Saturday, July 27, 2024
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अष्विनी उपाध्याय बने “भारतीय मतदाता संगठन” संगठन प्रमुख, बैठक में लोकतान्त्रिक हालत पर हुयी चर्चा

–विमल वधावन
दिल्ली। देशभर में मतदातों के अधिकारों , चुनाव सुधारों और लोकतान्त्रिक मूल्यों के लिए काम कर रहे भारतीय मतदाता संघठन की कमान अब वरिष्ठ अधिवक्ता श्री  को सौप दी है। भारतीय मतदाता संघठन की कार्यकारणी की बैठक में खुद संघठन के संस्थापक अध्यक्ष श्री रिखब चंद जैन ने कार्यकारणी में यह प्रस्ताव रखा जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार तो कर लिया गया लेकिन साथ ही यह भी तय हुआ की श्री रिखब चंद जैन संघठन के ट्रस्ट मंडल के अध्यक्ष बने रहेंगे।
संघठन प्रमुख 75 वर्षीय श्री जैन कुछ समय से महसूस कर रहे थे की उनकी बढ़ती हुयी आयु की वजह से संघठन की गतिविधियां और तेज़ी और प्रभावी ढंग से बढे इसके लिए जरूरी है की किसी युवा और योग्य वक्ती को इसके जिम्मेदारी दे जाये। श्री रिखब जैन ने खुद यह प्रस्ताव रखते हुए कहा की वे चाहते है की उनके बाद भी यह संघठन देश में लोकतान्त्रिक मूल्यों और संघठन के मकसद को लेकर मजबूती के साथ बढ़ता रहे। 
शनिवार को हुयी संघठन की बैठक में देश में कर्नाटक, बंगाल सहित कई राज्यों के लोकतान्त्रिक मूल्यों और गुणवत्ता की गिरावट पर भी रिखब चंद जैन सहित प्रमुख लोगों ने चर्चा करते हुए चिंता व्यक्त की।
लोकतन्त्र की गुणवत्ता में बराबर गिरावट, आपराधिकतत्त्व का बढ़ता हुआ राजनीति में प्रभुत्व, धनबल – बाहुबल का चुनाव में नंगा नाच, आदर्शों की तिलांजलि देकर सभी पार्टियां आपराधिक लोगों के कंधों पर चलना चाहती है। जो कुछ बंगाल में हुआ, लोकतन्त्र की हत्या से कम नहीं। हाई कोर्ट के बार-बार हस्तक्षेप, चुनाव दौबारा करवाने के बावजूद हिंसा होती रही, ममता देखती रही। मतदाताओं को वोट देने नहीं दिया गया। प्रत्याशियों को नामांकन भरने नहीं दिया गया। क्या यहीं लोकतन्त्र हैं? भविष्य की पीढि़या कभी ऐसे नेताओं को माफ़ नहीं करेगी। लोकतन्त्र का अपहरण हुआ और मतदाताओं का अपमान हुआ।
प्राप्त जानकारियों के अनुसार कर्नाटक चुनाव हिन्दुस्तान के अब तक के सभी चुनावों से अधिकत्तम महंगा रहा है। कूटनीति ने फ्रेन्ड़ली मैच की जगह ले ली। शपथ लेने से पहले विधायक खरीदे और बेचे जाने लगें। निर्धारित सीमा से अनेक गुणा खर्च को देखते हुए तो चुनाव आयोग प्रत्येक चुने हुए विधायक की सदस्यता निरस्त करवा सकता है। अरबों रुपये नकद पकड़ें गए, शराब पकड़ी गई, लालच देने के लिए मुफ्त उपहारों और वादों की झड़ी लगी, ऊँच-नीच व्यक्तिगत स्त्तर पर नेताओं ने चुनाव प्रचार में लेन-देन की, यह लोकतन्त्र का उपहास है। कोई भी मतदाता ऐसा चुनाव और ऐसा लोकतन्त्र नहीं चाहता है। एक तरह से कर्नाटक चुनाव में मतदाताओं ने तो तीनों पार्टियों को ही खारिज कर दिया।
आपराधिकतत्त्व और स्वार्थीतत्त्व भारतीय राजनीति में और हावी हो उससे पहले पार्टियां पर लगाम लगानी जरुरी है। उन्हें रेगुलेट करना जरुरी है। पार्टीतन्त्र, राजतन्त्र और लोकतन्त्र एवं प्रशासन में सुधार बहुत समय से ऑवर ड्यू है। अभी कुछ नहीं किया गया तो पाकिस्तान और अफगानिस्तान की तरह भारत भी एक आतंकवादियों और अपराधियों द्वारा शासित देश हो जायेगा। भारतीय मतदाताओं और जनता को ऐसे दलदल से निकलने में फिर सैंकड़ों वर्ष लग सकते हैं।
विकास हो रहा है। विकास को गति भी मिल रही है लेकिन विकास की गति से भी तेज गति से भारत में अपराध बढ़ रहा है। बेटी बचाओं – बेटी पढ़ाओं तो ठीक है लेकिन बेटियां जब पढ़ने जाती है तो दुष्कर्म की शिकार हो रही हैं। अध्यापक, प्रोफेसर ही दुष्कर्मी हो गये। छोटी बच्चियां ही नहीं, समझदार ग्रेजुएट लड़कियां भी महाविद्यालयों और विद्यालयों में दुष्कर्म की शिकार हो रही हैं। लड़कियां अपने माँ या बाप या रिश्तेदारों से भी खतरे में रहती है। अपराध का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।
जब तक राजनीति और राजनैतिक पार्टियां अपराधमुक्त नहीं होगी भारत कभी भी अपराधमुक्त नहीं हो सकता है। न ही सुशासन आ सकता है। चार साल पहले भाजपा सरकार आने पर लगा कि सिद्धान्त पर चलने वाली पार्टी अवश्य अपनी घोषणाओं और आदर्शों के अनुसार भारत को अपराधमुक्त करेगी। राजनीति में शुचिता आयेगी। भारत ‘‘कांग्रेस मुक्त’’ हो या ना हो लेकिन ‘‘अपराधमुक्त’’ होना ही चाहिए। लेकिन चार वर्षों के दौरान हुए चुनाव प्रक्रियाओं से और चुनाव में खडे़ हुए प्रत्याशियों की अकूत सम्पदा और उसमें पांच वर्षों में अनेक गुणा अप्रत्याशित वृद्धि तथा प्रत्याशियों के स्वयं द्वारा घोषित अपराधों के उल्लेख में बढ़ोतरी यह सब दर्शाता है कि अपराधमुक्त करने वाली पार्टी स्वयं अपराधियों के कंधे पर चलना चाह रही है। अपराधी लोगों का पार्टी में प्रेवश और उन्हें प्रत्याशी बनने एवं बनाने में तथा मंत्री बनाने में कोई हिचक नहीं है। उदाहरण के लिए कर्नाटक में भाजपा के अपराधी प्रत्याशियों की संख्या 26 प्रतिशत और कांग्रेस में 15 प्रतिशत हैं। यह सब चौकाने वाली बात है। क्या सत्ता को हासिल करने के लिए अपराधियों का सहारा लेना चाहिए? उसका आखिरी अंजाम क्या होगा? पश्चिम बंगाल में गुंड़ागर्दी से सत्ता हासिल की जा रही है और सत्ता स्थानांतरण के लिए भी गुंडों एवं अपराधी लोगों का सहारा ले रहे हैं। केरल में भी ऐसी ही स्थिति है। तमिलनाडू में पैसे के बल पर चुनावी खेल हो रहा है। राजनीतिक पार्टियां अपने दलहित को छोड़कर राष्ट्रहित में कब काम करेगी? भ्रष्टाचार में कहीं कमी नहीं दिख रही है? जिस पार्टी से राजनीतिक शुचिता और निरअपराधिकरण की उम्मीद थी उनसे अब ऐसी उम्मीद करना सही नहीं होगा। ऐसे में आवश्यकता है कि प्रबुद्धजन नागरिक, मीडिया अपनी नींद तोड़कर जागृत हो और समय रहते कुछ करें। बढ़ते हुए अपराधिकरण का घड़ा जब भर जायेगा शायद तब कुछ करना सम्भव ही नहीं होगा।
भारतीय मतदाता संगठन के लिए ऐसी परिस्थितियों में जिम्मेदारी और भी बढ़ गयी है। इस आंदोलन को ओर मजबूत करने और इसमें भाग लेने के लिए समर्पित यौद्धाओं की आवश्यकता हैं। संगठन के सभी लोग इस संदर्भ में अधिक से अधिक समर्पित होगें और अधिक से अधिक लोगों को और पूरे देश को इस मुहिम में जोडे़गें। इस तरह के अभियान में लगे अन्य संस्थानों और व्यक्तिगत स्त्तर पर काम कर रहे संघर्षरत् लोगों को प्रोत्साहित करेगें। सभी एकजुट होकर ऐसी परिस्थितियों से निपटने का संकल्पबद्ध कार्यक्रम बनायें।
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