जड़ से मिटाना है खसरा और रुबेला तो जरूर लगवाएं टीके, दिल्ली सरकार डेढ़ माह तक चलाएगी अभियान
If Measles and Rubella are to be eradicated from the root, then definitely get vaccinated. Delhi government will run the campaign for one and a half months.
दिल्ली सरकार के परिवार कल्याण निदेशालय ने खसरा व रुबेला की बीमारी को पूरी तरह खत्म करने के लिए एमआर (खसरा, रुबेला) टीके की तीसरी डोज देने का विशेष अभियान शुरू किया है। इसके तहत नौ माह की उम्र में बच्चों को एमआर टीका और 15 माह की उम्र में एमएमआर (मीजल्स मंप्स रुबेला) टीका दिया जाता है। फिर भी दिल्ली में खसरा व रुबेला से कई बच्चे पीड़ित होते हैं। इसके मद्देनजर परिवार कल्याण निदेशालय ने खसरा व रुबेला से बचाव के लिए टीके की तीसरी डोज देने का अभियान शुरू किया है।
यह टीका स्वतंत्र तथा रूबेला टीके, कंठमाला टीके तथा छोटी माता (छोटी चेचक) टीके (एमएमआर टीका तथा एमएमआरवी टीका) जैसे टीकों में संयोजन में मिलता है। यह टीका सभी प्रारूपों में समान रूप से काम करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, दुनिया के उन क्षेत्रों में इसे नौ माह की उम्र देने की अनुशंसा करता है जहां पर यह रोग आम है। इन क्षेत्रों में यह रोग आम नहीं है वहां इनको बारह माह की उम्र तक दिया दिया जाना भी ठीक है। यह एक जीवित टीका है। यह सूखे पाउडर के रूप में आता है तथा इसे त्वचा के नीचे या मांसपेशी में दिए जाने से पहले मिश्रित करने की जरूरत होती है। टीके के प्रभावी होने का निर्धारण रक्त की जांच से किया जा सकता है।
दिल्ली में सामान्य तौर पर रुटीन टीकाकरण अभियान के तहत सरकारी टीकाकरण केंद्रों में प्रत्येक बुधवार व शुक्रवार को बच्चों को टीका लगाया जाता है। निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह अभियान छह सप्ताह तक चलेगा। इस दौरान पांच वर्ष तक के करीब 10 लाख 76 बच्चों को एमआर टीके की तीसरी डोज दी जाएगी। रूटीन टीकाकरण अभियान के तहत बच्चों को खसरा व रुबेला से बचाव के लिए टीके की दो डोज पहले से दी जाती रही है।
खसरे का टीका एक ऐसा टीका है जो खसरे की रोकथाम में बहुत प्रभावी है। पहली खुराक के बाद नौ माह से अधिक की उम्र के 85% बच्चे तथा 12 माह से अधिक की उम्र वाले 95% बच्चे प्रतिरक्षित (सुरक्षित) हो जाते हैं। पहली खुराक के बाद जिन बच्चों में प्रतिरक्षा विकसित नहीं होती है, उनमें से लगभग सभी दूसरी खुराक के बाद सुरक्षित हो जाते हैं। जब किसी जनसंख्या में टीकाकरण की दर 93% से अधिक हो जाती है तो आम तौर पर खसरे का प्रकोप नहीं उभरता है। हालांकि टीकाकरण की दर घटने पर खसरा फिर से हो सकता है। इस टीकाकरण की प्रभावशीलता कई वर्षों तक प्रभावी रहती है। समय के साथ इसका कम प्रभावी होना अस्पष्ट है। यह वैक्सीन उस रोग के विरुद्ध रोकथाम कर सकता है यदि इसे रोग होने के कुछ-एक दिनों के अंदर दे दिया जाए।
2013 तक वैश्विक रूप से लगभग 85% बच्चों को इसे लगाया गया था। 2008 में कम से कम 192 देशों ने दो खुराकें दी हैं। इसे सबसे पहले 1963 में देना शुरु किया गया था।खसरा-कंठमाला-रूबेला (एमएमआर) का संयुक्त टीका पहली बार 1971 में देना शुरु किया गया था।[4] छोटी माता (छोटी चेचक) का टीका इसमें 2005 में जोड़ा गया जिसे एमएमआरवी टीका कहा जाता है। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की आवश्यक दवाओं की सूची में शामिल है, जो कि मूल स्वास्थ्य प्रणाली में जरूरी सबसे महत्वपूर्ण दवाओं की सूची है।
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