राष्ट्रीय युवा दिवस

नेहा राठौर

आज का दिन यानी 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस को स्वामी विवेकानंद की जयंती के रूप में मनाया जाता है। विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। माना जाता है कि किसी भी देश का भविष्य उसके युवा पर निर्भर होता है और बात कहीं न कहीं सही भी है। इसलिए स्वामी विवेकानंद की जयंती पर इस दिन को मनाया जाता है क्योंकि विवेकानंद एक समाज सुधारक, विचारक और दर्शनिक भी थे। इस दिन का उद्देश्य यह है कि इस दिन देश के युवा उनसे प्रेरणा ले। भारत सरकार ने 1985 में विवेकानंद के जन्म दिवस पर युवा दिवस मनाने की घोषणा की थी।

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रामकृष्ण परमहंस

विवेकानंद दुनिया में अपने भाषण के लिए बहुत प्रसिद्ध है। क्या आप जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र था। वह बचपन में बहुत जिज्ञासु थे। उन्हें सवाल करने का और जवाब पाने की बहुत जिज्ञासा रहती थी। उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए उन्हें गुरू रामकृष्ण परमहंस मिले, जिनसे विवेकानंद ने जीवन के सबक सिखें।

जब विवेकानंद पहली बार गुरू जी से दक्षिणेश्वर काली मां के मंदिर में मिले थे तो आप जानते हैं उनका पहला सवाल क्या था। उनका सवाल था कि भगवान होते हैं और अगर होते हैं तो दिखते क्यों नहीं। तब गुरू जी ने बड़ी सरलता से जवाब दिया कि भगवान होते है और मैं उन्हें उतना ही करीब से देख सकता हूं जितना तुम्हें। दोनों में तर्क वितर्क का सिलसिला यूं ही चलता रहता था।

अमेरिका में भाषण

वैसे अमेरिका में भाषण से पहले तक विवेकानंद को लोग नरेंद्र नाम से जानते थे। उसके बाद उनको कई नामों से जाना जाने लगा जैसे शिकागो आदि। शिकागो तो फोटो के लिए एक पोज भी बन गया था। विवेकानंद ने अमेरिका के धर्म संसद के भाषण में हिस्सा लेने के लिए काफ़ी ज़हमत उठाई। अमेरिका पहुंचने के लिए उन्होंने अपना नाम नरेंद्र से विवेकानंद बदल लिया। तीन अलग अलग जगहों से होकर वे अमेरिका पहुंचे। वहां पहुंचने के बाद वे धर्म संसद के भाषण के लिए निकल गए। पहले तो उनकी बारी ही नहीं आ रही थी लेकिन जब उनकी बारी आई तो सबको लगा कि ये गेरूआ कपड़ों में पसीने से तर आदमी क्या भाषण देगा।

लेकिन जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो सारी भीड़ विवेकानंद के लिए तालियां बजाने लगी। क्योंकि विवेकानंद के पहले शब्द ने ही कमाल कर दिया था। विवेकानंद ने अमेरिका वासियों को अमेरिका के भाइयों और बहनों कहकर संबोधित किया और उसके बाद उन्होंने भारत के धर्म से लोगों को अवगत कराया। उन्होंने बताया कि भारत गरीब जरूर है लेकिन दिल का बहुत धनी है।उसके बाद से देश विदेश में विवेकानंद का भाषण सुनने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती थी। अमेरिका से भारत आने के कुछ सालों के बाद 4 जुलाई 1902 में निधन हो गया। स्वामी विवेकानंद का कहना था कि उठो, जागो और तब तक ना रूको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाएं।

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