राजेंद्र स्वामी
कोरोना वायरस संक्रमण में कमी आने के बाद लोगों का जीवन पटरी पर आने लगा है। स्कूल भी खुल गए हैं। बच्चों की पढ़ाई नए सिरे से नए माहौल में शुरू हो चुकी है। यह सुखद है, फिर भी बच्चों के माताकृपिता उन्हें स्कूल भेजने को लेकर संशय में हैं। अधिकतर माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजने से कतरा रहे हैं। कारण भी है, कोरोना मामले आने कम जरूर हुए, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। ऐसे में बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए माता-पिता का चिंतत होना स्वाभाविक है। यह कहा जा सकता है जबतब बच्चे अपने-अपने घरों में थे तबतक अपने माता-पिता और परिजनों के सुरक्षित माहौल में थे, लेकिन अब उन्हें अन्य बच्चों के बीच भेजना और उन्हें संक्रमण से बचाए रखना अभिभावकों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है।
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उन्हें कई स्तर पर बच्चों की देखभाल करनी होगी। जैसे दिल्ली की स्कूलों के बच्चों को वैन और बसों से दूसरे बच्चों के साथ सफर करना होता है। स्कूल में तो सोशल डिस्टेंसिंग होती है, लेकिन वैन में कैसे हो पाएगी? एक तरफ बच्चों को सही तरह से पढ़ाई के लिए स्कूल के माहौल की जरूरत है, तो दूसरी तरफ उसके सेहतमंद बने रहने की चिंता। इन दुविधाओं से मुक्ति मिल सकती है, जो सरकार द्वारा बनाए बच्चों के स्कूल भेजने के नियमों का पालन करना संभव होगा। ये नियम सरकार ने माता-पिता की सहमति से ही बनाए ग्ए हैं। ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण बात बच्चों के साथ संयम बरतने की है। बच्चों के नजरिए से देखें तब पाएंगे कि वे भी दोहरे मानसिक दबाव में हैं। उनकी दिनचर्या प्रभावित हो चुकी है। उनके पढ़ाई के तरीके बदल चुके हैं।
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अब उन्हें नए मापदंडों के अनुसार ऑनालइन के साथ ऑफलाइन पढ़ाई के सिलसिले में स्कूल के माहौल के साथ सामंजस्य बिठाने में समय लग सकता है। ऐसे में डाॅक्टर के अनुसार अभिभावक को बच्चों के साथ धीरज रखते हुए दिनचर्या पर ध्यान देना होगा। जैसे स्कूल जाने के लिए बच्चों को जल्दी जगाना, फिर जल्दी सोने के रूटीन बनाने की जरूरत होगी। लगभग एक साल से बच्चे घर से सहज माहौल में अपने माता-पिता के साथ क्लास कर रहे थे। लेकिन, अब ऐसा नहीं होगा तो उनकी तरफ से कुछ आनाकानी देखने के मिल सकती है। ऐसे में आनेवाले वक्त में बच्चों में व्यवहार संबंधी परेशानियां, चिड़चिड़ापन और भावनात्मक मुश्किलें को दूर करने के लिए माता-पिता और शिक्षकों को चाहिए कि वो थोड़ा संयम बरतें।