नीरज कुमार
पूर्णिया फणीश्वर नाथ रेणु (4 मार्च 1921) की जन्म स्थली हैं | रेणु के पिता शिलानाथ मंडल संपन्न व्यक्ति थे | भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में उन्होंने भाग लिया था | रेणु सिर्फ सृजनात्मक व्यक्तित्व के स्वामी ही नहीं बल्कि एक सजग नागरिक और देशभक्त भी थे | 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने सक्रिय रूप से योगदान दिया | इस प्रकार एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई | इस चेतना का वे जीवनपर्यंत पालन करते रहे और सत्ता के दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहे | 1950 में बिहार के पड़ोसी देश नेपाल में राजशाही दमन बढ़ने पर वे नेपाल की जनता को राणाशाही के दमन और अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के संकल्प के साथ वहां पहुंचे और वहां की जनता द्वारा जो संघर्ष चल रहा था उसमें सक्रिय योगदान दिया | दमन और शोषण के विरुद्ध आजीवन संघर्षरत रहे रेणु ने सक्रिय राजनीति में भी हिस्सेदारी की | 1975 में लागू आपातकाल का जे. पी. के साथ उन्होंने भी कड़ा विरोद्ध किया |सत्ता के दमन चक्र के विरोध स्वरुप उन्होंने पदमश्री की मानद उपाधि लौटा दी | उनको न सिर्फ आपातकाल के विरोध में सक्रिय हिस्सेदारी के लिए पुलिस यातना झेलनी पड़ी बल्कि जेल भी जाना पड़ा | जयप्रकाश नारायण, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, मीनू मसानी, अचुत्य पटवर्धन, आचार्य नरेंद्र देव, अशोक मेहता से प्रभावित हो रेणु समाजवाद और बिहार सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए |
रेणु कि लेखन शैली प्रेमचंद से काफी मिलती थी इसलिए उन्हें आज़ादी के बाद का प्रेमचंद कहा जाता हैं | रेणु ने लगभग 63 कहानियां लिखी जिसमें ‘ठुमरी’, ‘अगिनखोर’, ‘आदिम रात्रि की महक’, ‘एक श्रावणी दोपहरी की धूप’, ‘अच्छे आदमी’, ‘सम्पूर्ण कहानियां’, आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं। रेणु की कई उपन्यास संग्रह भी जिसमें ‘मैला आँचल’ उनकी प्रसिद्ध उपन्यास हैं | इसके अलावा ‘जूलूस’, ‘दीर्घतपा’, ‘कितने चौराहे’, ‘परती परिकथा’ और ‘पल्टू बाबू रोड’ प्रसिद्ध हैं | कहानी उपन्यासों के अलावा उन्होंने संस्मरण, रेखाचित्र और रिपोर्टताज आदि विधाओं में भी लिखा। उनके कुछ संस्मरण भी काफ़ी मशहूर हुए। ‘ऋणजल धनजल’, ‘वन-तुलसी की गंध’, ‘श्रुत अश्रुत पूर्व’, ‘समय की शिला पर’, ‘आत्म परिचय’ उनके संस्मरण हैं। इसके अतिरिक्त वे ‘दिनमान पत्रिका’ में रिपोर्ताज भी लिखते थे। ‘नेपाली क्रांति कथा’ उनके रिपोर्ताज का उत्तम उदाहरण है।