सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की लगातार निगरानी के बावजूद पिछले 29 वर्षों से यमुना साप नहीं हो पाई है। केजरीवाल सरकार के तमाम दावे झूटे साबित हुए हैं। ऐसे में यमुना की सफाई और कायाकल्प का जिम्मा अब उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने लिया है। यमुना के प्रदूषण को रोकने और निगरानी के लिए पहली बार प्रादेशिक सेना की तैनाती की जाएगी।
पिछले आठ वर्षों में दिल्ली में यमुना नदी का प्रदूषण भार दोगुना हो गया है। उपराज्यपाल कार्यालय ने दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के आंकड़ों का हवाला देते हुए इस आशय की जानकारी साझा की जो यमुना के प्रदीषण की गंभीरता को दर्शाती है। डीपीसीसी के आंकड़ों से पता चलता है कि जैविक आक्सीजन मांग (बीओडी) का स्तर 2014 से पल्ला में, जहां नदी दिल्ली में प्रवेश करती है, दो मिलीग्राम प्रति लीटर की अनुमेय सीमा के भीतर बना हुआ है। बीओडी जो पानी की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है। साथ ही एरोबिक सूक्ष्मजीवों द्वारा जल निकाय में मौजूद कार्बनिक पदार्थों को विघटित करने के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा है। बीओडी का स्तर तीन मिलीग्राम प्रति लीटर से कम अच्छा माना जाता है। ओखला बैराज में, जहां नदी दिल्ली छोड़ती है और उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है, बीओडी का स्तर 2014 में 32 मिलीग्राम प्रति लीटर से बढ़कर 2023 में 56 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया है।
इसके बाद ही उपराज्यपाल ने यमुना की सफाई का जिम्मा अपने हाथों में लिया है। उच्चस्तरीय समिति की बैठक के बाद उपराज्यपाल वीके सक्सेना यमुना के बाढ़ के मैदानों के लिए गहन सफाई अभियान शुरू करेंगे। इसमें सभी क्षेत्रों के गणमान्य लोग शामिल होंगे। एलजी इस मौके पर पहली बार यमुना सफाई अभियान में प्रादेशिक सेना का मसौदा तैयार करेंगे। प्रादेशिक सेना की 94 सदस्यीय कंपनी यमुना को प्रदूषित करने वाले सभी नालों और उप-नालों की जमीनी स्तर पर निगरानी करेगी। दिल्ली के उपराज्यपाल ने सीवर की डी सिल्टिंग, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) और कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीटीपी) समेत नालों की स्थिति, बाढ़ के मैदानों के पुनर्विकास और उद्योगों से होने वाले प्रदूषण पर शिकंजा कसने के लिए की गई कार्रवाई की समीक्षा की। बैठक के दौरान उपराज्यपाल ने नालों की देखरेख और स्वामित्व रखने वाली एजेंसियों(पीडब्ल्यूडी, एमसीडी, डीडीए, डीजेबी, डीएसआईआईडीसी) को मौके पर जाकर निरीक्षण के बाद 15 दिनों के भीतर उन सभी अवैध उप-नालों की एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा।
नालों को ट्रैप करने, सीवर लाइन से गाद निकालने,अनाधिकृत रिहायशी कॉलोनियों में सीवर नेटवर्क और जेजे क्लस्टर में ड्रेनेज संबंधित कार्यों की प्रगति और अगले 6 माह में सभी सभी प्रमुख उप नालों से होने वाले प्रदूषण को रोकने का काम पूरा कर लिया जाएगा। एलजी ने एजेंसियों को निर्धारित समय-सीमा में सख्ती से मानकों के मुताबिक कार्यों को पूरा करने को कहा। साथ ही चेतावनी दी कि परियोजना को लागू करने में किसी तरह की कोताही के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। अब तक नजफगढ़ नाले के 17 किलोमीटर हिस्से की सफाई की जा चुकी है और इनमें से 1.2 लाख घन मीटर गाद निकाला गया है। नजफगढ़ ड्रेन के 13 उप नाले पूरी तरह से ट्रैप किए गए। बारापुला, महारानी बाग और मोरी गेट ड्रेन को ट्रैप करने का काम सितंबर तक पूरा किया जाएगा। इससे यमुना में प्रवाहित होने वाले 48.14 एमजीडी सीवेज की जांच की जाएगी।
सितंबर तक पेरिफेरल सीवर लाइन की 200 किलोमीटर के दायरे को गाद मुक्त कर लिया जाएगा। 90 किलोमीटर की सीवर लाइनों को जून तक डी-सिल्ट किया जाएगा। नजफगढ़ ड्रेन के तिमारपुर से ख्याला तक 17 किलोमीटर की दूरी को साफ किया गया है। 573 कॉलोनियों में सीवर नेटवर्क डालने का काम चल रहा है। इनमें 264 कॉलोनियों में जून तक कार्य पूरा कर लिया जाएगा जबकि शेष 70 कॉलोनियों में सितंबर तक पूरा किया जाएगा।
यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए काफी संजादी प्रयास करने होंगे। हरियाणा के पानीपत, सोनीपत, करनाल जैसे कई शहरों का औद्योगिक अपशिष्ट सीधे यमुना में आ रहा है। इसी तरह दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर में भी छोटे-बड़े उद्योगों की संख्या काफी है और यहां से निकलने वाला जहरीला कचरा और पानी भी यमुना में गिरता है। ठंड के मौसम में यह समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है। ऐसे में यमुना को प्रदूषित होने से कैसे बचाया जा सकता है? यमुना के प्रदूषण से निपटने के लिए दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को मिलकर काम करने की जरूरत है, न कि राजनीति करने की। जब तक तीनों राज्य साथ बैठ कर चर्चा नहीं करेंगे, कार्ययोजनाओं पर कदम नहीं बढ़ाएंगे और एक दूसरे पर आरोप मढ़ते रहेंगे तो कोई नतीजा नहीं निकलने वाला, बल्कि दिनोंदिन यह संकट गहराता जाएगा।