्धव ठाकरे और अरविंद केजरीवाल की मुलाकात के राजनीतिक मायने

Political significance of Uddhav Thackeray and Arvind Kejriwal's meeting

नई दिल्ली, 25 फरवरी। दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे से बांद्रा स्थित उनके आवास पर मुलाकात की। केजरीवाल जब मातोश्री गये तो उस समय उनके साथ उनकी पार्टी के नेता और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, राज्यसभा सदस्य संजय सिंह और राघव चड्ढा भी थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के उद्धव ठाकरे से मुलाकात के राजनीतिक मायने भी निकाले जा रहे हैं। 

वैसे इस बैठक को महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि क्योंकि चुनाव आयोग ने हाल में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता वाले गुट को शिवसेना नाम और धनुष-बाण चिन्ह आवंटित किया था। पिछले साल जून में शिंदे के विद्रोह ने शिवसेना को विभाजित कर दिया था और ठाकरे की महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार को गिरा दिया था।

इतना ही नहीं शिवसेना के हिंदुत्व के चुनावी गणित से आठवले सकते में हैं। आठवले का मानना है कि सिर्फ हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनावी वैतरणी पार नहीं की जा सकती। सत्ता परिवर्तन के लिए विकास व सामान्य जनता से जुड़े अहम मसलों को चुनावी मुद्दा बनाना होगा। आठवले के अनुसार राम मंदिर के ज्वलंत मु्द्दे को लेकर चुनाव में उतरी भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। कई संगठनों को साथ लेकर भाजपा को सरकार बनाना पड़ी। आज हालात उन दिनों जैसे नहीं हैं, जिससे कि हिंदुत्व के मुद्दे पर सरकार आ सके।

उद्धव ठाकरे और शिव सेना में उनके अनुयायियों ने भाजपा के हिंदुत्व के मुक़ाबले महाराष्ट्र में एक वैकल्पिक हिंदुत्व देने की कोशिश की थी। इससे एनसीपी और कांग्रेस को उम्मीद बंधी थी कि वो इस वैकल्पिक हिंदुत्व के मॉडल को देश के दूसरे हिस्सों में ले जा सकेंगे, लेकिन शिव सेना सरकार में संकट से इन कोशिशों को धक्का लगेगा।  बाल ठाकरे ने हिंदुत्व राजनीति की शुरुआत की। भाजपा को लगा कि अगर उन्हें महाराष्ट्र में आगे बढ़ना है तो हिंदुत्व की अकेली आवाज़ बनना होगा, इसलिए वो चाहते थे कि शिव सेना छोटे भाई का रोल अदा करे। उद्धव ठाकरे ने 2019 में भाजपा गठबंधन से अलग होने का फ़ैसला किया। कांग्रेस, टीएमसी और एनसीपी जैसे दलों को उम्मीद बंधी कि भाजपा के हिंदुत्व से निपटने के लिए उन्हें एक अलग हिंदुत्व की सोच चाहिए। उन कोशिशों को इस राजनीतिक संकट से झटका लगेगा। राष्ट्रीय राजनीति में अब हिंदुत्व की बात करने वाली भाजपा एकमात्र पार्टी होगी। भाजपा ने अपने अनुयायियों को भरोसा दिला दिया है कि शिव सेना को उसके ही लोगों ने चुनौती दी है। भाजपा के लोग कह रहे हैं कि ये पहला मौक़ा है जब किसी राज्य में हिंदुत्व के मुद्दे के कारण सरकार गिर जाएगी।

दूसरी ओर जब शिंदे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की मदद से मुख्यमंत्री बने थे। आप ने कहा है कि वह बृहन्मुंबई महानगरपालिका चुनाव लड़ेगी, जो पिछले साल की शुरुआत से ही होने हैं। अविभाजित शिवसेना ने कई वर्षों तक देश के सबसे अमीर महानगरपालिका का नेतृत्व किया था, जबकि आप ने हाल में दिल्ली नगर निगम को बीजेपी से हथिया लिया। वैसे आपको बता दें उद्धव ठाकरे और सीएम केजरीवाल दोनों ही बीजेपी के कटु आलोचक हैं।

चुनाव लड़ेगी, जो पिछले साल की शुरुआत से ही होने हैं. अविभाजित शिवसेना ने कई वर्षों तक देश के सबसे अमीर महानगरपालिका का नेतृत्व किया था, जबकि आप ने हाल में दिल्ली नगर निगम को बीजेपी से हथिया लिया. वैसे आपको बता दें उद्धव ठाकरे और सीएम केजरीवाल दोनों ही बीजेपी के कटु आलोचक हैं.

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