नेहा राठौर
फाइबर ऑप्टिक्स के पिता कहे जाने वाले नरिंदर सिंह कपानी को कम ही लोग जानते होंगे। फाइबर ऑप्टिक्स यह नाम सुनकर दिमाग मे हाई-स्पीड इंटरनेट केबल का ख्याल तो आया होगा। नरिंदर सिंह कपानी वो व्यक्ति थे, जिनकी वजह से आज पूरी दुनिया इंटरनेट का लुफ्त उठा रही है। विज्ञान की गहराइयों में जाकर समझे तो यह लचीले तंतुओं के माध्यम से प्रकाश को प्रसारित करने का विज्ञान है। कंप्यूटर से जुड़ी ज्यादातर चीजों की विदेश में ही खोजी गई है, लेकिन यह बहुत कम लोगों को ही पता होगा की फाइबर ऑप्टिक्स शब्द को जन्म देने वाले नरिंदर सिंह भारत में ही पैदा हुए थे और अपनी सारी पढ़ाई यहीं पूरी की। अभी एक महीने पहले ही 94 साल की उम्र में अमेरिका कैलिफ़ोर्निया में उनकी मृत्यु हो गई। वह भारत का वो हीरा थे जिसकी चमक तो पूरी दुनिया में फैली, लेकिन चमक कहा से आई यह किसी को पता ही नहीं। यह वो व्यक्ति है जिसका दुनिया के अरबों लोगों के जिन्दगी में योगदान है।
नरिंदर सिंह कपानी का जन्म पंजाब के मोगा में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई देहरादून के पहाड़ी शहर में पूरी की और आगरा से स्नातक की उपाधि हासिल की। 1955 में इम्पीरियल कॉलेज लंदन से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। आज जो दुनिया में इंटरनेट क्रांति संभव हो सकी है वो कपानी की देन है। दुनिया के वैज्ञानिकों का मानना है कि वे दूरदर्शी व्यक्ति थे, जिन्होंने दुनिया का फाइबर ऑप्टिक्स से परिचय कराया। फाइबर ऑप्टिक्स, लेजर और सौर ऊर्जा के क्षेत्र में उनके शोध ने जैव-चिकित्सा उपकरणों, रक्षा, संचार और प्रदूषण- निगरानी में अहम किरदार निभाया है।
किताब: द अमेजिंग स्टोरी
कपानी के बारे में भारतीय भौतिक विज्ञानी शिवानंद कानवी ने अपनी किताब द अमेजिंग स्टोरी ऑफ डिजिटल टेक्नोलॉजी में लिखा है कि जब वह देहरादून में हिमालय की खूबसूरत तलहटी में एक हाई स्कूल का छात्रा था, तब मेरे मन में ख्याल आया कि प्रकाश को एक सीधी रेखा में यात्रा करने की आवश्यकता नहीं है इसे मोड़ा भी तो जा सकता है। इसपर उन्होंने काम किया, जिस वजह से आज हम इंटरनेट इस्तेमाल कर सकते है। भारतीय भौतिक विज्ञानी शिवानंद कानवी उन कई विज्ञानियों में से एक है जिनका मानना है कि कपानी के योगदान पर रॉयल स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा ध्यान नहीं दिया गया। यह वह संस्था है जो नोबल पुरस्कार का चयन करती है।
नोबल पुरस्कार से वंचित
उन्हें भारत में इस उप्लबधि के लिए कभी कोई पुरस्कार नहीं दिया गया। उनके बदले चीनी वैज्ञानिक चाल्स केकाओ को भौतिक विज्ञान के लिए 2009 में तंतुओं में प्रकाश के ऑप्टिकल संचरण से जुड़े शोध के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया। कानवी कहते हैं, कपानी ने पहली बार सफलतापूर्वक प्रदर्शित किया था कि प्रकाश को कांच के फाइबर के माध्यम से परिवíतत किया जा सकता है। उन्होंने चार किताबें लिखी। दोनों ने 2 जनवरी 1954 को जर्नल नेचर में अपने परिणाम प्रकाशित किए और उसके बाद कभी पीछे पलटकर नहीं देखा। उन्होंने किताब में लिखा है कि यदि प्रकाश को एक ग्लास फाइबर के एक छोर में निर्देशित किया जाता है, तो यह दूसरे छोर पर उभरेगा। इस तरह के फाइबर के बंडलों का उपयोग छवियों का संचालन करने और उन्हें अलग-अलग तरीकों से बदलने के लिए किया जा सकता है।