नीरज कुमार
डॉ. लोहिया ने भविष्यवाणी की थी कि केवल जयप्रकाश नारायण ही देश को हिला सकते हैं । वह सन 1977 में सिद्ध हो गया । डॉ. लोहिया को अपने विचार-शक्ति और सूझबूझ पर यह विश्वास तो था कि उन्होंने कहा, लोग मेरी बात सुनेंगे मेरी मृत्यु के बाद । एक बार कहा कि 50 वर्ष बाद मेरी आवाज सुनी जाएगी । दूसरी ओर उन्हें संतोष था कि भारत के गरीब और पिछड़े हुए या शोषित जन समझते हैं कि मैं उनका ही आदमी हूँ ।
परंतु । यह ऐसा रंगमंच बन गया जिसमें हर कोई निर्देशक, सूत्रधार और अभिनेता खुद बनना चाहता हैं । इस रंगमंच में युवाओ कि भागीदारी बढ़ाने के अपेक्षा खुद रंगमंच सजाना, खुद निर्देशन करना, खुद सूत्रधार कि भूमिका अदा करना और खुद अभिनेता बनना चाहता हैं । अँग्रेजी में एक शब्द हैं ‘सेल्फ आइडेंटिटी’ तथा हिन्दी में ‘अस्मिता’ के नाम से जाना जाता हैं । यह सेल्फ आइडेंटिटी समाजवादियों को हमेशा पीछा करती रहती हैं, और वह इससे निकल नहीं पता । सबसे पहली चुनौती सेल्फ आइडेंटिटी से निकलने कि चुनौती समाजवादियों के लिए जरूरी हैं ।
विज्ञान की अभूतपूर्व प्रगति, सुचना यांत्रिकी द्वारा कि गई क्रांति, विश्व की एकजुटता, रूस और उसके पड़ोसी देशों ने 1991 से पूंजीवाद की अधीनता स्वीकार करनी आरंभ कर दी थी । उसका एक नतीजा है भारी विषमता, बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी, आजकल की कमरतोड़ महंगाई और दुर्बल समुदायों पर बढ़े हुए अत्याचार । अलबता, न तो जनता गरमाती है न कोई नेता देश को हिला सकता हैं । इधर वे 50 वर्ष भी पूरे हो रहे हैं जब लोहिया समझते थे कि उनकी आवाज सुनी जाएगी । जनता सुनने को बेताब हैं । सुनानेवाले समाजवादी निर्देशक, सूत्रधार और अभिनेता का खेल खेलने में जुटे हैं । यह सही समय हैं कि डॉ. लोहिया की भविष्यवाणी को सार्थक किया जाये । यह एकजुटता से ही संभव हैं ।
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