Friday, May 10, 2024
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रमजान के पवित्र महीने में रोजा रखकर मांगी गई हर मुराद (दुआ) होती है कबूल

रोजा इस्लामिक पांच प्रमुख धार्मिक स्तंभों में से एक है। इस महीने की गई इबादत से अल्लाह खुश होते हैं और रोजा रखकर मांगी गई हर मुराद (दुआ) कबूल होती है।

पवन कुमार 
रमजान महीने के 30 दिन मुस्लिम समुदाय अल्लाह की इबादत करते हैं और इनकी शान में रोजे ( उपवास )रखते हैं, रोजे का समय सुबह सूरज निकलने से लेकर सूरज ढलने तक होता है, सूरज निकलने से पहले लोग रोजा रखने की दुआ पढ़कर अपना रोजा शुरू करते हैं, वही सूरज ढलने के बाद रोजा खोलने की दुआ से अपना रोजा खोलते हैं।
रमजान क्या है? रमजान या रमदान (उर्दू – फारसी) इस्लामिक कैलेंडर का नवा महीना होता है, मुस्लिम समुदाय इस महीने को परम पवित्र मानते हैं, रमजान शब्द अरब से निकला है अर्थात यह अरबिक शब्द है जिसका अर्थ (चिलचिलाती गर्मी) तथा सूखापन है। किसी मुस्लिम समुदाय के व्यक्ति से पूछो कि रमजान क्यों मनाया जाता है तो वह आसानी से बता देगा, लेकिन मेरा मानना है कि हमारे भारतीय त्योहार ईद, रमजान, शबे बरात,नवरात्रि, दीपावली ,होली, दशहरा, लोहड़ी, आदि सभी त्योहार क्यों मनाए जाते हैं इनका क्या महत्व है इसके बारे में हम भारतीयों को जानकारी होना जरूरी है। भारत समेत दुनिया के अन्य देशों में मुस्लिमों द्वारा अल्लाह के प्रति श्रद्धा हेतु रमजान के पवित्र महीने में रोजे ( उपवास) रखे जाते हैं मुस्लिमों द्वारा ईश्वर अल्लाह के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करने हेतु रमजान में रोजे रखे जाते हैं।
मुस्लिम समुदाय के इस पावन पर्व ( इबादत का महीना) कहे जाने वाले इस महीने की शुरुआत कब हुई? वहरेन के शहर मनाना में शाम के समय और खूबसूरत वर्धमान एवं रमजान माह का आरंभ इस्लामिक कैलेंडर ( चंद्रमान) के अनुसार बदलता है। रोजे की शुरुआत –हजरत दुनिया के पहले इंसान हजरत आदम आले के जमाने से ही हो गई थी, रिवायत से पता चलता है कि अयामे -बीज मानी हर महीने की 13 14 और 15 तारीख से रोजे फर्ज थे। यहुद ओर नसारा भी रोजे रखते थे, यूनानीओ के यहां भी रोजे का वजूद मिलता है। विशेषज्ञों के अनुसार इस्लाम धर्म रमजान के महीने का महत्व बताते हुए कहा कि इस महीने की गई इबादत से अल्लाह खुश होते हैं और रोजा रखकर मांगी गई हर मुराद ( दुआ) कबूल होती है रमजान का रोजा 29 या 30 दिन का होता है।
क्यों रखते हैं रोजा -हजरत मोहब्बत के हिजरत करने यानि मक्का से मदीना जाने (622) ईसवी के दूसरे साल यानी(624) विश्व में इस्लाम में रमजान के महीने में रोजा रखने का फर्ज अथवा अनिवार्य कर दिया गया था, इसके बाद से ही पूरी दुनिया में बिना किसी बदलाव के रोजा रखा जाता रहा। “रोजा इस्लामिक पांच प्रमुख धार्मिक स्तंभ में से एक है,”स्तंभ चार क्रमशः -एक ईश्वर (अल्लाह) आस्था नमाज, जकात, ओर हज है।
इस्लामिक विशेषज्ञों का कहना है कि हिजरी द्वितीय वर्ष के दौरान रमजान महीने में रोजा रखने को मुसलमानों के धार्मिक ग्रंथ कुरान के जरिए फर्ज या अनिवार्य किया गया था, मक्का मदीना में पहले से ही रोजा की परंपरा है।
रमजान के आखिरी 10 दिनों का मतलब उस समय को याद करना है जब पैगंबर मोहम्मद को “लैलत अल कद्र”की रात कुरान का खुलासा हुआ था,रमजान मैं रोजा इस्लाम के 5 स्तंभों में से चौथा स्तंभ है और इसका उद्देश्य मुसलमानों को आत्म -अनुशासन -आत्म संयम -और उदारता सिखाने में मदद करना है।
यह eid-ul-adha और इसके बाद के 3 दिन आप इन दिनों उपवास नहीं रखते ऐसा मोहम्मद ने कहा है यह 3 दिन खाने-पीने के और अल्लाह को याद करने के दिन है।
अबू हुरैरा द्वारा की गई रिपोर्ट के अनुसार ईद उल फितर शुक्रवार को रूपल करन और हर शुक्रवार को उपवास रोजा की मना है।
ढाका विश्वविद्यालय इस्लामिक शिक्षा विभाग अध्यापक डॉ शमशुल आलम ने बीबीसी बांग्ला से कहा “कुरान की जिस आयात (श्लोक) के जरिए रोजा को जारी किया गया है उसमें कहा गया है कि पहले की जाति समूह पर भी रोजा फर्ज था, इसमें यह समझा जा सकता है कि विभिन्न जातियों में पहले से ही रोजा (उपवास) का चलन था हालांकि उसका स्वरूप अलग था।
इस्लामिक फाउंडेशन के उपनिदेशक डॉ मोहब्बत आबू साहिल पटवारी ने बीबीसी बांग्ला से कहा है”पहले के नवियों पर 30 रोजा रखना फर्ज नहीं था किसी नवी पर आशूरा का रोजा रखना फर्ज था तो किसी पर चंद्रमास की 13 ,14 और 15 तारीख को रोजा फर्ज था।कहीं शब्दों में त्रुटि या अनजाने कुछ गलत लिखा गया हो तो लेखक क्षमा प्रार्थी हैं।

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