Common people in trouble : खुदरा महंगाई में बढ़ोतरी के रुख से राहत की उम्मीद फिर धुंधली

इसमें कोई शक नहीं कि जनजीवन की आम गतिविधियों के ठप या कम होने की वजह से सभी क्षेत्रों में उत्पादन में गिरावट आती है और मांग के अनुपात में आपूर्ति नहीं हो पाने के चलते किसी भी वस्तु की कीमत ऊंची रहती है। लेकिन ऐसे मामले भी छिपे नहीं हैं कि बाजार की संचालक शक्तियां कई बार सामानों की आपूर्ति को मनमाने तरीके से नियंत्रित करके कीमतों को प्रभावित करती हैं।

नई दिल्ली

कुछ समय पहले जब बाजार में रोजमर्रा की जरूरत की कुछ चीजों की कीमतों में गिरावट आई थी तब यह उम्मीद जगी थी कि महंगाई के लंबे दौर से लोगों को शायद धीरे-धीरे राहत मिल सकेगी। लेकिन अब एक बार फिर खुदरा महंगाई ने बढ़ोतरी का जो रुख अख्तियार किया है, उससे राहत की उम्मीद एक बार फिर धुंधली पड़ने लगी है। यों सरकारी आंकड़ों में थोक मुद्रास्फीति दो साल से अधिक समय के निचले स्तर 3.85 फीसद पर आ गई है और थोक महंगाई की दर में भी गिरावट दर्ज हुई है। लेकिन अगर खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़े हैं तो आम जनता के लिहाज से महंगाई के प्रभाव को इसी आधार पर देखा जाएगा। मंगलवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक थोक मुद्रास्फीति में गिरावट मुख्य रूप से विनिर्मित वस्तुओं, ईंधन और ऊर्जा के दामों में कमी की वजह से हुई है।

थोक महंगाई में नरमी के बावजूद जरूरी वस्तुओं की कीमतों में कमी नहीं

हालांकि इसी दौरान खाने-पीने के सामानों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई। यों इस साल फरवरी लगातार नौवां महीना है, जब थोक मुद्रास्फीति में गिरावट दर्ज की गई है। लेकिन जनवरी में खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति जो दर 2.38 फीसद थी, वह फरवरी में 3.81 फीसद हो गई। जाहिर है, थोक महंगाई में नरमी के रुख के बावजूद आम लोगों को जरूरी वस्तुओं की कीमतों के स्तर पर न केवल कोई राहत नहीं मिली, बल्कि पहले ही इस समस्या से जूझते लोगों की मुश्किलें और गहरी हुईं।

खाने-पीने के सामानों की मूल्यवृद्धि का संबंध लोगों की आमदनी से जुड़ा है

दरअसल, खासतौर पर खाने-पीने के सामानों के दामों में बढ़ोतरी का असर मुख्य रूप से इससे जुड़ा होता है कि लोगों की आमदनी कितनी संतोषजनक है और उनकी क्रयशक्ति की सीमा क्या है। अगर वस्तुओं की कीमतों में इजाफे के समांतर लोगों की आय में भी बढ़ोतरी होती है तो इसे एक बोझ के तौर पर नहीं देखा जाता है। करीब तीन साल पहले महामारी की वजह से हुई पूर्णबंदी का बाजार से लेकर कामकाज या रोजगार के सभी क्षेत्रों पर जो असर पड़ा था, उससे अब धीरे-धीरे राहत मिल रही है, लेकिन उसके नतीजे आज भी महसूस किए जा सकते हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि जनजीवन की आम गतिविधियों के ठप या कम होने की वजह से सभी क्षेत्रों में उत्पादन में गिरावट आती है और मांग के अनुपात में आपूर्ति नहीं हो पाने के चलते किसी भी वस्तु की कीमत ऊंची रहती है। लेकिन ऐसे मामले भी छिपे नहीं हैं कि बाजार की संचालक शक्तियां कई बार सामानों की आपूर्ति को मनमाने तरीके से नियंत्रित करके कीमतों को प्रभावित करती हैं।

अब विशेषज्ञों की ओर से जो आशंका जाहिर की जा रही है, अगर वह सच हुई तो आने वाले महीनों में खासतौर पर खाद्य मुद्रास्फीति के मामले में और मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। गौरतलब है कि जलवायु प्रणाली में उथल-पुथल के रूप में अलनीनो के तीव्र प्रभाव से जुड़े जैसे संकेत सामने आ रहे हैं, उसका असर बहुस्तरीय हो सकता है। अगर यह अनुमान के मुताबिक ही आया तो इसके साथ तेज गर्मी, बिजली संकट, गेहूं की फसल, सब्जियों और फलों के दामों में बढ़ोतरी हो सकती है।

फिर अगले कुछ महीने दाल और चना के लिए महत्त्वपूर्ण है और अगर जरूरत भर बारिश नहीं हुई तो उसके चक्र पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, ऐसे संकट उभरने के दौरान बाजार में जमाखोरों और कालाबाजारी करने वालों की हरकतें छिपी नहीं रही हैं। इसलिए अगर कई तरह की चुनौतियों के बीच सरकार आम लोगों को महंगाई और आय के मोर्चे पर राहत देने के प्रति ईमानदार इच्छाशक्ति रखती है तो उसे खाने-पीने के सामान की जमाखोरी करने वालों के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार करना होगा।

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