Friday, May 3, 2024
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फिर सवाल उठा है कि दिल्ली का राजा कौन? दिल्ली में एलजी और मुख्यमंत्री की तकरारों से भरा है इतिहास

दिल्ली में एक बार फिर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार और उपराज्यपाल वीके सक्सेना के बीच एक बार फिर तकरार बढ़ने के आसार हैं। एक ओर जहां एलजी ने डीआईसीओएम बोर्ड से आम आदमी पार्टी के दो नेताओं जैस्मीन शाह और नवीन गुप्ता को बोर्ड से हटा दिया है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट ने अधिकार की लड़ाई पर अपना फ़ैसला देते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल को सीमाओं में रहकर फ़ैसले लेने का अधिकार दिया। पर क्या सचमुच दिल्ली का शासन सुप्रीम कोर्ट के फैसले जितना आसान है। आइए इसी की पड़ताल करते हैं।

दिल्ली में एक बार फिर अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार और उपराज्यपाल वीके सक्सेना के बीच एक बार फिर तकरार बढ़ने के आसार हैं। हाल के दिनों में एलजी और केजरीवाल सरकार के बीच तकरार काफी बढ़ गई है। चाहे स्कूल महापौर के चुनाव का मामला हो या फिर शिक्षकों को ट्रेनिंग के लिए फिनलैंड भेजने का मामला। केजरीवाल सरकार की ओर से यह आरोप लगाया जाता रहा है कि उपराज्यपाल की ओर से उनके कामकाज में अड़चनें डाली जा रही हैं। दिल्ली की सरकार मामला लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला भी सुना दिया। पर क्या यह फैसला उपराज्यपाल की शक्तियों को कम कर देगा। दरअसल, उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने डीआईसीओएम बोर्ड से आम आदमी पार्टी के दो नेताओं को हटाने का आदेश दिया है। उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने आरोप लगाते हुए आम आदमी पार्टी के नेता जैस्मीन शाह और नवीन गुप्ता को बोर्ड से हटा दिया है। जैस्मीन शाह आप के प्रवक्ता है जबकि नवीन गुप्ता पार्टी के राज्यसभा सांसद एनडी गुप्ता के बेटे हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली में उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच अधिकार की लड़ाई पर अपना फ़ैसला दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा है कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास स्वतंत्र फ़ैसले लेने का अधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद के सहयोग और सलाह पर ही कार्य करना चाहिए। कोर्ट ने ये भी कहा है कि भूमि, क़ानून-व्यवस्था और पुलिस को छोड़कर दिल्ली सरकार के पास अन्य सभी विषयों पर क़ानून बनाने और उसे लागू करने का अधिकार है। कोर्ट के फ़ैसले में संविधान के अनुच्छेद 239AA का बार-बार जिक्र किया गया और दोनों पक्षों को याद दिलाया गया कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र है न कि राज्य।

अब सवाल यह है कि दिल्ली में एलजी पावरफुल हैं या मुख्यमंत्री। तो इसका जवाब है दिल्ली के उपराज्यपाल के पास अन्य राज्यपालों की तुलना में अधिक शक्तियां हैं। अनुच्छेद 239AA के इसके तहत दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहा गया है और इसके प्रशासक उपराज्यपाल है। दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली के पास पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि संबंधी अधिकार नहीं हैं। वह इनसे जुड़े कानून नहीं बना सकती है। ये तीनों अधिकार केंद्र सरकार के पास हैं अगर सरकार और उपराज्यपाल के बीच में कोई मतभेद होते हैं तो उपराज्यपाल राष्ट्रपति के पास मामला भेज सकते हैं। इमरजेंसी की स्थिति में उपराज्यपाल फैसले ले सकते हैं।

अब आते हैं कि क्या पहली बार एलजी और सरकार आमने सामने है। अगर ज्यादा पीछे न भी जाएं तो जब से अरविंद केजरीवाल सत्ता में आएं हैं उनके सरकार की किसी भी एलजी से नहीं बनी है। इतिहास में जाए तो साल 1952 में जब दिल्ली की गद्दी पर कांग्रेस पार्टी के नेता चौधरी ब्रह्म प्रकाश मुख्यमंत्री थे तो उस समय भी चीफ़ कमिश्नर आनंद डी पंडित के साथ एक लंबे समय तक तनातनी चलती रही। इसके बाद मुख्यमंत्री को 1955 में इस्तीफ़ा देना पड़ा। साल 1956 में दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया था। दिल्ली की विधानसभा और मंत्रिमंडल का प्रवाधान खत्म कर दिया गया। 1966 में दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन एक्ट के तहत दिल्ली नगरपालिका का गठन किया गया। इसके प्रमुख उपराज्यपाल होते थे। नगरपालिका के पास विधायी शक्तियां नहीं थी। 1990 तक दिल्ली में इसी तरह शासन चलता रहा। इसके बाद संविधान में 69वां संशोधन विधेयक पारित किया गया। संशोधन के बाद राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, 1991 में लागू हो जाने से दिल्‍ली में विधानसभा का गठन हुआ।दिल्ली विधानसभा में 70 सदस्य तय किए गए। विधायक 5 साल के लिए चुने जाते हैं।

अब आते हैं जैस्मीन शाह और नवीन गुप्ता को हटाने के एलजी के फैसले पर। एलजी ने आरोप लगाया है कि इनको अवैध तरीके से प्राइवेट डिस्कॉम बोर्ड में सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल किया गया था। एलजी ने इन दोनों नेताओं को हटाकर उनकी जगह सरकारी अधिकारियों को नियुक्त करने का आदेश दिया है। और एलजी के इसी फैसले के बाद एक बार फिर दिल्ली की राजनीति गरमाने के आसार हैं।

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