Thursday, May 9, 2024
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ये कैसी आज़ादी जहां भाषा एवं इतिहास का सम्मान नहीं

डा. पुष्पा सिंह विसेन 

आज लाख समस्याओं के बीच दिल बहुत ही प्रसन्न था। लेकिन ज्यों ही मैं टेलीविजन खोली कि कोई देशभक्ति का प्रोग्राम देखूं। आज तक चैनल पर समाचार आ रहा था तभी ब्रेकिंग न्यूज में एक बहुत ही लघु सोच की खबर देख सुन कर हत प्रभ रह गयी।
एक प्राचीन इतिहास को बदलने की कुटिल चाल। हमारे देश में नाम बदलकर आखिर यह वर्तमान में केंद्र सरकार के लोग क्या साबित करना चाहते हैं? आधे कांग्रेस के लोग दलबदल कर इस सरकार में भी शामिल हैं।
फिर ऐसे फैसलों का विरोध न करने का एक ही कारण हो सकता है। निजस्वार्थ में लिप्त हो कर इतिहास को बदलने की घृणित सोच एवं स्वयं के स्वार्थपूर्ति के लिए हमारी मातृभाषा हिंदी जिसे हम अपनी राष्ट्र भाषा भी मानते हैं।उसे भी अंग्रेजियत के कारण दबाने कुचलने की कोशिश हो रही है। मैं किसी भी राजनीतिक पार्टी दल या व्यक्ति विशेष की समर्थक नहीं हूं। एक साहित्यकार होने के नाते अपनी लेखनधर्मिता निभा रही हूं।
(पीएम मेमोरियल एंड लाईब्रेरी) यह नाम रखना कितना सही है? भारत देश में रहने वाले इतने नादान भी नहीं है। प्रथम प्रधानमंत्री ने भी देश के लिए बहुत कुछ किया है यह हम सभी जानते हैं। नेहरु जी का नाम मिटाने की यह कोशिश एक ओछी हरकत है। जिस भी समूह ने इस फैसले पर अपनी सहमति दी है या वर्तमान सरकार का समर्थन किया है वह सभी लोग एक कुटिल चाल चलकर इतिहास बदलने के जिम्मेदार हैं।और हमारे राष्ट्रभाषा हिन्दी का भी अपमान करने में अग्रणी है उनकी भूमिका को समय याद रखेगा।
अगर नाम बदलने की इतनी इच्छा थी तो राष्ट्र भाषा हिंदी का ध्यान रखते हुए भी अपनी इच्छा पूरी की जा सकती थी।और हिंदी भाषा का सम्मान करते हुए ऐसे नाम बदलकर अपनी गरिमा को बनाए रखा जा सकता था।
प्रथम प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय
यह जो कुछ भी हुआ है वह घोर‌ निंदनीय एवं निजस्वार्थ के वश में होकर किया गया है। सभी हिंदी भाषा समर्थक साहित्यिक विद्वानों एवं हिंदी भाषी देशवासियों को सोचना चाहिए कि। हमारे देश में आज भी इतिहास एवं भाषा को दबाने कुचलने का प्रयास किया जा रहा है।ऐसा करना ठीक नहीं है। कांग्रेस के समय में भी अनेक विकास कार्य हुए हैं।जिसको हम सभी जानते हैं। कोई भी किसी की जगह नहीं ले सकता है। इस समय देश के हालात बहुत ही खराब हैं।यह सब पूरा देश जानता है। भारत का भला समरसता और मानवता में है। लेकिन यह सब कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। हमारे देश में भीतरघात लगाए बैठे लोगों को बढ़ावा देने और अराजकता फैलाने से कोई भी बाज नहीं आ रहा है। हिंदी भाषा का इतना अपमान आखिर क्यों?
जब भी कुछ ग़लत फैसले होते हैं तो बहुत ही ग्लानि मुझे महसूस होती है कि मैं अपने ही देश में यह सब होते क्यूं और कैसे देख रही हूं। तीन मूर्ति भवन कितना अच्छा लगता है।
अगर यह सब ऐसे ही चलता रहा तो यह देश एक ऐसी स्थिति में प्रवेश कर जाएगा जहां भारत की पहचान ,दल-बदल, नाम बदल, काम बदल।
मुफ्त खोरी, नशाखोरी के शिवाय कुछ भी नहीं रह जाएगा।
आखिर हमारी वर्तमान सरकार शिक्षा और चिकित्सा क्यों नहीं सभी के लिए मुफ्त कर रही है। क्योंकि कि सभी प्राइवेट स्कूलों, विश्वविद्यालयों एवं अस्पतालों के मालिक राजनीतिक लोग ही हैं। हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि आज भी कोई सच्चा इंसान देश को संभालने वाला नहीं मिला।
सभी की अपनी अपनी भूख थी,धन एकत्र करने की, नाम कमाने की। आज इसी का परिणाम है कि जिसकी लाठी उसकी भैंसवाला मुहावरा चरितार्थ करने से कोई परहेज नहीं कर पा रहा है।
कहते हैं कि अगर इतिहास बदलने की इतनी चाह है तो। प्राचीन इतिहास के समकक्ष आप अपनी कार्यशैली को विशाल स्वरुप देकर स्वयं को महिमा मंडित कर सकते हैं। क्या आवश्यकता थी देश के प्रथम प्रधानमंत्री संग्रहालय को सिर्फ पीएम शब्द करने की? मेरे इन प्रश्नों का उत्तर आखिर कौन देगा?
हम सभी साहित्यकार मनीषियों से कहना चाहते हैं कि आप सभी को अपनी हिंदी भाषा के लिए समर्पित भाव से ऐसे प्रतिष्ठित ऐतिहासिक भवनों पर अंग्रेजी भाषा में लिखे नामों, वाक्यों, शब्दों आदि का विरोध करना चाहिए। मैंवर्तमान में प्रोफेसर नामवर सिंह के द्वारा स्थापित एकमात्र संस्था नारायणी साहित्य अकादमीराष्ट्रीय अध्यक्ष हूं।जो भाषाई एकता एवंहिंदी भाषा के वर्चस्व के लिए दो दशकों से कार्यक्रम आयोजित करते हुए अपनी प्रतिबद्धता निभा रही हैं।और हम हिंदी भाषा को अपनी राष्ट्र भाषा मानते हैं।
यह जो भी काम हुआ है उसके संदर्भ में आप सभी सोचिए और उसको हिंदी में परिवर्तित करने के लिए अपने स्तर पर अपना प्रयास जारी रखिए।
प्रथम प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय
यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। हिंदी पखवाड़ा मना लेना भर ही नहीं हमारी जिम्मेदारी है। यह हम भारतीय हिंदी भाषा समर्थक एवं हिंदी भाषी देशवासियों को सोचना चाहिए कि किसी भी ऐतिहासिक भवनों पर हिंदी भाषा में ही कुछ भी लिखा जाना चाहिए।

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