क्या सिद्धांतहीन गठबंधन सत्ता पर काबिज हो पाएगा ?

–तिलक राज कटारिया
26 जुलाई 2018 के सभी समाचार पत्रों में मराठाओं के द्वारा अपनी जातीय विशेष के लिए 16 प्रतिशत का विशेष आरक्षण की मांग हेतु हिंसा, तोड़फोड़ व उत्पात की खबरों को प्रमुखता से छापा है। क्या मराठाओं द्वारा निजी स्वार्थ की यह मांग जायज है ? श्रेष्ठ महापुरूष छत्रपति शिवाजी महाराज, जिन्होंने हिन्दू पद पादशाही राज्य की स्थापना की, क्या उनके अनुयायी वंशजों की यह जातीय विशेष की मांग न्यायोचित है ? ऐसे कई प्रश्न देश को उद्वेलित कर रहे हैं परंतु मराठाओं के द्वारा आरक्षण के नाम पर हिंसा करना एक ”शर्मनाक“ घटना है।
प्रश्न उठता है कि क्या जातीय विशेष अपने समुदाय वर्ग के लिए विशेष आरक्षण के नाम पर हिंसा करना उचित है ? क्या मराठा जाति पिछड़ी कौम है, जिन्हें आरक्षण की श्रेणी में रखना चाहिए ? और तो और क्या आरक्षण देने से समाज में सम स्थिति का निर्माण हो पा रही है ? क्या गत् 68 वर्षों में जब से आरक्षण देने की शुरूआत हुई – समाज में समता निर्माण हो पाई ? यदि नहीं तो विपक्षी दल जातीय विशेष के अलगावादी आंदोलनों को क्यों हवा देते हैं ?
वास्तव में आज जातिवाद, वर्गवाद व क्षेत्रवाद क्यों प्रभावी हो रहा है क्योंकि कोई अपने को जाट नेता कहलाने में गर्व महसूस करता है और कोई गुर्जर नेता, कोई पंजाबी नेता, कोई वैश्य, कोई बिहारी, कोई पहाड़ी और कोई मराठी आदि आदि। प्रश्न उठता है कि भारत माँ का गौरव बनने का सपना कौन साकार करेगा ? ये राजनेता तो सब कुछ समझते हुए भी न समझ बनने का नाटक करते दिखायी पड़ते हैं, क्योंकि जातीय अहम के भटकाव के कारण ही तो इनकी जय-जयकार होती है। इसी कारण ही ये नेता किसी न किसी जाति, वर्ग व समुदाय तक ही अपने को समेटे रहते हैं। मानों वर्ग व जाति समूह ही इनका हिन्दूस्तान है, भगवान है, सर्वस्व है। ये नेता अपनी जाति, वर्ग, समुदाय के लिए तो ऐसे कुतर्क करते हैं कि मानों इनकी जातीय हितों की अनदेखी हुई तो आज ही देश टूट जाएगा ? क्या देश की एकता इतनी कमजोर है कि जो इन नेताओं की धमकियों से टूट जाएगी ? परंतु इन नेताओं के कुतर्को के भ्रम जाल से व्यक्ति को बढ़ावा जरूर मिल रहा है। यह भ्रम जाल का भटकाव ही है कि सब टहनी, फूल व पत्ते अपने को मूल पेड़ समझ कर व्यवहार करते दिखायी पड़ते हैं। वर्ग हित को समग्रता का हित समझने की।
भूल ही देश को टुकड़े-टुकड़े के रूप में देखने की प्रवृत्ति को बढ़ा रही है। समय रहते यदि राष्ट्र चेतना जागृत न हुई तो ये नेता व्यक्तिवादी हितों को समग्रता का हित कराकर सदाचार के रूप में रूढ़ करने में संकोच नहीं करेंगे।
वास्तविकता तो यह है कि अलगाववादी सोच ही ”आरक्षण“ की मूल जड़ है। जिसके कारण ये राजनेता अपने स्वार्थ और व्यक्ति अहम की पूर्ति के लिए आपस में अनैतिक व सिद्धान्तहीन गठबंधन करने में भी गुरेज नहीं करते, क्योंकि यह जानते हैं कि समग्रता के नाते इनका अपना वजूद शून्य है। इसलिए अपने को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए जातीय आधार को अपना वोट बैंक बनाकर, उनके निजी जातीय स्वार्थों को उकसाने में कोई गुरेज नहीं करते और देश की एकजुटता को ताक पर रख देते हैं। समग्रता के विचार से तो यह कोसों मील दूर दिखायी देते हैं। कुछ क्षण पूर्व एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं और दूसरे क्षण एक दूसरे को गले लगाते दिखने लगते हैं, न कोई विचारधारा है, न कोई देश को आगे बढ़ाने की प्रमुखता का भाव, केवल और केवल सत्ता सुख भोगने की लोलुपता है। एक बार सत्ता किसी भी तरह मिल जाए बस फिर तो घोटालों की राजनीति शुरू हो जाती है और अपनी कुर्सी बचाने के लिए हर हथकण्डा अपनाने लगते हैं।
क्योंकि इनका समग्र आधार शून्य है केवल और केवल जातीय आधारित हैं इसलिए ही शून्य-शून्य आपस में मिलकर गठजोड़ की राजनीति करते हैं। गत् अनेकानेक वर्षो में जब-जब भी यह जनता को भ्रमित व गुमराह कर सत्ता में आए हैं तब-तब इनके शासनकाल में देश भ्रष्टाचार व कुशासन के कारण दिग्भ्रमित ही हुआ है। इन विपक्षी दलों के शासनकाल के कारनामे जगजाहिर हो चुके हैं। ये लोग भ्रष्टाचार के रूप में कुख्यात हो चुके हैं इसलिए ही जनता के सामने बेनकाब हो चुके दल अपने-अपने अस्तित्व के लिए नापाक गठबन्धन बनाकर देश को फिर से भ्रमित करना चाहते हैं तथा परिवारवाद व वंशवाद के पक्षधर हैं। राष्ट्र-देश की समग्रता का भाव शून्य है। देश की जनता यह समझ चुकी है कि अनैतिक व सिद्धान्तहीन गठजोड़ कभी परिणामकारक नहीं हुआ करता क्योंकि शून्य का शून्य से जोड़ शून्य ही होता है और तो और शून्य का शून्य से गुणा भी शून्य ही रहता है। अतः इनके योग व गुणा गठबन्धन का लाभ न तो इन दलों को होगा और न ही देश को। आखिर शून्य तो शून्य ही रहेंगे। एक तरफ सात्विक रामरूपी शक्तियां एकत्र हो रही हैं, दूसरी तरफ रावणरूपी राक्षसी ताकतें अपने वजूद की लड़ाई लड़ती दिखायी दे रही हैं। बहरहाल आज कुछ तो अलग ही होता हुआ दिखायी दे रहा है देश में, वरना कभी न दिखते सांप और नेवले एक खेत में। अतः अनैतिक गठबन्धन का भविष्य शून्य है और शून्य ही रहेगा।
यूं तो राजग के नेतृत्व में देश कुछ न कुछ कदम आगे बढ़ता दिखायी पड़ रहा है, गत् साढ़े चार वर्षों की प्रगति उल्लेखनीय कही जा सकती है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली ने एक आशा बोध जागृत किया है। एक भारतीय होने के नाते यह बात मन को छू ही जाती है कि आज भारत विश्व में सबसे आगे पाॅजीटिव ईमेज रखने वाला देश गिना जाने लगा है। विश्व में व्याप्त हिंसा के माहौल में एक शान्ति का संदेश देने वाला व लोकतंत्र का प्रहरी भारत सबका केन्द्र बिंदू बन रहा है। सूचना तकनीक की दृष्टि से एक मजबूत स्थिति में भारत खड़ा है। मुझे सबसे बड़ा बदलाव यह लगता है कि भारत अब अपने भविष्य को बेहतर करने के लिए इन्वेस्टमेंट कर रहा है। नए हाई-वे, मैट्रो व हाई स्पीड बुलेट ट्रेनें, निजीकरण व पब्लिक ट्रांसपोर्ट में सीएनजी का इस्तेमाल और सौर ऊर्जा का उत्पादन, कृषि व अन्तिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का विकास व उत्थान तथा समरसता को बढ़ावा देते हुए, पर्यावरण व स्वच्छता पर विशेष ध्यान और नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा तथा आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने की बुनियाद को मजबूती देना, दिखायी देने लगा है। कुल मिलाकर सुरंग के दूसरे पार से भी रोशनी दिखायी पड़ने लगी है।
भारत के खिलाफ अगर कुछ जाता है तो वह है भ्रष्टाचार और असहिष्णुता जिसे मीडिया ”लिंन्चिग“ की संज्ञा देने लगा है परंतु भारत के मस्तक पर भ्रष्टाचार – एक धब्बे के समान है। यधपि यूपीए के शासनकाल में लाखों-करोड़ों रूपये के घोटालों की तुलना में राजग सरकार पर अभी तक कोई घोटाले का दाग नहीं है, यह तो एक सुखद संकेत हंै परंतु समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार एक शिष्टाचार के रूप में पनप चुका है। जिस पर विजय पाना एक कठिन चुनौती है। यधपि इसकी रोकथाम में संसद में राजग सरकार ने यह बिल पेश कर घूस देने वाला और लेने वाला दोनों पक्ष समान रूप से दोषी व दण्ड के पात्र है, यह पहल एक सार्थक कदम है परंतु भ्रष्टाचार जो शिष्टाचार के रूप में रूढ़ हो चुका है, कही यह सदाचार न बन जाए, यह देखना भी बहुत जरूरी है। इस समस्या का निदान भी करना आज की महती आवश्यकता है।
बहरहाल आज देश में एक परिवर्तन की लहर, एक उमंग, बहुत दिनों के बाद एक सुखद हवा का झोंका सभी को महसूस होने लगा है इसलिए मन कह उठा है कि
”बाद मुद्दत के हवाएं आ रही हैं शिद्दत की चमन में,
मेरा वतन फिर से बागवां होगा,
मिलने जा रही है उड़ान, हर परिन्दे को फिर से यहां,
सारे जहां से अच्छा, मेरा हिन्दूस्तान होगा।
( लेखक दिल्ली नगर निगम में बीजेपी के वरिष्ठ नेता है )

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