मकर संक्रांति यानी प्रकृति में क्रांति के प्रारंभ का दिन। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन से प्राकृतिक वातावरण में दिव्य परिवर्तन की शुरुआत होती है। जनजीवन में भी वास्तविक उल्लास का संचार होता है। मकर राशि में 15 जनवरी को प्रातः 7.34 बजे प्रवेश हो रहा है। अतः इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई जाएगी, पुण्य काल सूर्यास्त तक रहेगा।
सनातन धर्म में सूर्य जिस समय धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश या संक्रमण करते हैं, उसे मकर संक्रांति कहते हैं। वास्तव में मकर संक्रांति सूर्य उपासना का पर्व है। संक्रांति शब्द का अर्थ है सूर्य अथवा किसी भी ग्रह का एक राशि से दूसरी में प्रवेश करना। मकर राशि में प्रवेश करते ही भगवान भास्कर उत्तरायण हो जाते हैं। खरमास समाप्त हो जाता है और इसी के साथ शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। सूर्य जब कर्क राशि में आते हैं तो दक्षिणायन हो जाते हैं। इस काल में शुभ कार्य निषेध हो जाते हैं। उत्तरायण देवताओं का दिन और दक्षिणायन उनकी रात्रि मानी जाती है।
मकर संक्रांति पर नदियों में खानोपरांत अर्घ्य देकर भगवान भास्कर की विधिवत पूजा की जाती है। आदित्यहृयस्त्रोतम के पाठ से भास्कर प्रसन्ना होते हैं और श्रद्धालु को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। संक्रांति काल में गायत्री मंत्र और सूर्य सहस्त्रनाम जप करने का भी विधान है। साल में 12 संक्रांति होती हैं। इनका समय निश्चित होता है। हर 72-73 साल पर अयनांश एक अंश आगे बढ़ जाता है। इससे पृथ्वी की स्थिति कुछ पश्चिम की ओर हो जाती है। इस बदलाव के कारण मकर संक्रांति का समय भी बदल जाता है। अमूमन यह 14 जनवरी को ही मनाई जाती है, पर नियमित अंतराल पर इसका समय बदलता भी रहता है। वर्ष 2013 में भी मकर संक्रांति 15 साल बाद 15 जनवरी को पड़ी थी। इस बार भी 15 जनवरी को मनाई जा रही है।