Tribute to Lohia on his birth anniversary : महात्मा गांधी के बाद गरीब, भूखे-नंगे इंसानों के रहनुमा थे डॉ. राम मनोहर लोहिया
Dr. Ram Manohar Lohia
की मृत्यु के बाद देश में शोक का जो सैलाब आया, उससे यह साबित हो गया कि महात्मा गांधी के बाद यदि सही माने में देश के करोड़ो गरीब, भूखे-नंगे इंसानों का कोई रहनुमा था तो वह थे डॉ. राममनोहर लोहिया | डॉ. लोहिया ने अपने को आम जनता में इस तरह से मिला दिया था कि अनजान आदमी के लिए, जो डॉ. लोहिया को पहचानता न हो, यह समझ सकना प्रायः असंभव था कि उनके बीच खड़ा व्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय ख्याति का महान नेता डॉ. लोहिया है अथवा कोई साधारण कार्यकर्ता | एक बार लोहिया जी कहीं जा रहे थे | मोटर गाडी पर उनके साथ और भी कई कार्यकर्ता थे | रास्ते में कोई हलवाई जलेबी छान रहा था | लोहिया जी ने गाड़ी रुकवा दी | उतर पड़े | कुछ गर्म-गर्म जलेबियाँ तौलाई गईं | चलने के समय जब दूकानदार को पैसे दिए जाने लगे तो खासी परेशानी पैदा हो गई | हुआ यह कि जब लोहिया जी जलेबी खाने में मशगुल थे तभी किसी तरह दूकानदार को पता चल गया कि डॉ. लोहिया हैं | फिर क्या था ? दूकानदार पैसे लेने को तैयार ही नहीं हो और, लोहिया जी बिना पैसे दिये वहां से टलने को तैयार नहीं | दुकानदार का कहना था कि उसका सौभाग्य था कि डॉक्टर लोहिया ने उसकी दूकान पर जलेबी खाई, इसलिए वह पैसे नहीं ले सकता | लोहिया जी का कहना था कि यह हो नहीं सकता कि वे जलेबी खायें और पैसे न दें | बहस में समय बीत रहा था | अगली सभा में पहुँचने में देर हो रही थी | सभी लोग परेशान | अंत में लोहिया जी ने ही रास्ता निकाला | कहा- “अच्छा ! एक काम करो | तुम इन जलेबियों के तो भरपाई पैसे ले लो, और अपनी ओर से एक जलेबी दे दो, जो खाकर मैं तुम्हारी बात रख दूँ |” दूकानदार भी इस शर्त पर समझौते के लिए तैयार हो गया | ऐसे थे डॉ. लोहिया, आम लोगों में मिल जाने वाले |
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