Wednesday, May 1, 2024
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महिलाओं की तरक्की में सुरक्षा बनी बाधक

नेहा राठौर

भारत में कोरोना के कारण बंद की हुए कार्यालय औरc अब खुल गई हैं। सभी अपने—अपने आफिस और कार्यक्षेत्रों में जाने लगे हैं। उनमें महिलाएं भी बड़ी संख्या में काम करती हैं। सुरक्षा के दृष्टिकोण से महिलाओं को कई परेशानियों और प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ रहा है।  कंपनियों द्वारा रात की शिफ्ट में महिलाओं को काम करने से मना कर दिया जाता है। बजाय इसके की वे नाइट शिफ्ट में महिलाओं की सुरक्षा और सुविधाओं पर ध्यान दे। रात की शिफ्ट नहीं मिलने से लड़कियों से कई मौक़े भी हाथ से निकल जाते हैं। जैसे रात की शिफ्ट का अलाउंस, रात को कम लोग होने के कारण बड़ी जिम्मेदारी संभालने का मौका और एक बराबरी का अहसास जो उन्हें मिलना चाहिए, उससे वह  वंचित रह जाती है।

इसी कारण साल 2020 में महिलाओं की श्रम शक्ति में ज़िम्मेदारी लगभग 19 प्रतिशत रही है, जबकि पुरुषों की 76 प्रतिशत रही है। इसके पीछे का कारण महिला सुरक्षा है। आज भी कई कंपनियां है जो महिलाओं को आगे बढ़ने का मौका नहीं दे रही है। जब भी किसी महिला का इंटरव्यू लिया जाता है तो उनसे पहले ही पूछ लिया जाता है कि उनके पास आने जाने की खुद की कोई सुविधा है या नहीं। अगर नहीं तो नौकरी भी नहीं देते। देखा जाए तो श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी और महिला सुरक्षा का मुद्दा कई बार उठाया जाता है, लेकिन बावजूद इसके कंपनियां इसे गंभीरता से नहीं लेती। बजाय अपनी कर्मचारी को सुरक्षा देने के उन्हें नौकरी ही नहीं देती।

स्वास्थ्य और कार्य स्थिति  

16 दिसंबर, 2012 में निर्भया गैंगरेप के बाद दिल्ली पुलिस ने निजी कंपनियों के लिए महिला कर्मचारियों को घर तक छोड़न की सुविधा देना को अनिवार्य किया गया था।   महिलाओं के रात की शिफ्ट में काम करने से जुड़े नियम भी बनाए जा चुके थे। 2018 में #Meetoo मूवमेंट के बाद कानून में कुछ फेरबदल कर दी गई थी।

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इसके बाद सितंबर 2020 में संसद में तीन श्रम संहिताएं पारित की गई है, जिसमें से एक व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता, 2020 है। इस विधेयक में श्रमिकों विशेषकर महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्य वातावरण की परिकल्पना की गई है और इसके नियम बनाए गए हैं, जो कुछ इस प्रकार है।

नियम :

इन नियमों के मुताबिक़ सुबह छह बजे से पहले और शाम को सात बजे के बाद महिलाओं के काम करने पर कंपनी को इन नियमों का पालन करना अनिवार्य होगा।

·         महिला कर्मचारी की सुरक्षा, छुट्टियां और काम के घंटों का ध्यान रखना जरूरी होगा।

·         सामाजिक सुरक्षा संहिता,2020(36 एफ 2020) के मुताबिक लाभ प्रावधानों के खिलाफ़ जाकर किसी भी महिला को नियुक्त नहीं किया जाएगा।

·         महिला शौचालय, वॉशरूम, पेयजल, महिला कर्मचारी के आने और जाने से संबंधित जगहों के साथ कार्यस्थल पर पूरी तरह रोशनी होनी चाहिए।

·         कंपनी सुरक्षित और स्वस्थ कार्य स्थितियां प्रान करें ताकि कोई महिला कर्मचारी अपनी नौकरी के संबंध में किसी चीज से वंचित ना रहे।

·         महिलाओं के काम करने की जगह के पास शौचालय और पीने के पानी की सुविधा भी होनी चाहिए।

·         कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम,2013 के प्रावधान का अनुपालन किया जाएगा।

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नियमों का पालन पर कंपनियां


नियम बनाने के बाद भी महिलाओं की स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। आज भी कई संगठित क्षेत्र में स्थितियां ऐसी है, जहां के कर्मचारियों की कोई अधिकृत जानकारी नहीं है। प्लेटफॉर्म इकोनॉमी यानी की डिजिटल प्लेटफॉर्म संगठित तो दिखता है लेकिन ये असंगठित है। कुछ कंपनियों का कहना है कि ओला, उबर और मीडिया जैसी कई कंपनियां है, जहां काम करने वाले लोग उनके कर्मचारी नहीं होते है, जब वो कंपनी के कर्मचारी ही नहीं होते तो उन पर कार्यस्थल के नियम कैसे लागू होंगे। कंपनी का कहना है कि वह कंवेंस के पैसे दे सकती है लेकिन वह कंवेंस उन्हें सुरक्षित उनके घर छोड़ेगी या नहीं यह कैसे कह सकते है। कंपनी यह भी कहती है कि उनके यहां काम करने वाली महिला कर्मचारी अगर रात को किसी और काम से बाहर जाती है तो उसकी ज़िम्मेदारी नहीं होगी।

कर्मचारी के प्रति कंपनियों की कई ज़िम्मेदारियां होती हैं। जैसे पीएफ, छुट्टियां, ओवरटाइम और सामाजिक सुरक्षा आदि लेकिन वह सिर्फ कार्यस्थल तक।

माना जाता है कि कार्यस्थल की स्थितियां सुधारना अच्छा कदम है लेकिन महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए कई और पक्षों पर भी गौर करना ज़रूरी है। जैसे घरेलू स्थिती आदि।

श्रम शक्ति में इस भागीदारी को बढ़ाने के लिए भी महिलाओं को हर क्षेत्र में आगे लाना ज़रूरी है. रात की शिफ्ट को बेहतर बनाना भी कार्यस्थल की स्थितियों को सुधारने का ही हिस्सा है जिससे महिला कर्मचारी सहज महसूस कर सकें और उन्हें प्रोत्साहन मिल सके।

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