Friday, April 26, 2024
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दिल्ली में बढ़ रही है बाल मजदूरी, बचपन बचाओ आंदोलन ने एडसीएम के साथ मिलकर मुक्त कराए 14 बाल मजदूर

दिल्ली के नारायणा से मुक्त करवाए गए 14 बच्चों ने दिल्ली में बाल मजदूरी की कलई खोल कर रख दी है। यह बच्चे तो एक बानगी मात्र हैं। न जाने कितने ही बच्चे बाल मजदूरी के भंवर जाल में फंसे होंगे और एक अदद कैलाश सत्यार्थी या बचपन बचाओ आंदोलन का इंतजार कर रहे होंगे।

बचपन बचाओ आंदोलन ने नारायणा औद्योगिक इलाके से 14 बाल मजदूरों को मुक्त करवाया। इन मुक्त करवाए गए बच्चों की उम्र 13 से 17 साल के बीच है और इनमें से 6 लड़कियां भी शामिल हैं। ये सभी बच्चे उत्तर प्रदेश और बिहार के हैं और इन सब से जबरन 12-12 घंटे तक काम करवाया जा रहा था। इसके एवज में रोजाना महज 100 रुपये मजदूरी दी जाती थी।

नोबेल शांति पुरस्कार से सम‍मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्‍थापित ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ ने  एसडीएम दिल्ली कैंट के साथ मिलकर एक संयुक्त  छापामार कार्रवाई में पांच व्‍यवसायिक इकाइयों से 14 बाल मजदूरों को मुक्त करवाया है। ये कार्रवाई नारायणा औद्योगिक इलाके में की गई, जहां बच्चों से जबरन इलेक्ट्रॉनिक सामान असेंबल करने वाली ईकाई और प्रिंटिंग प्रेस में काम करवाया जा रहा था। इस कार्रवाई में ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ का सहयोगी संगठन बाल विकास धारा भी मौजूद रहा। दिल्‍ली पुलिस ने इस मामले में पांचों व्यवसायिक इकाइयों को सील कर दिया है और साथ ही चाइल्‍ड लेबर एक्ट और जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत केस दर्ज किया है। यहां से मुक्त करवाए गए सभी बच्चों का मेडिकल करवाने के बाद चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के सामने प्रस्तुत किया गया, जहां से उन्‍हें चाइल्ड केयर इंस्‍टीट्यूट भेज दिया गया।

पर सवाल यह है कि क्या महज 14 बच्चे ही दिल्ली में बाल मजदूरी कर रहे थे या यह संख्या बानगी मात्र है। बड़ी फैक्ट्री से लेकर चाय की दुकानों तक में अक्सर छोटे-छोटे बच्चों को ग्राहकों को कई तरह के काम करते या चाय के गिलास पकड़ाते या झूठे बर्तन धोते देखे जा सकते हैं। कहीं छोटू थाली लाना पुकारते ग्राहकों को रेस्टोरेंट्स में खाने की थाली सर्व करते देखा होगा। मालिक की एक आवाज पर दौड़ते भागते काम करते देख इन बच्चों का कोई नाम तक नहीं जानता। अपनी मर्जी से कोई छोटू कहकर बुलाता है तो कोई इन्हें कुछ और नाम दे देता है। इनमें ज्यादातर बच्चे ऐसे होते हैं, जो अक्सर अपने परिवार की बुरी माली हालत देखकर बचपन में ही काम करने को मजबूर हो जाते हैं। दिल्ली के लगभग हर इलाके में या यूं कह लें हर दुकान में कोई न कोई बच्चा काम करता दिख ही जाएगा। कभी मजबूरी के नाम पर तो कभी हाथ बंटाने के नाम इनका शोषण होता है। पर बचपन बचाओ आंदोलन जैसी संस्थाएं लगातार इनको छुड़ाने में प्रयासरत हैं पर यह संस्थाए समुद्र में पानी की एक बूंद की तरह हैं। समस्या को जड़ से मिटाने के लिए और ज्यादा प्रयासों के साथ समाज में भी आमूल चूल परिवर्तन करना होगा ताकि हर बच्चा पढ़ सके और आगे बढ़ सके।

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