Friday, April 26, 2024
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हैदराबाद का आखिरी निज़ाम उस्मान अली खान

नेहा राठौर

उस्मान अली खान, यह हैदराबाद के आखिरी निज़ाम (राजा) थे, जिनके अंतिम संस्कार में अंतिम दर्शन के लिए 10 लाख लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। यह वह धर्मनिरपेक्ष निज़ाम थे, जिन्होंने अपने जीवन में कभी किसी भी धर्म में भेद नहीं किया। उन्होंने हर धार्मिक स्थल के लिए दान दिया। लोगों के मन में उनके लिए इतनी इज़्ज़त और प्यार था, जिसका अनुमान 24 फरवरी 1967 को उनकी मृत्यु के पश्चात लोगों की भीड़ के रूप में लगाया जा सकता है।

उस्मान अली का पूरा नाम निज़ाम उल मुल्क आसफ जाह सप्तम था। वे महबूब अली खान के दूसरे बेटे थे। उस्मान अली का जन्म 6 अप्रैल 1886 को हुआ था। इनका राज्याभिषेक 29 अगस्त 1911 को हुआ था। उस्मान अली एक कुशल निज़ाम थे, जिन्होंने अपनी प्रजा में कभी फ़र्क नहीं किया। हैदराबाद की प्रजा उन्हें प्यार से निज़ाम सरकार औऱ हुजूर-ए-निज़ाम कहकर पुकारती थी। आज भी भारत के इतिहास में उस्मान अली को सबसे धर्मनिरपेक्ष राजा माना जाता है।  

भारत में विलय

उस्मान अली 1911 से 1948 तक हैदराबाद रियासत के निज़ाम रहे, 1947 में विभाजन के समय निज़ाम ने एक स्वत्रंत राज्य की मांग की थी। वह न तो हिंदुस्तान में और न ही पाकिस्तान में शामिल होना चाहते थे। लेकिन भारत की सेनिय शक्ति के आगे उन्होंने हार मान ली और 1948 में हैदराबाद का भारत में विलय हो गया। इसके बाद हैदराबाद की प्रजा के दबाव डालने पर उस्मान अली को 26 जनवरी 1950 में हैदराबाद का पहला राजप्रमुख (राज्यपाल) बनाया गया। वे 1956 तक राजप्रमुख रहे। उसके बाद उनके राज्य को पड़ोसी राज्य में विलय कर दिया गया। फिर उन्होंने अपनी तीन पत्नियों के साथ सेवानिवृत्त जीवन बिताया और अपने नौकरों को पेंशन देकर उनका ध्यान रखा।

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एक वक्त था जब उस्मान को दुनिया का सबसे अमीर व्यक्ति माना जाता था। उस्मान के धनी होने का मुख्य स्त्रोत गोलकोंडा खान को माना जाता है, जो 19वीं शताब्दी में हैदराबाद और पूरे विश्व बाजार में हीरे की एकमात्र खान थी। इतना ही नहीं उन्होंने 1946 में इंगलैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय को हीरे का हार शादी के तोहफ़े के रूप में दिया था, जिसे निज़ाम ऑफ़ हैदराबाद नेकलेस के नाम से भी जाना जाता है।

उस्मान अली का देश को योगदान

उस्मान अली ने अपने जीवन में कई सार्वजनिक भवनों की स्थापना की जैसे—  हैदराबाद हाई कोर्ट, उस्मानिया जनरल अस्पताल, यूनानी अस्पताल, असेंबली हॉल, असफिया पुस्तकालय आदि। इसके अलावा उन्होंने अपने शासनकाल में अपने खर्च का 11 प्रतिशत शिक्षा में भी खर्च किया। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के लिए दस लाख का दान दिया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लिए पांच लाख का दान दिया और उस्मानिया विश्वविद्यालय की स्थापना की।

इतना ही नहीं उन्होंने डॉ बी आर अंबेडकर को मिलिंद एजुकेशन सोसाइटी बनाने के लिए ज़मीन भी दी। इनके अलावा और भी कई जगह उन्होंने दान देकर शिक्षा को प्रोत्साहित किया। उन्होंने 1941 को हैदराबाद स्टेट बैंक की स्थापना की। भारत के एयरोस्पेस में भी अपना योगदान दिया।

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उन्हें बाढ़ की रोकथाम के लिए आज भी किया जाता है। 1908 में एक बार मुसी बाढ़ के कारण 5000 लोगों की जान चली गई थी। इसका समाधान करने के लिए निज़ाम ने दो बड़ी झीले बनवाई जिनका नाम उस्मान सागर और हिमायत सागर रखा गया। हिमायत उनके बेटे का नाम था।

अंतिम यात्रा

उस्मान अली की मृत्यु 24 फरवरी 1967 को किंग कोठी पैलेस में हुआ था। उन्हें जूदी मस्जिद में दफनाया गया, जिसे उन्होंने अपने बेटे जवाड़ की याद में बनवाया था। जो छोटी उम्र में ही मर गया था। उस्मान अली की अंतिम यात्रा के दौरान शोकाकुल लोगों की संख्या इतनी अधिक थी कि हैदराबाद की सड़कें और फुटपाथ टूटे हुई चूडियों के टुकड़ों से भरे गए थे। क्योंकि तेलंगाना के रीति-रिवाजों के अनुसार, वहां की महिलाएं अपने करीबी रिश्तेदार की मौत पर अपनी चूडियों को तोड़ देती हैं। इस यात्रा में लोगों की भीड़ में सभी धर्म के लोग शामिल थे। बसें, गाड़ियों से सड़कें घिरी हुई थी। इस यात्रा के बाद उन्हें विधिवत तरिके  से दफ़ना दिया गया।

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