सरकारों की रेबड़ी बांट योजना और देश पर बढ़ता कर्ज का बोझ

Government's Revdi distribution scheme and increasing debt burden on the country

सरकारें कर्ज लेकर रेबडिय़ां बांट रही है, उसमें केन्द्र सरकार भी पीछे नहीं है। कुछ दिनों से मीडिया और सोशल मीडिया में एक चर्चा चल रही है कि सरकार पर कर्ज पहले की तुलना में काफी ज्यादा बढ़ गया है। कांग्रेस का कहना है कि जब 2014 में उन्होंने सत्ता छोड़ी थी उस समय देश पर 56.7 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था, जो 2022-23 में बढ़कर 152.6 लाख करोड़ तक पहुंच गया है, यानी यह कर्ज लगभग 96 लाख करोड़ रुपए बढ़ गया है । दुनिया भर में सरकारी कर्ज के बारे में देखने का नजरिया अलग किस्म का है।

नई दिल्ली, 17 मार्च। सरकारी कर्ज को उसके आकार के अनुसार नहीं, बल्कि जीडीपी के प्रतिशत के रूप में देखा जाता है। उसके हिसाब से देखा जाए तो वर्ष 2013- 14 में चालू कीमतों पर 112 लाख करोड़ रुपए की जीडीपी के संदर्भ में सरकार का कुल 56.7 लाख करोड़ रुपए का कुल कर्ज और देनदारियां जीडीपी का 50.5 प्रतिशत थी। उसके बाद वर्ष 2018-19 तक आते-आते सरकार का कुल कर्ज और देनदारियां 90.5 लाख करोड़ तक पहुंच गई, जो चालू कीमतों पर जीडीपी का 189 लाख करोड़ रुपए की जीडीपी का मात्र 48 प्रतिशत ही था, यानी जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सरकारी का कर्ज और देनदारियां पहले से 2.4 प्रतिशत बिन्दु घट गई थीं। 2019-20 के वर्ष में कोरोना का प्रकोप शुरू हो चुका था, जिसके कारण उत्पादन और कर राजस्व दोनों प्रभावित होने शुरू हो चुके थे। ऐसे में सरकारी कर्ज में मात्र १२ लाख करोड़ रुपए की वृद्धि के बावजूद। जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सरकारी कर्ज 3 प्रतिशत विन्दु ज्यादा होकर 51 प्रतिशत तक पहुंच गया था।

वर्ष 2020-21 पूरे तौर पर कोरोना प्रभावित था, जिसमें मौद्रिक जीडीपी भी २ लाख करोड़ रुपए घट गई थी, लेकिन कोरोना से गरीबों एवं अन्य प्रभावित वर्गों को राहत देने और अन्यान्य प्रकार के खर्च बढ़ने के कारण सरकारी कर्ज और देनदारियां 18 लाख करोड़ रुपए बढ़ गई थी। इसके कारण सरकारी कर्ज और देनदारियां जीडीपी के प्रतिशत के रूप में 61 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। वर्ष 2023-24 के बजट अनुमानों के अनुसार सरकारी ऋण कुल जीडीपी का मात्र 56 प्रतिशत तक घट जाएगा।

क़र्ज़ निजी हो अथवा सार्वजनिक, इसके साथ उसके व्याज और मूलधन की देनदारी जुड़ी होती है। जहां तक सरकारों का सवाल है, सरकारें लगातार ऋण लेती हैं और यह ऋण उत्तरोत्तर तौर पर बढ़ता ही जाता है। गौरतलब है कि हर मुल्क की जीडीपी अलग-अलग है। अमरीका की जीडीपी भारत की जीडीपी से कई गुणा ज्यादा है और कई मुल्कों की जीडीपी भारत की जीडीपी से कई गुणा कम है। इसलिए हमें हर देश के सरकारी ऋण एवं अन्य देनदारियों को वहां की जीडीपी के अनुपात में देखना पड़ेगा। इस संदर्भ में यदि दुनिया की 5 सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को देखा जाए तो आईएमएफ के अनुसार वर्ष 2021 में अमरीका में सरकारी ऋण जीडीपी का 122 प्रतिशत है, जापान का 221.1 प्रतिशत और भारत में मात्र 54.3 प्रतिशत था ।

यह तो सही है कि जनकल्याण ही नहीं पूंजी निर्माण के लिए भी सरकारों को ऋण लेना पड़ता है और टैक्स जीडीपी अनुपात बढ़ाने की कठिनाइयों के चलते, समय की जरूरतों के साथ-साथ सरकारी कर्ज बढ़ता भी जाता है। ऐसे में आर्थिक विश्लेषकों और नीति-निर्माताओं की चिंता यह होती है कि सरकारी बजट पर इसका प्रभाव कैसे कम किया जाये।

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