Monday, May 6, 2024
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 नागालैंड के चुनाव से कितना बदलेगा राजनैतिक समीकरण , सात बहनों के बीच पैर पसारती बीजेपी

नई दिल्ली, 27 फरवरी। नागालैंड में विधानसभा चुनाव बहुत शांति से बीत गया। अलग राज्य और स्वायत्तता के मुद्दों के बावजूद, नागालैंड के चुनाव में बहुत शोर नहीं है। वहां पर राजनीति ठंडी और प्रचार सुस्त नजर आ रहा है।  केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी यहां गठबंधन सरकार में हैं और स्थानीय नगा पार्टी नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है।नगालैंड में कोई मज़बूत विपक्ष नहीं हैं। यहां कांग्रेस के अलावा रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया, लोक जनशक्ति पार्टी और कई अन्य क्षेत्रीय पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं। राष्ट्रीय राजनीति पर यहां के चुनाव परिणाम कितना असर डालेंगे इसी की पड़ताल करती रिपोर्ट-

नगालैंड में 27 फ़रवरी को मतदान हुआ। केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी यहां गठबंधन सरकार में हैं और स्थानीय नगा पार्टी नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। नागालैंड में कोई मज़बूत विपक्ष नहीं हैं। यहां कांग्रेस के अलावा रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया, लोक जनशक्ति पार्टी और कई अन्य क्षेत्रीय पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं। 2018 में 60 में से 26 सीटें जीतने वाली नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ़) को 2021 में यहां बड़ा झटका लगा था और पार्टी के 21 विधायक बाग़ी होकर एनडीपीपी के गठबंधन में चले गए थे। इस बार एनपीएफ़ सिर्फ 22 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। यानी नागालैंड में कोई मज़बूत विपक्ष इस बार नहीं हैं। यहां लगे चुनावी पोस्टरों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बड़ी तस्वीर छपी है। बीजेपी यहां विकास का वादा लेकर आई है, जिस पर बहुत से लोग यकीन करते दिख रहे हैं।

BJP's role in Meghalaya's politics, BJP looking for land in Christian dominated area

लंबे समय से उठ रही क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग के तहत, अभी भी पूर्वी इलाके में एक अलग राज्य बनाने की बात की जा रही है, लेकिन नागालैंड ने इन मामलों को लेकर एक खास किस्म का संतुलन हासिल कर लिया है। बीजेपी और उसकी क्षेत्रीय सहयोगी, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक पीपल्स पार्टी (एनडीपीपी) 2018 की तरह ही इस बार भी क्रमश: 20 और 40 सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं। अगस्त 2021 में विपक्षी नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) भी एनडीपीपी-बीजेपी सरकार में शामिल हो गया, ताकि भारत-नागा के बीच के राजनीतिक मुद्दे का अंतिम हल ढूंढने की दिशा में आखिरी जोर लगाया जा सके। इसके तहत,  चरमपंथी समूहों और खासकर एनएससीएन (इसाक-मुइवा) गुट के साथ स्थायी समझौता की संभावना तलाशी जा रही है। मतदाता, राजनीतिक पार्टियां और बाकी समूह, राजनीति की इस विपक्ष-विहीन व्यवस्था में शांत दिखाई दे रहे हैं। एनपीएफ के 25 में से 21 विधायक अप्रैल 2022 में एनडीपीपी में शामिल हो गए, लेकिन उनमें से ज्यादातर को टिकट नहीं मिला है। एक विधायक बीजेपी में शामिल हुए थे, वे बीजेपी के 20 उम्मीदवारों में से एक हैं। सन् 2018 में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था। इस बार उसने 24 उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं जबकि एक समय तक अजेय दिखने वाली एनपीएफ ने 22 उम्मीदवारों को टिकट दिया है।

How much will the political equation change after the Nagaland elections, BJP spreading its wings among seven sisters

सीमांत नागालैंड राज्य की मांग उठाने वाले संगठन द्वारा चुनाव बहिष्कार की मांग को वापस लेने के बावजूद, राज्य के पूर्वी हिस्से के छह जिलों में यह एक बड़ा मुद्दा है। इन जिलों मे विधानसभा की 20 सीटें हैं। वर्ष 2003 के बाद हुए सभी चुनावों की तरह चरमपंथी समूहों के साथ शांति प्रकिया, सबसे चर्चित मुद्दा है। नागालैंड के चुनावों में राजनीतिक विचारधारा की भूमिका काफी सीमित होती है और यह आम तौर पर लोगों के व्यक्तित्व पर ज्यादा निर्भर करता है कि कौन दिल्ली के सत्ता प्रतिष्ठान के कितना ज्यादा करीब है। राजनीतिक समूहों का चुनावी गुणा-गणित केंद्र की ओर से मिलने वाले धन के इर्द-गिर्द तय होता है, जोकि केंद्र के पैसों पर चल रही इस राज्य की राजनीतिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। बीजेपी-एनडीपीपी गठबंधन ने 2018 के चुनाव को स्वायत्तता के सवाल के ‘समाधान के लिए चुनाव’ के रूप में पेश किया था। केंद्र ने अगस्त 2015 में एनएससीएन (आई-एम) गुट के साथ फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किया था और नवंबर 2017 में नागा राष्ट्रीय राजनीतिक समूह (जोकि वार्ता में शामिल हुए सात गुटों का एक साझा संगठन है) के साथ एक सहमति बनाई थी। हालांकि, जल्द ही अलग नागा ध्वज और नागा संविधान के मुद्दे पर वार्ता में गतिरोध आ गया।  चरमपंथियों ने भाजपा पर नागा लोगों के साथ विश्वासघात करने का आरोप लगाते हुए यह मांग की है कि मतदान से पहले इसका राजनीतिक समाधान निकाला जाए। नई सरकार के पास करने को बहुत सारे काम होंगे।

नागालैंड में विद्रोहियों ने साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन ये समझौता ज़मीन पर अभी पूरी तरह लागू नहीं हो सका है। वहीं पूर्वी नगालैंड के 6  जिलों में सात नगा समुदाय अपने लिए अलग प्रदेश की मांग को लेकर मुखर हैं। दशकों तक हिंसा से प्रभावित रहे नागालैंड में हाल के सालों में सुरक्षा हालात बेहतर हुए हैं। बीजेपी ने नगा शांति समझौते का वादा करके भी लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया है। नगा शांति समझौता यहां चुनावों में सबसे बड़ा मुद्दा है।  पिछले चुनावों से पहले भी बीजेपी ने नागालैंड में शांति समझौता करने का वादा किया था। नागालैंड में अलगाववादी दल केंद्र सरकार से बात कर रहे हैं। ये लंबी और जटिल प्रक्रिया है। लेकिन मुख्यमंत्री नेफियू रियो उम्मीद ज़ाहिर करते हैं कि इस मुद्दे का समाधान हो जाएगा।

अब सभी की निगाहें 2 मार्च पर टिकी हैं, जब दो और पूर्वोत्तर राज्यों (मेघायल और त्रिपुरा) के साथ नगालैंड चुनाव के नतीजे घोषित किए जाएंगे।  बीजेपी त्रिपुरा को बनाए रखने और दो अन्य राज्यों में अपने रूटमैप का विस्तार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। दूसरी ओर, कांग्रेस और वामपंथी भी इन राज्यों में जमीन हासिल करने के लिए छटपटा रहे हैं। टीएमसी भी पश्चिम बंगाल से परे अपना प्रभाव दिखाना चाहती है।

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