राजस्थान भाजपा में फिर सियासी हलचल

जगदीश पंवार

नई दिल्ली। राजस्थान भाजपा में सब कुछ ठीकठाक नहीं चल रहा। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने प्रदेश के नेताओं को दिल्ली तलब किया है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को नहीं बुलाया गया। इसे लेकर राजस्थान में सियासी चर्चा तेज हो गई है। जेपी नड्डा से मिलने के लिए प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौर दिल्ली पहुंचे ।

अचानक से जेपी नड्डा के इन नेताओं के बुलाने को लेकर कई तरह के क़यास लगाए जा रहे हैं। पिछली बार जब यह लोग मिलने गए थे तब राजस्थान में कांग्रेस का सियासी संकट शुरू हुआ था।
यहां इस बात का उल्लेख भी नितांत आवश्यक है कि राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कार्यकारिणी के गठन के पश्चात प्रदेश के परिवहन मंत्री प्रतापसिंह खाचरियावास द्वारा राजपूत समाज को पूरा प्रतिनिधित्व नहीं देने को लेकर नाराजगी जाहिर की है तो वहीं दूसरी ओर आदिवासी नेता महेंद्र जीत सिंह मालवीय, बसपा से कांग्रेस में आए विधायक लाखन मीणा, कांग्रेस विधायक प्रशांत बैरवा, रीटा चौधरी कार्यकारिणी में लिए जाने से संतुष्ट नहीं हैं और अपने आप को मंत्री या संसदीय सचिव की दौड़ में मान रहे थे। इन विधायकों में महेंद्रजीत सिंह मालवीय और प्रशांत बैरवा, रीटा चौधरी जो पायलट गुट के विधायक माने जाते थे परंतु वह संकटकाल में अशोक गहलोत के साथ रहे।

अब जब सब कुछ साफ दिख रहा है मंत्री बनने कि कोई संभावना नहीं है तो भविष्य में होने वाली बगावत के वक्त यह विधायक वापस सचिन पायलट के साथ नजर आ सकते हैं । प्रदेश कार्यकारिणी में सचिन पायलट गुट के लोगों को ज्यादा जगह मिली है परंतु गहलोत गुट के लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत छोटी .छोटी लड़ाई नहीं बड़ी लड़ाई जीतने में विश्वास रखते हैं और अभी राजनीतिक नियुक्तियां और मंत्रिमंडल का विस्तार बाकी है और इसमें गहलोत पायलट को मात दे देंगे।

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कांग्रेस में घमासान अब यहीं से शुरू होगा जब राजनीतिक नियुक्तियां और मंत्रिमंडल विस्तार में सचिन पायलट के लोगों और समर्थक विधायकों को पर्याप्त जगह नहीं मिलेगी और कम से कम पायलट समर्थक 6 विधायक को मंत्री और 20 प्रतिशत लोगों को राजनीतिक नियुक्तियां नहीं मिलती है तो अशोक गहलोत के लिए आने वाला समय चुनौती देने वाला होगा। वहीं कांग्रेस आलाकमान और प्रदेश प्रभारी अजय माकन के लिए भी यह सब चीजें परेशानी का सबब बनेगी।

बहरहाल भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय आलाकमान द्वारा जिस तरह से भाजपा के नेताओं को दिल्ली तलब किया गया है और वसुंधरा राजे को किनारे करने की तैयारी है वह भाजपा के लिए भी चुनौती भरा होगा क्योंकि राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के भी 25 से 30 विधायक वसुंधरा राजे के समर्थक माने जाते हैं और उनके साथ हमेशा खड़े रहने वाले लोगों में माने जाते हैं ऐसे में कांग्रेस की संभावित बगावत का आसानी से भाजपा भी फायदा उठा पाएगी यह बात थोड़ी संशय वाली है।
आने वाले 2 माह राजस्थान की राजनीति में क्या गुल खिलाते हैं यह तो आने वाला समय ही बता पाएगा लेकिन भाजपा आलाकमान द्वारा राजस्थान के भाजपा नेताओं को बिना वसुंधरा राजे को बुलाए तलब करने से सर्द मौसम में राजनीतिक अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है।

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