Tuesday, April 23, 2024
Homeअन्यसुभाष चंद्र बोस: भारत से जापान तक

सुभाष चंद्र बोस: भारत से जापान तक

नेहा राठौर

‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा देने वाले सुभाष चंद्र बोस पूरी दुनिया में एक भारतीय क्रांतिकारी के रूप में प्रख्यात हैं। भारत को आजादी दिलाने में उनका बड़ा योगदान माना जाता है। उनका जन्म आज ही के दिन यानी 23 जनवरी 1887 को उड़ीसा के कटक में पिता जानकी नाथ बोस और माता प्रभा देवी के घर में हुआ था। अपने 14 भाई—बहनों में 9वें स्थान पर थे। उनका पालन—पोषण जन्म से ही राजनीतिक परिवेश में हुआ। बचपन से उनपर धर्मिक आध्यात्मिक वातावरण का गहन प्रभाव रहा इसलिए छोटी सी उम्र से ही उनके कोमल हृदय में शोषितों और ग़रीबों के लिए अपार श्रद्धा समाई हुई थी। बोस स्वामी विवेकानंद की आदर्शवादिता और कर्मठता से प्रेरित थे। उन्होंने स्वामी विवेकानंद के साहित्य को पढ़ा, जिसके बाद उनकी धार्मिक जिज्ञासा और भी मजबूत हो गई। उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई कटक के मिशनरी स्कूल और आर. कालेजियट स्कूल से की, उसके बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज में एडमिशन लिया और दर्शन शास्त्र को अपना प्रिय विषय बना लिया।

क्रांति की पहली लौ

एक बार 1916 में अंग्रेज प्रोफेसर ओटन ने भारतीयों के लिए अपशब्द का इस्तेमाल किया जो सुभाष से सहन नहीं हुआ और उन्होंने गुस्से में अपने प्रोफेसर की पिटाई कर दी। इसके बाद होना क्या था, वहीं जो हर बच्चे के साथ होता है, उन्हें भी कॉलेज से निकाल दिया गया। बाद में में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता आशुतोष मुखर्जी की मदद से उनका निष्कासन रद्द कर दिया गया। वह पहली बार था जब सुभाष को अपने अंदर क्रांति की आग का एहसास हुआ था। सुभाष के पिता का सपना था कि वे अपने बेटे को सिविल सेवा के पदाधिकारी के रूप में देखे। सुभाष ने दूसरे देश में जा कर सिर्फ उनका सपना ही पूरा नहीं किया बल्कि सिविल सेवा की परीक्षा में चौथे स्थान हासिल किया। सुभाष ने अपने पिता के कहने पर परीक्षा तो दी लेकिन उस वक्त उनके मन में कुछ और ही चल रहा था। 1921 में देश में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों के समाचार मिल रहे थे। ऐसे में ब्रिटिश हुक़ूमत के अधिन अंग्रेजों की जी-हूजूरी करने की बजाय उन्होंने महर्षि अरविंद घोष की तरह अंग्रेजों की सिविल सेवा की नौकरी को ठोकर मारकर भारत मां की सेवा करने की ठानी और भारत लौट आये।

गांधी और सुभाष के नरम—गरम विचार

भारत लौटने वह सबसे पहले महात्मा गांधी से मिलने निकल पड़े। अहिंसा को मानने वाले महात्मा गांधी सुभाष के हिंसावादी विचारधारा से असहमत थे। महात्मा गांधी और सुभाष की सोच में ज़मीन आसमान का फर्क था, लेकिन दोनों का मकसद एक था ‘भारत की आजादी’। जहां गांधी नरम मिज़ाज के थे, वहीं सुभाष जोशीले गरम मिज़ाज के व्यक्ति थे। यह कम ही लोग जानते होंगे कि गांधी को सबसे पहले नेताजी ने ही राष्ट्रपिता नाम से संबोधित किया था।

ये भी पढे़ं  – नीतीश बने अपने ‘माननीयों’ के लिए सुरक्षा कवच

दूसरा विश्व युद्ध की शुरुआत

जब 1939 में अमेरीका ने जापान के नागासाकी और हिरोशिमा शहर पर परमाणु बम फेंका। इसी के साथ दूसरे विश्व युद्ध की शुरूआत हुई, तब सुभाष चंद्र बोस ने तय किया कि वो एक जन आंदोलन शुरू करेंगे और सभी भारतीयों को इस आंदोलन के लिए प्रोत्साहित करेंगे। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने नेताजी को आंदोलन का नेतृत्वकर्ता के तौर पर दो हफ्तों के लिए जेल में डाल दिया। लेकिन जब भूख से उनका स्वास्थ्य खराब होने लगा तो ब्रिटिश सरकार ने जनाक्रोश को देखते हुए उन्हें उन्हीं के घर में नजरबंद कर दिया। उसके बाद नेताजी वहां से भागकर जापान चले गए। जापान पहुंच कर उन्होंने सबसे पहले दक्षिणी-पूर्वी एशिया से जापान द्वारा पकड़े गए करीब चालीस हजार भारतीय स्त्री-पुरुषों की प्रशिक्षित सेना बनानी शुरू कर दिया। उन्होंने भारत को आजादी दिलाने के मकसद से 21 अक्टूबर,1943 को ‘आजाद हिंद फौज’ का गठन किया। 1943 से 1945 तक यह फौज अंग्रेजों से युद्ध करती रही। सुभाष चंद्र बोस ही थे, जिनकी मदद से भारतीय महिलाओं को भी आजादी की लड़ाई में शामिल किया। उन्होंने महिलाओं के लिए रानी झांसी रेजिमेंट बनाई, जिसमें सभी महिलाओं को लड़ाई के लिए प्रशिक्षित किया जाता था।

ये भी पढे़ं  – सृष्टि गोस्वामी बनेंगी एक दिन की मुख्यमंत्री

मौत या गुमशुदा: एक रहस्य

उन्होंने अंग्रेजों को यह एहसास दिलाया की अब उन्हें भारत छोड़कर जाना ही पड़ेगा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने रंगून के जुबली हॉल में अपने ऐतिहासिक भाषण में संबोधन करते हुए ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ और  ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया था। बोस की मृत्यु को लेकर कई मतभेद है कुछ लोगों का मानना है कि दूसरे विश्व युद्ध में जापान के आत्मसमर्पण के कुछ दिन बाद दक्षिण-पूर्वी एशिया से भागते समय हवाई दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को उनकी मौत हो गई थी। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि 1945 में उनकी मौत नहीं हुई थी, उस समय रूस में नजरबंद थे। लेकिन बोस की बेटी अनिता का इस बारे में कहना है कि उनके पिता की मौत विमान हादसे में हुई थी। कमोबेश उनकी मौत विमान हादसे की वजह से मानी जाती है।

चलते-चलते, तेरे लिए तेरे वतन की खाक बेकरार है, हिमालय की चोटियों को तेरा इंतजार है, वतन से दूर है मगर, वतन के गीत गाये जा, कदम-कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाये जा, ये जिन्दगी है कौम की, तू कौम पे लुटाये जा।

देश और दुनिया की तमाम ख़बरों के लिए हमारा यूट्यूब चैनल अपनी पत्रिका टीवी (APTV Bharat) सब्सक्राइब करे।

आप हमें Twitter , Facebook , और Instagram पर भी फॉलो कर सकते है।   

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments