Tuesday, October 22, 2024
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मेघालय की राजनीति में बीजेपी की भूमिका, ईसाई बहुल इलाके में जमीन तलाशती बीजेपी

नई दिल्ली, 27 फरवरी। मेघायल विधानसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों ने भले ही बड़ी तैयारी की हो पर यहां सबकी नजर बीजेपी पर होगी क्योंकि ईसाई बहुल राज्य में बीजेपी अकेले अपनी जमीन तलाशती दिखी। 2 मार्च को तय होगा किसके साथ कितने मतदाता हैं। पूर्वोत्तर के तीन चुनावी राज्यों में एक मेघालय में 27 फरवरी को मतदान हुआ और 2 मार्च को मतगणना होगी। हम आपको अपनी इस रिपोर्ट में बताएंगे कि मेघायल की सियासत में किसका जोर है, कौन से प्रमुख राजनीतक दल है और चुनावी तैयारियों को लेकर किस तरह की सरगर्मी के बीच मतदाता किसकी तरफ झुकी है।

पूर्वोत्तर भारत के मेघालय और नागालैंड में 27 फरवरी को नई विधानसभा के लिए वोट डाला  गयालजबकि त्रिपुरा के मतदाताओं ने बीते सप्ताह ही नई विधानसभा के लिए मतदान किया है। सेवन सिस्टर्स के नाम से मशहूर पूर्वोत्तर के सभी राज्य अपेक्षाकृत छोटे हैं, लेकिन अगर हम इन राज्यों से लोकसभा सीटों की कुल संख्या को देखें, तो हम समझ सकते हैं कि यहां के प्रत्येक राज्य के विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय स्तर पर क्यों महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

सबसे पहले एक नजर डालते हैं राज्य में हुए पिछले विधानसभा चुनाव के गणित पर। मेघालय में विधानसभा की 60 सीटें हैं मेघालय में बीजेपी, कांग्रेस, तृणामूल कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों को वर्चस्व है। क्षेत्रीय दलों में नेशनल पीपुल्स पार्टी, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, गारो नेशनल काउंसिल, खुन हैन्नीवट्रेप राष्ट्रीय जागृति आंदोलन, नार्थ ईस्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, मेघालय डेमोक्रेटिक पार्टी प्रमुख हैं। साल 2018 में यहां 59 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे। तब कांग्रेस यहां सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कांग्रेस को 21 सीटों पर जीत हासिल हुई है। एनपीपी दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई, जिसके खाते में 19 सीटें थी। वहीं बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि यूडीपी को 6 सीटें हासिल हुईं थी।

2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, हालांकि वो बहुमत से दूर थी। बीजेपी को महज 2  सीटें मिली थीं बावजूद इसके उसने नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के साथ गठबंधन करके यहां अपनी सरकार बना ली थी। इस बार कांग्रेस का यहां जनाधार नहीं दिख रहा है। कांग्रेस के विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। यानी यहां इस बार तृणमूल कांग्रेस का यहां असर देखने को मिल सकता है।

एक समय कांग्रेस ने लगभग सभी पूर्वोत्तर राज्यों पर शासन किया था,  लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी अब मेघालय में कमजोर नजर आ रही है। पूर्वोत्तर के पांच राज्यों के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (असम), माणिक साहा (त्रिपुरा), एन बीरेन सिंह (मणिपुर), पेमा खांडू (अरुणाचल प्रदेश), नेफियू रियो (नागालैंड) कांग्रेस के पूर्व नेता हैं और अब बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकारें चला रहे हैं। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद मेघालय में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी पार्टी थी, लेकिन इसके अधिकांश विधायक तृणमूल कांग्रेस और सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) सहित अन्य दलों में शामिल हो गए हैं।

मेघालय में कांग्रेस के पांच में से तीन विधायक हाल ही में एनपीपी में शामिल हुए हैं। मेघालय विधानसभा रिकॉर्ड के मुताबिक 60 सदस्यीय मेघालय विधानसभा में अब कांग्रेस के दो विधायक हैं।  इन दोनों विधायकों के भी जल्द ही अन्य पार्टियों में शामिल होने की संभावना है। कांग्रेस ने पहले सभी शेष पांच पार्टी विधायकों को एनपीपी नेतृत्व, विशेष रूप से मुख्यमंत्री और एनपीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कोनराड के संगमा के साथ मेलजोल के लिए निलंबित कर दिया था। कांग्रेस ने घोषणा की है कि वो मेघालय में विधानसभा चुनाव अकेले लड़ रही है।

वहीं इस बार मेघालय विधानसभा चुनाव में में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा का अहम रोल रहा। मेघालय में 2018 के चुनावों में बीजेपी और कोनराड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने अलग-अलग लड़ाई लड़ी थी। बीजेपी राज्य में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई और 47 सीटों पर लड़कर सिर्फ दो सीटों पर जीत हासिल की। लेकिन ये सरमा का जादू ही था, जिसने बीजेपी को एनपीपी के साथ सत्ता का आनंद लेने दिया। इस बार कोनराड संगमा की पार्टी कई मुद्दों पर लड़ाई में लगी हुई है, लेकिन हिमंत बिस्वा सरमा ही हैं, जो दोनों दलों के बीच गठबंधन पर अंतिम निर्णय लेंगे। उनके और कोनराड संगमा के बीच एक सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, जो असम और मेघालय के बीच लंबे समय से लंबित सीमा विवाद को आंशिक रूप से हल करने में प्रभावी साबित हुआ है।

असम और मेघालय के बीच 884।9 किमी लंबी अंतर्राज्यीय सीमा पर 12 स्थानों पर विवाद हैं। दोनों राज्यों ने पहले 12 विवादित क्षेत्रों में से छह को हल करने के लिए पिछले साल मार्च में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, जबकि शेष छह विवादित क्षेत्रों को हल करने के लिए चर्चा चल रही है।इस बीच असम से लगी विवादित सीमा से सटे इलाकों में रहने वाले मतदाताओं को मेघालय में आगामी विधानसभा चुनाव में वोट डालने की अनुमति दी जाएगी।

केंद्र में बीते नौ साल से शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी की उपस्थिति यहां काफ़ी समय तक नगण्य रही लेकिन 2014 से ही पूर्वोत्तर भारत में बीजेपी का उभार दिखा है। आज असम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा और मणिपुर में बीजेपी की अपनी सरकारें हैं।  मेघालय और नागालैंड में बीजेपी गठबंधन के साथ सत्ता में है। मिजोरम की स्थिति तो बेहद दिलचस्प है, वहां बीजेपी का इकलौता विधायक भले विपक्ष में बैठता हो लेकिन केंद्र में बीजेपी और जोरामथंगा की पार्टी एक साथ है। वास्तविकता यही है कि बीजेपी ने यहां पांव जमा लिया है। यह पांव किस तरह जमा है इसका अंदाज़ा मेघालय के चुनाव से लगाया जा सकता है। 70 प्रतिशत से अधिक ईसाईयों की आबादी वाले राज्य की सभी 60 सीटों पर बीजेपी चुनाव लड़ रही है। इस नज़रिए से देखें तो यह चुनाव ऐतिहासिक माना जा रहा है।

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