लालबाहादुर शास्त्री जिन्होंने पाकिस्तान को धूल चटाई

नेहा राठौर (11 जनवरी)

आज के दिन यानी 11 जनवरी 1966 को ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लालबाहादुर शास्त्री की ताशकंद में रहस्यमय ढ़ग से मृत्यु हुई थी। लालबाहादुर शास्त्री ने भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 9 जुन 1964 को प्रधानमंत्री पद संभाला था। शास्त्री जी की मृत्यु कैसे हुई यह रहस्य अभी तक रहस्य ही बना हुआ है। उनकी मृत्यु का कारण आज तक पता नहीं चल पाया है।

शास्त्री जी का जन्म 2 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। शास्त्री जी ने शास्त्री की उपाधि काशी विद्यापीठ से प्राप्त की थी। शास्त्री जी ने प्रदर्शन करने वालो पर डंडो की बजाय पानी की बौछार की शुरूआत की थी।

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राजनीतिक शुरूआत

शास्त्री जी का राजनीतिक जीवन इतना भी आसान नहीं था जितना सरल सुनने में लगता है। नेहरू के निधन के बाद अगला प्रधानमंत्री चुनने की ज़िम्मेदारी के. कामराज (किंग मेकर) के सर पर आ गई थी। कामराज के पास प्रधानमंत्री के लिए तीन नाम थे पहला मोरार जी देसाई, दूसरा इंदिरा गांधी, तीसरे लालबाहादुर शास्त्री। जब बैठक बुलाई गई तो उसमें ज्यादातर लोग शास्त्री जी के साथ थे। इसलिए उनकी साफ छवी को देखते हुए उन्हें प्रधानमंत्री चुना गया। जैसे ही वह प्रधानमंत्री बने उनकी मुश्किलें बढ़ती ही चली गई। शास्त्री जी के प्रधानमंत्री बनने से ज्यादातर नेता खुश नहीं थे।

प्रधानमंत्री बनने के बाद लालबाहादुर शास्त्री को नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी का एक पत्र आया जिसमें उन्होनें कुछ ऐसा लिखा था, जिसके बाद शास्त्री जी ने एक बार भी त्री मुर्ती भवन की तरफ कदम नहीं बढ़ाया। सभी लोग शास्त्री जी को बहुत कमजोर समझते थे, सबको लगता था सत्ता सँभालना इनके बस की बात नहीं है, लेकिन उन्होंने वो कर दिखाया जो नेहरू 1962 में नहीं कर पाए।

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1965 भारत-पाक युद्ध

शास्त्री जी के कार्यकाल में 1965 में भारत- पाकिस्तान का युद्ध हुआ। 1962 में चीन से हार के बाद भारत एक और युद्ध के लिए तैयार नहीं था, लेकिन लालबाहादुर शास्त्री ने हार नहीं मानी और दुश्मनों को मुहतोड़ जवाब दिया। पाकिस्तान ने गुजरात के रण ऑफ कच्छ पर कब्ज़ा कर लिया था, जिसके बाद शास्त्री पर दबाव बढ़ने लगा था। पाकिस्तान की सेना गुजरात के रास्ते से भारत में घुसने की योजना बना रही थी। तब ही शास्त्री जी ने सेना अध्यक्ष को प्रधानमंत्री निवास पर बुलाया और उन्हें पंजाब से पाकिस्तान पर धावा बोलने का आदेश दिया। कहीं न कहीं वो जानते थे कि पाकिस्तान ने अपनी पूरी सेना रण ऑफ कच्छ की तरफ ही भेजी होगी और शास्त्री जी का अंदाजा सही निकला। भारतीय सेना ने पंजाब से पाकिस्तान पर आक्रमण किया और पाकिस्तान की कई जगहों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया था। भारतीय सेना आधे लाहौर को अपने कब्ज़े में ले चुकी थी। तभी संयुक्त राष्ट्र की तरफ से लड़ाई रोकने का आदेश आया।

जिसमें पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयुब खान और भारत के प्रधान मंत्री शास्त्री जी को समझोते के लिए ताशकंद बुलाया गया। 10 जनवरी के समझोता सफल रहा। इस समझोते में दोनों देशों ने एक दूसरे की जितनी भी जमीन पर कब्ज़ा किया था, उन्हें वो वापस करनी पड़ी और दोनों देशों ने इस पर हस्ताक्षर किये। उसी रात खाना खाने के बाद 11 जनवरी 1966 को मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के पिछे दूसरे देशों की चाल बताई जाती है। क्योंकि शास्त्री जी की मौत से कई लोगों को फायदा होता। लेकिन इसकी कोई तहकीकात नहीं की गई, जिससे मामला वहीं पर दब गया। आम जनता के सवालों से बचने के लिए लोगों को मृत्यु की वजह हार्ट अटैक बताई गई।  

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