–पत्रिका संवाददाता
नई दिल्ली ।एलजी से अधिकारों की जंग में आंशिक कामयाबी हासिल करने के बाद दिल्ली सरकार पूरी तरह से एक्टिव मोड में आ गयी है। वह उन तमाम वादों को पूरा करने के लिए बड़ी तेज़ी से काम क्र रही है जो वादे उन्होंने विधान सभा चुनाव के दौरान किये थे। उन्हें वादों में से एक दिल्ली को सीसीटीवी कैमरों से लेस करना भी था। दिल्ली सरकार इस योजना को तेज़ी से अमली जामा पहनाने में जुटी है। इसके लिए वह दिल्ली की जनता से सुझाव लेगी और पूरे शहर में सीसीटीवी कैमरा लगाने के तौर तरीके पर चर्चा के लिए सभी रेसीडेन्ट वेल्फेयर एसोसिएशनों और बाजार संघों के साथ जल्द ही बैठक करेगी।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के ट्वीट करके दी गयी जानकारी के अनुसार यह जानकारी केजरीवाल के उस दावे के एक दिन बाद सामने आई है जिसमें उन्होंने कहा था कि उप राज्यपाल अनिल बैजल द्वारा गठित एक समिति ने सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए पुलिस से अनिवार्य अनुमति लेने की सिफारिश की है।
केजरीवाल ने ट्वीट किया, दिल्ली सरकार पूरी दिल्ली में सीसीटीवी कैमरे लगाने पर बातचीत और तौर-तरीके पर चर्चा के लिए दिल्ली के सभी आरडब्ल्यूए (रेसीडेन्ट वेल्फेयर एसोसिएशन) और बाजार एसोसिएशनों के साथ बातचीत करेगी। कल एक ट्वीट में मुख्यमंत्री ने दावा किया था कि सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए अनिवार्य मंजूरी के प्रावधान से घूसखोरी में बढ़ोतरी होगी।
केजरीवाल ने कहा था कि सीसीटीवी लाइसेंस देने से पहले पुलिस क्या देखेगी? किस आधार पर पुलिस लाइसेंस देगी? इससे केवल घूसखोरी बढ़ेगी। यह महिला सुरक्षा के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि लाइसेंस हासिल करने तक दिल्ली में सभी मौजूदा कैमरे हटाने पड़ेंगे और सभी नए सीसीटीवी को लाइसेंस का इंतजार करना पड़ेगा।
एक सूत्र ने बताया था कि मई में बैजल ने राष्ट्रीय राजधानी की निजी और सरकारी इमारतों में सीसीटीवी कैमरे लगाने के नियमन के लिहाज से छह सदस्यीय समिति का गठन किया था। दिल्ली के प्रधान सचिव (गृह) मनोज परीदा की अध्यक्षता वाली समिति पूरे शहर में सीसीटीवी कैमरे लगाने और उन पर निगरानी की मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार कर रही है।