Saturday, July 27, 2024
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चैत्र प्रतिपदा पर लोगों ने मनाया नया वर्ष, बच्चा बच्चा परिचित हो रहा है विक्रम सवंत नववर्ष से

हिंदू नववर्ष को लेकर लोगों में जागृति साफ देखी जा सकता है। इस बार लोगों ने पूरे मन से नववर्ष मनाया, घर सजाया, भगवा झंडा फहराया, मिठाईयां बांटी और एक दूसरे को नववर्ष की खुलकर शुभ संदेश भी भेजे। वैसे भी जब पूरा विश्व 2023 वें वर्ष में हैं ऐसे में विक्रम संवत 2080वां साल मना रहा है। भारत में हजारों सालों से हिन्दू समुदाय द्वारा विक्रम संवत पर आधारित कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया जा रहा है। लोग हिंदू संस्कृति और ज्ञान पर और ज्यादा अभिमान कर रहे हैं।

भारतीय संस्कृति के अनुसार हिंदू नववर्ष पंचांग के अनुसार चैत्र माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को मनाया जाता है और इस साल नए साल की शुरुआत 22 मार्च 2023 को हो रही है। हिंदू कालगणना के अनुसार हिंदू वर्ष का चैत्र महीना बहुत ही खास होता है। चैत्र प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा भी कहते हैं। इसके अलावा इस तिथि पर चैत्र नवरात्रि भी आरंभ हो जाते हैं।  विक्रम संवत पर आधारित कैलेंडर के अनुसार मनाया जाने वाले हिन्दू नववर्ष को हिंदू नव संवत्सर या नया संवत के नाम से भी जाना जाता है। इतना ही नहीं चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को श्रीराम ने जन्म लिया था। रामभक्त इसी दिन को रामनवमी के रूप में भी मनाते हैं। यानी शक्ति और भक्ति के नौ दिन यानी नवरात्र का पहला दिन चैत्र महीने की शुक्ल पक्ष से ही शुरू होता है। मान्यता है कि हिंदू नव वर्ष के कैलेंडर की शुरुआत मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर से हुई। इस कैलेंडर को विक्रम कैलेंडर भी कहा जाता है। उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने विक्रम संवत की शुरुआत की थी, तभी से इस कैलेंडर के अनुसार हिंदू नव वर्ष मनाया जाता है। वैदिक हिंदू परंपरा और सनातन काल गणना में चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर नववर्ष की शुरुआत होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन ब्रह्राजी ने समस्त सृष्टि की रचना की थी इसी कारण से हिंदू मान्यताओं में नए वर्ष का शुभारंभ होता है।

चैत्र माह की प्रदिपदा तिथि पर ही महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, माह और वर्ष की गणना करते हुए हिंदू पंचांग की रचना की थी। इस तिथि से ही नए पंचांग प्रारंभ होते हैं और वर्ष भर के पर्व, उत्सव और अनुष्ठानों के शुभ मुहूर्त निश्चित होते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि का निर्माण किया था। इस वजह से भी चैत्र प्रतिपदा तिथि का इतना महत्व है। इसी दिन से नया संवत्सर भी आरंभ हो जाता है इसलिए इस तिथि को नवसंवत्सर भी कहते हैं। इसी के साथ ये भी मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर भगवान राम ने वानरराज बाली का वध करके वहां की प्रजा को मुक्ति दिलाई। जिसकी खुशी में प्रजा ने घर-घर में उत्सव मनाकर ध्वज फहराए थे।

इन दिनों कड़वे नीम का सेवन आरोग्य के लिए अच्छा माना जाता है। इस दिन कोई अच्‍छा कार्य किया जाता है। जैसे प्याऊ लगाना, ब्राह्मणों या गायों को भोजन कराना। इस दिन बहिखाते नए किए जाते हैं। इस दिन से नौ दिन के लिए दुर्गा सप्तशति का पाठ या राम विजय प्रकरण का पाठ की शुरुआत की जाती है। इस दिन नए संकल्प लिए जाते हैं। इस दिन किसी योग्य ब्राह्मण से पंचांग का भविष्यफल सुना जाता है। इस दिन हनुमान पूजा, दुर्गा पूजा, श्रीराम, विष्णु पूजा, श्री लक्ष्मी पूजा और सूर्य पूजा विशेष तौर पर की जाती है।ज्योतिषियों की मानें तो इस साल नव संवत्सर 2080 में 12 नहीं बल्कि 13 महीने होंगे। इसके पीछे का कारण ये है कि इस साल ज्यादा मास लग रहा है। ये अधिक मास 18 जुलाई से 16 अगस्त तक है। इस साल क्योंकि ज्यादा मास सावन में लग रहा है, इसलिए सावन माह दो महीने का होगा। इस बार सावन के सोमवार और मंगला गौरी व्रत हर बार से ज्यादा होंगे। शिव परिवार की कृपा पाने का शुभ अवसर होगा।

जरूर करें

-घर के आंगन को रंग पोत कर साफ करिये, आंगन में तुलसी का पौधा नहीं है तो अभी लगायें।

-घर की छत या सबसे उपर के हिस्से पर एक मजबूत पोल या पाईप गडवा कर नये वर्ष पर केसरिया ध्वज लगाएं।

-घर के बाहर लगाने के लिए ऊँ व स्वास्तिक के अच्छे स्टिकर इत्यादि ले आईये।

-घर के आसपास जो भी नीम का पेड हो उसपर पर नव वर्ष तक उसमें नई कोंपलें आ जायेंगी। नव वर्ष के दिन सुबह सुबह वे कोपलें मिश्री के साथ स्वयं भी खानी है और औरों को भी बांटनी हैं।

– आपके गाँव, शहर, मोहल्ले, प्रतिष्ठान में सांस्कृतिक कार्यक्रम, भजन-कीर्तन, कवि सम्मेलन की योजना भी बनायी जा सकती है।

-कम से कम 11 लोगों को मिलकर या फोन कॉल पर नववर्ष की शुभकामनाएँ देवें और उन्हें भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें।

-घरों में, प्रतिष्ठानों में रोशनी करना नहीं भूलें।

-पूरे माह जितने ज्यादा दिन हो सके पीला या भगवा वस्त्र पहनें, मस्तक पर तिलक अवश्य लगायें।

 

 

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