अमेरिका की विनियामक संस्था का सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) को बंद कर देने के फैसले से पूरी दुनिया के वित्तीय बाजारों को गहरा झटका लगा है। आशंका है कि इसके साथ ही दुनिया में एक बड़े वित्तीय संकट की शुरुआत हो गई है। इस घटना का असर २००८ में लीमैन ब्रदर्स के फेल होने जैसा होगा या नहीं, इस बारे में कुछ कहना अभी जल्दबाजी होगी। लेकिन यह तो तय है कि इसके साथ एक बबूला फूटा है, जिसका अधिक नहीं तो कम से कम स्टार्ट अप सेक्टर पर बहुत बुरा असर होगा। जो स्टार्ट अप्स प्रभावित होंगे, उनमें कई भारतीय भी हैं। इसकी वजह यह है कि इस बैंक ने स्टार्ट अप्स को ऋण देने के मामले में अपना प्राथमिकता क्षेत्र बना रखा था। लेकिन पिछले साल से अमेरिका के केंद्रीय बैंक- फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में वृद्धि की नीति अपनाई है, जिससे २००८ से २०२० तक चले ईजी मनी के दौर पर विराम लग गया है। नए दौर में दीर्घकालिक प्रतिभूतियों (सिक्युरिटीज) में किए गए निवेश पर भारी नुकसान हो रहा है।
एसवीबी ने ९१ बिलियन डॉलर की रकम का निवेश ऐसी प्रतिभूतियों में किया था। शेयर बाजार में गिरावट के कारण वह रकम १५ बिलियन डॉलर घट चुकी है। नतीजतन, बैंक के लिए अपनी वचनबद्धताओं को पूरा करना कठिन हो गया है। शेयर बाजार के उछाल के दिनों में जमाकर्ताओं की रकम का निवेश परिसंपत्तियों को रिकॉर्ड ऊंचाई तक ले गया था। लेकिन अब ये सारी परिघटना पलट चुकी है। और यह कहानी सिर्फ एसवीबी की नहीं है। फेडरल रिजर्व ने जब ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू की, तो कई अर्थशास्त्रियों ने इसका ऐसा नतीजा होने को लेकर चेतावनी दी थी। लेकिन फेडरल रिजर्व की प्राथमिकता मुद्रास्फीति पर नियंत्रण है, जिसके तहत वह ब्याज दर में वृद्धि की नीति पर आगे बढ़ रहा है। इस नीति से पहले बहुत से विकासशील देशों का कर्ज संकट, फिर खुद अमेरिका में होम लोन और क्रेडिट कार्ड ऋण से उपभोक्ता दबाव में आए, और अब यह बात बड़े बैंकों तक पहुंच गई है। और धीरे-धीरे इसका असर सारी दुनिया में फैल जाने का अंदेशा है।