किसान आंदोलन: एक लाख करोड़ का नुकसान

हाईवे बंद, भीषण जाम, प्रोडक्शन घटा, कामगार से कारोबारी तक परेशान

शंभु सुमन

नई दिल्ली। हजारों की संख्या में किसान आंदोलनकारी अपनी मांगों को लेकर राजधानी एनसीआर के तीन बोर्डर पर अड़े हुए हैं। मांग नए कृषि कानूनों को हटाने की है। किसानों के संगठनों की अपनी जिद है, तो सरकार के पास नए कानून को लेकर अपने तर्क और तथ्य हैं। सरकार के द्वारा बातचीत के प्रस्ताव पर आंदोलनकारी संगठन दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। नतीजा हाईवे जाम हो चुका है। आवाजाही ठप है। इस बीच इसके साइड इफेक्ट से जुड़े बड़े आंकड़े सामने आए हैं।  

दिल्ली और बोर्डर के आसपास के गांव में रहने वाले लोग परेशान हो चुके हैं। सबसे अधिक नुकसान आर्थिक स्तर पर हो रहा है। लिखे जाने तक एक अनुमान के मुताबिक एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। इस कारण कामगार से लेकर कारोबारी तक परेशान हैं। लघु, मध्यम और बड़ी औद्योगिक इकाइयों की उत्पादकता में भारी गिरवट आ गई। उनके पास कच्चे माल की आवक से लेकर निर्मित माल को बाजार तक पहुंचाने की दिक्कते हैं। दूसरी तरफ इकाइयों के संचालन और रख-रखाव संबंधी दूसरे खर्च का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है।

यदि नुकसान की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में 40 हजार करोड़ रुपए से अधिक के कारोबार को नुकसान पहुंचा है। इस वजह से दिल्ली में अब तक 65 से 70 हजार करोड़ रुपए का सामान नहीं आ पाया है, जबकि देश की राजधानी से 35 से 40 हजार करोड़ का सामान बाहर नहीं जा पाया। कुल मिलाकर देश के कारोबारी जगत को आंदोलन की वजह से 1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।
काॅन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स ; कैटद्ध के अनुसार यह नुकसान व्यापार का हुआ है। कैट के मुताबिक मुख्य रूप से दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के थोक बाजार बुरी तरह प्रभावित हो चुके हैं। व्यावसायिक नुकसान झेलने वाली प्रमुख वस्तुओं में एफएमसीजी उत्पाद, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, इलेक्ट्राॅनिक्स, आयरन एंड स्टील, टूल्स, पाइप एंड पाइप फिटिंग्स जैसे कारोबार शामिल हैं। वहीं मशीनरी इक्विपमेंट्स एंड इम्प्लीमेंट्स, मोटर्स एंड पंप्स, बिल्डर हार्डवेयर, केमिकल्स, फर्नीचर और फिक्स्चर, लकड़ी और प्लाईवुड, खिलौने, कपड़ा, रेडीमेड गारमेंट्स, हैंडलूम कपड़े और हैंडलूम बेड फर्निशिंग, इलेक्ट्रिक और वायवीय उपकरण और विभिन्न अन्य उद्योग में प्रयुक्त होने वाले अन्य औद्योगिक उत्पाद बड़ी संख्या में शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 50 हजार ट्रक देश भर के विभिन्न राज्यों से सामान लेकर दिल्ली आते हैं और लगभग 30 हजार ट्रक प्रति दिन दिल्ली से बाहर अन्य राज्यों के लिए सामान लेकर जाते हैं। दिल्ली न तो कोई औद्योगिक राज्य है और न ही कृषि राज्य, बल्कि देश का सबसे बड़ा वितरण केंद्र है, जहां अनेक राज्यों से सामान आता है और देश भर के राज्यों में दिल्ली से भेजा जाता है। किसान आंदोलन के चलते न केवल दिल्ली सामान आने पर बल्कि दिल्ली से सम्पूर्ण देश में सामान जाने पर भी काफी प्रभाव पड़ा है। दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 5 लाख व्यापारी अन्य राज्यों से सामान की खरीदी करने आते हैं, जो लगभग वर्तमान में न के बराबर है।

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कारोबारी कहते हैं कि ट्रांसपोर्ट नहीं मिल रहा है, जो गाड़ी पहले साठ हजार रु में जाती थी, वो अब 1.2 लाख में जा रही हैं। सिंघु बाॅर्डर पर प्रिंटिंग प्रेस चलाने वाले एक कारोबारी अपना नाम जाहिर करते कहते हैं कि प्रिंटिंग यूनिट के सामने बीते डेढ़ माह से किसानों ने डेरा डाल रखा है। ट्रक और दूसरी वाहनों को यूनिट तक पहुंचे में काफी दिक्कत आ रही है। कमोवेश यह स्थिति एनसीआर में बनी बोर्डर के आसपास की कई यूनिटों की है। कोई बड़ा वाहन उन यूनिट तक नहीं पहुंच पा रहा है। उनक आधा रह गया है। उनकी यूनिट में कामगारों को पैसा देने के लिए लोन लेना पड़ रहा है। उनका कहना है, ‘हम कोरोना से उबर ही रहे थे कि ये आफत आ गई।’

एक यूनिट वाले बताया, ‘आधी लेबर को घर बैठाना पड़ा है, लेकिन तनख्वाह तो उन्हें भी देनी है, क्योंकि उनका परिवार भूखे तो रहेगा नहीं।’ दिल्ली को उत्तर प्रदेश, हरियाणा और आगे पंजाब व दूसरे राज्यों से जोड़ने वाले अहम नेशनल हाईवे इस समय किसानों के कब्जे में हैं। भारी वाहनों के लिए रास्ते बंद हैं। ट्रांसपोर्ट प्रभावित होने का सीधा असर उन हजारों मेन्यूफेक्चरिंग यूनिटों पर पड़ा है जो दिल्ली के बाहरी इलाकों में स्थिति इंडस्ट्रियल एरिया में हैं।

ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं है, जो है वो बहुत महंगा है। ना कच्चा माल आ पा रहा है, ना तैयार माल बाहर भेजा जा रहा है। कारोबारियों में असुरक्षा का भाव है, जिसकी वजह से बाहरी कारोबारी अब मार्केट में पहुंच ही नहीं पा रहे।

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बाॅर्डर सील होने की वजह से लेबर का मूवमेंट भी प्रभावित हुआ है। मजदूर काम पर आने में कतरा रहे हैं। मायापुरी इंडस्ट्रियल एसोसिएशन का कहना है सबसे ज्यादा परेशानी ट्रांसपोर्ट की है। जो गाड़ी पहले साठ हजार रुपये में जाती थी वो अब एक लाख 20 हजार रुपए तक में जा रही हैं। महंगे रेट पर भी ट्रांसपोर्ट नहीं मिल पा रहा है। हरियाणा-पंजाब से आने वाला कच्चा माल नहीं आ रहा।
हम तैयार माल भी बाहर भेजना मुश्किल हो गया है।  कभी रेल बंद, कभी सड़क बंद, पूरा इको-सिस्टम ही खराब हो गया है। सरकार कमर्शियल ट्रैफिक के लिए रास्ते नहीं खुलवा पा रही है। ड्राइवर भी किसी ना किसी तरह किसान परिवारों से ही जुड़े हुए हैं। वो भी आंदोलनकारियों के सपोर्ट में आ जाते हैं।

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