नई दिल्ली, 12 मार्च। कपिल सिब्बल अब इंसाफ के सिपाही बन गए हैं। वे कई बरसों से एक अलग कांग्रेस बनाने की कोशिश कर रहे थे। सबकी कांग्रेस या अपनी कांग्रेस नाम से पार्टी बनाने का प्रयास भी उन्होंने किया था। गुलाम नबी आजाद को आगे करके सिब्बल ने कांग्रेस के भीतर जी-२३ बनाने का काफी हद तक सफल प्रयास किया था। अब उन्होंने इंसाफ के सिपाही नाम से वेबसाइट बनाई है और देश के सभी विपक्षी मुख्यमंत्रियों से साथ आने की अपील की है। बकौल उनके, उन्होंने यह वेबसाइट अन्याय के ख़िलाफ़ लडऩे और सबको इंसाफ़ दिलाने के मक़सद से शुरू की है। लेकिन असली बात कुछ और है। वे इस भ्रम का शिकार हो गए हैं कि सभी विपक्षी पार्टियां मुक़दमे में फंसी हैं और वे उनमें से ज्यादातर के वकील हैं तो वे उन सबके नेता भी बन सकते हैं।
इस तरह का भ्रम कोई नई बात नहीं है। उनसे पहले चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर इसी तरह के भ्रम का शिकार हुए हैं। उनको लगा कि वे सभी पार्टियों को चुनाव लड़वाते और जितवाते हैं तो वे खुद भी नेता बन सकते हैं। वे चाहते थे कि जितनी पार्टियों को उन्होंने चुनाव लड़वाए हैं वे उनको अपना नेता मान लें। लेकिन किसी ने नहीं माना तो वे पदयात्रा कर रहे हैं। उसी तरह सिब्बल चाहते हैं कि जितनी प्रादेशिक पार्टियों के नेताओं के वे मुकदमे लड़ते हैं वो उनको अपना नेता मान लें। उनका यह भ्रम अपनी वकालत के कारण बना है।
इसका दूसरा कारण यह है कि वे कांग्रेस से सांसद बने, राजद के समर्थन से सांसद बने, अब समाजवादी पार्टी के समर्थन से बने हैं तो उनको लग रहा है कि वे सर्वदलीय नेता हैं और अपने आप उनका अधिकार बनता है कि वे विपक्ष के नेता बनें। लेकिन असल में वे नेता नहीं बन पाएंगे। वे वकील हैं और केंद्रीय एजेंसियों की जांच में फंसे नेताओं की पैरवी करते रहेंगे। उसके लिए सबको उनकी जरूरत है लेकिन नेता के तौर पर उनकी जरूरत किसी को नहीं है।