कागा कुक्कुर का कहे कि कितने  पापी  हम……

आज सुबह अचानक एक काक व कुछ कुत्ते की आंसुओं से भरी व  सुलगते सवालों वाली बोलती आंखों से मेरी आंखें चार हुई । उनकी आंखों ने मेरी आँखों से न जाने क्या कहा कि तब से मुदित मन उदासी की अनचाही चादर ओढ़े गमगीन व गुमसुम है । हुआ यूं कि पानी की टंकी से जुड़े लोहे की पाइप पर कौवे का जोड़ा बैठ कर पानी के ओवरफ्लो होने का इंतजार कर रहा था। जैसे ही पानी निकला काक महोदय पानी पीने की तेजी में पाइप के सामने आ गए और उनके पंख पूरी तरह भीग गए । भीगे परों से उड़ नहीं पाए व  जमीन पर गिर पड़े । मैं उनके समीप पहुंचा तो पाया कि अनचाही  चोट का असहनीय दर्द  अपनी जगह, श्रीमान काक महोदय में भूख और प्यास की तड़प ज्यादे थी ।

 

पानी की तलाश में जेठ की तपती दोपहरी से लेकर तपाती रात भर भटके होंगे । थकान व कमजोरी के कारण पंजे की पकड़ कमजोर पड़ी होगी औऱ कौवा महोदय जमीन पर गिर पड़े होंगे । मैंने अपने रुमाल से पहले उनके पंख सुखाए, वो हिलने डुलने की स्थिति में नहीं थे । फिर मग में पानी लाकर पिलाया तो फड़फड़ाने की पोजीशन में आए । कुछ खिलाया तो उड़ने वाली मुद्रा बनी । पर बड़ी देर तक मेरे समीप बैठे रहे । न मुझे उनकी बोली आती है न वो मेरी मेरी जुबान समझते , हम क्या बात करते, हमारे बीच लगभग आधे घंटे तक स्नेहासिक्त मूकसंवाद हुआ । फिर मैंने उनकी भावनाओं स्वर देने की कोशिश की और एक गीत गुन गुना कर सुनाया ।
“तेरी नजरें तो .…गिला  करती हैं

तुमको भी मुझसे शिकायत होगी
आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी ।
उनकी आंखों की शिकायत हम सभी इंसानों से इतनी सी थी कि यदि ताल तलैया  न पाटे होते तो मेरी यह हालत न होती । अपने सुखों के लिए हमारा जीना व जीवन दुष्कर एवं दूभर कर दिया है । पीपल, बरगद, अशोक काट दिए जहां हमारा बसेरा होता था, उसकी जगह पेड़ नहीं लगाए, लगाए भी तो बोनसाई , किस काम का भाई । मेरा गाना काक महोदय को बेसुरा या बे ताल लगा, उड़ कर चले गए । मनीष की बात याद आई कि भैया आप भाषण दो तो दो लाख लोग दो घंटे तक मंत्र मुग्ध हो आपको सुनें , लेकिन आप गाओगे तो दो सेकंड भी कोई आपको झेल नहीं पायेगा । कर्कश कौआ भी दो ही सेकंड में दो नभ पार कर गया । काक महोदय की  जान बचाने के दम्भ में मैं खुद को दर्पीला पा रहा था । प्रभु राम खगराज जटायु को नहीं बचा पाए थे, मैंने उन्हीं की प्रेरणा से एक खग को बचा लिया । पर उस खग की बदहाली के जिम्मेदार भी तो हमीं है । टहलने निकला तो टब खाली पाया जिसे जानवरों को पानी पिलाने के लिए बनवाया था । उसमें चार बाल्टी पानी डाली , लौटते समय देखा कि एक कुत्ता उसे अपना बाथ टब बना दिया है । कुत्ते को भगाने की सोच ही रहा था कि दिमाग ने टोका कि कुत्ते में यह दुर्गुण हम इंसानों की संगत ने तो नहीं दे दिया । फ़ारसी में कहावत है तुखमे सोहबते असर, साथ से गुण-दुर्गुण फैलते हैं ।
हम चाहे जितना देवत्व या पैगम्बरी का दावा धूमधाम से करें, सच्चाई यह है कि मासूम बेजुबानों के अपराधी हैं । अपराधी भी पापी होने के स्तर तक हैं । हमने अपनी प्रजा से गद्दारी की है जिसकी कोई सजा नहीं । मनुष्य स्वयं को प्राणियों का राजा मानता है, कई अर्थों में है भी, इस कारण उसके आस- पास रहने वाले सभी चर-गोचर उसकी प्रजा हुए । आज हम हकमार राजा हैं । हक मार राजा प्रजा का अपराधी होता है ।
तुलसी बाबा ने भी मानस में लिखा है –
“जासु  राज  प्रिय  प्रजा दुखारी,
सो नृप अवसि नरक अधिकारी”

धर्म ने इसीलिए काग, स्वान व गाय को पितर कहा ताकि इनका जीवन हम पितरों की भांति सुखमय बनाये । काक, कागा, कौआ , तीनों एक हैं । गोवंश की परिधि में सिर्फ माता गाय ही नहीं काकी भैंस, पड़वा आदि भी आते हैं । स्वान कुत्ते को कहते हैं । धर्मराज का साथ अंत तक सिर्फ उनके स्वान ने ही निभाया था ।
आइए संकल्प लें कि अपने आस पास गोवंशिओं, स्वानों व कागों को जेठ में प्यासे नहीं मरने देंगे । तालाब खुदवाना हो सकता हो बस में नहीं हो, पर घर के सामने अथवा छत पर दो बाल्टी पानी तो रख ही सकते हैं ।

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