आरोप-प्रत्यारोप के अलावा कुछ नहीं हो रहा बजट सत्र के दूसरे चरण में, जनहित पर अलग-अलग तो स्वहित मामले में एक हो जा रहा है विपक्ष
सी.एस. राजपूत
बजट सत्र के दूसरे चरण में भी आरोप-प्रत्यारोप के अलावा संसद में कुछ नहीं हो रहा है। सत्ता पक्ष कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के लंदन में दिये गये भाषण पर देश से माफी मांगने की मांग कर रहा है तो विपक्ष अडानी ग्रुप पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट मामले में जेपीसी की मांग कर रहा है। मतलब बेरोजगारी, महंगाई, कानून व्यवस्था की कोई बात नहीं हो रही है। किसान मजदूर की कोई बात नहीं हो रही है बस राहुल गांधी ने विदेश में ऐसा क्यों बोल दिया ? प्रधानमंत्री ने दूसरे देश में जाकर ऐसा क्यों बोल दिया था ? सीबीआई, ईडी का दुरुपयोग हो रहा है। इन लोगों को इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि संसद की कार्यवाही में कितना पैसा लगता है ? यह पैसा जनता का है। मतलब जनहित से न तो सत्ता पक्ष को लेना देना और न ही विपक्ष को। इन सांसदों को इस बात से कोई लेना देना नहीं है कि देश का युवा आत्महत्या क्यों कर रहा है ? देश में विभिन्न ठगी कंपनियों द्वारा ठगे गये एजेंट जान क्यों दे रहे हैं ?
करोड़ों निवेशकों के लाखों करोड़ रुपये सहारा इंडिया समेत दूसरी ठगी कंपनियों द्वारा ठगे जाने से उन्हें क्या-क्या परेशानी हो रही है ? एकजुट होकर देश प्रगति के रास्ते पर कैसे चले ? दरअसल देश के अधिकतर लोग सत्तारूढ़ दलों के बहकावे और विपक्ष के दिखावे में आकर जमीनी हकीकत से कहीं दूर चले गये। वे बुरा-भला नहीं समझ पा रहे हैं ? वे सत्ता के मजा लूटने को राष्ट्रवाद और देशभक्ति समझ रहे हैं। वे सत्ता की लालसा को बदलाव का प्रयास समझ रहे हैं। लोग आम आदमी की कमाई पर बात तो बहस कर हैं पर नेताओं, ब्यूरोक्रेट्स और पूंजीपतियों के पास कितनी संपत्ति है उस पर बात करने को तैयार नहीं।
यह भी अपने आप में दिलचस्पी है यदि आप किसी से पूछें कि देश में रोजी रोटी का इतना बड़ा संकट क्यों खड़ा हो गया है तो लोग कहने लगते हैं कि नौकरी के लिए लिए जो लोग योग्य ही नहीं तो उन्हें कैसे रोजगार मिलेगा ? इन लोगों का यह भी कहना होता है कि योग्य आदमी के लिए काम की कोई कमी नहीं है। इन लोगों से पूछें कि विकास कहां हो रहा है ? तो ये लोग कहेंगे कि देश में फ्लाईओवर बनाए जा रहे हैं। इन लोगों से पूछें कि देश में जाति और धर्म के नाम पर नफरत का माहौल बना दिया है तो ये लोग कहेंगे कि मुसलमान खाते भारत का है और गीत पाकिस्तान के गाते हैं। मतलब इन लोगों के दिमाग में हिन्दू और मुस्लिम ठूंस दिया गया है। यदि हिन्दू अभी भी नहीं जागे तो देश पर फिर से मुसलमानों का राज हो जाएगा। ये वे लोग हैं जो सत्ता का विरोध देश का विरोध समझते हैं। इन लोगों को राज विरोध और राष्ट्र विरोध में भी अंतर मालूम नहीं हैं। जो लोग पीएम मोदी की नीतियों का विरोध करते हैं वे उन लोगों को देशद्रोही कहते हुए देश का विरोध बताने लगते हैं।
इन लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि श्रम कानून में संशोधन कर निजी संस्थाओं में वह व्यवस्था कर दी गई है कि नई पीढ़ी को रोजगार पाने के लिए तमाम तरह के समझौते करने पड़ेंगे। तमाम प्रकार के शोषण से गुजरना पड़ेगा। निजी संस्थाओं में न सम्मान रहेगा और न ही पैसा। इस तरह के लोगों में वे लोग ज्यादा हैं जो आज की तारीख में ठीक ठाक पेंशन पा रहे हैं। इन लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि उनका बुढ़ापा ठीकठाक इसलिए बीत रहा है क्योंकि उनको पेंशन मिल रही है।
पेंशन खत्म करने की वजह से नयी पीढ़ी का बुढ़ापा कितना बुरा बीतने वाला है। इन लोगों को इस बात से भी कोई मतलब नहीं है कि देश में ब्यूरोक्रेट्स, पूंजीपतियों और नेताओं का एक नापाक गठबंधन बन चुका है जो आम आदमी को गर्त में धकेल रहा है। इन लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि आने वाली पीढ़ी मानसिक रूप से रोगी बनकर रह जाएगी। ये लोग बस गोदी मीडिया पर विश्वास कर रहे हैं जो सरकार के अनुसार खबरें परोस रहा है। दिन भर जाति और धर्म के नाम पर डिबेट चलती रहती हैं। भाजपा शासित प्रदेशों में भले ही धर्मांतरण मामले पर सख्ती बरती जा रही हो पर हिंदुत्व के नाम पर राजनीति करने वाले संगठनों के घर वापसी के नाम पर धर्मांतरण कराने पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
जमीनी हकीकत यह है कि ये लोग यह सब सत्ता के लिए कर रहे हैं कि देश में बीजेपी की सत्ता चलती रहे और इनके धंधे चलते रहे। इन लोगों को देश और समाज से कोई लेना देना नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि विपक्ष देश और समाज की कोई चिंता कर रहा है। विपक्ष भी किसी तरह से फिर से सत्ता हासिल करना चाहता है। वैसे भी विपक्ष में बैठे लोग भी किसी न किसी रूप में सत्ता में रहे हैं। इनसे भी कोई ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि फिर देश और समाज का भला कौन करेगा ? किसको सत्ता सौंपी जाए ? ऐसे में देश और समाज के प्रति समर्पित और निष्ठावान जमीनी नेतृत्व खड़ा नहीं हो जाता तब तक सत्ता की गलत नीतियों का विरोध कर सत्तापक्ष की गलत नीतियों का विरोध करना चाहिए।