Sunday, May 19, 2024
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सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या पर फैसला सुनाने वाले जजों के पद ?

 दिल्ली दर्पण टीवी 

यदि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश रिटायर होने के बाद लाभ के पद पर जाएंगे तो उंगली उठना स्वभाविक है। यदि ये न्यायाधीश राम मंदिर निर्माण का फैसला देने वाले हों तो फैसला भी प्रभावित होने की बात कही जाएगी। जस्टिस रंजन गोगोई को फैसले के 4 महीने बाद ही राज्यसभा सांसद बना दिया था। अब पूर्व न्यायाधीश अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया है। विपक्ष जस्टिस नजीर की नियुक्ति पर सवाल उठा रहा है। विपक्ष न्यायपालिका को खतरे में ऐसे ही नहीं बता रहा है ? जस्टिस नजीर अयोध्या राम मंदिर बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय पीठ का हिस्सा थे। पीठ ने साल 2019 में राम जन्मभूमि के पक्ष में फैसला सुनाया था।
जस्टिस नजीर के अलावा पीठ में मुख्य न्यायाधीश रहे रंजन गोगोई, न्यायाधीश शरद अरविन्द बोबडे, मौजूदा मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश अशोक भूषण थे। पांच जजों से चार ( जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस बोबडे, जस्टिस भूषण और जस्टिस नजीर) अब रिटायर्ड हो चुके हैं। यह बात देखने की है कि राम मंदिर बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाने वाले जज अब क्या कर रहे हैं। गोगोई तो 4 माह बाद ही पहुंच गए थे राज्य सभा
रंजन गोगोई तो उस समय उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश थे जब सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाया था। साथ ही वह फैसला सुनाने वाली पांच सदस्यीय पीठ के हिस्सा भी  थे। वह 17 नवम्बर 2019 को एक वर्ष से अधिक समय तक सीजेआई रहने के बाद सेवानिवृत्त हुए। अब इसे क्या कहा जाएगा कि तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविद ने राज्यसभा के लिए मनोनीत कर दिया था। ऐसा भी नहीं है कि रंजन गोगोई कोई पहले जस्टिस थे जो राज्यसभा में पहुंचे थे। उनसे पहले भी पूर्व पूर्व सीजेआई रंगनाथ मिश्र, जस्टिस मोहम्मद हिदायतुल्लाह और जस्टिस बहरुल इस्लाम) राज्यसभा में सांसद के रूप में बैठ चुके थे। पर देखने की बात यह है  कि उन जजों और जस्टिस गोगोई के राज्यसभा जाने में फर्क है। क्योंकि जस्टिस गोगोई सुप्रीम कोर्ट के पहले ऐसे न्यायाधीश हैं, जिन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया।

केंद्र ने जस्टिस भूषण को बनाया NCLAT को अध्यक्ष

 

जस्टिस अशोक भूषण जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए थे। रिटायरमेंट के चार महीने बाद ही केंद्र सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) का अध्यक्ष बना दिया। उनकी नियुक्ति चार साल के लिए की गयी थी। बता दें कि अशोक भूषण को 13 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था। उससे पहले वह केरल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे।

 

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के चांसलर हैं जस्टिस बोबडे

 

जस्टिस रंजन गोगोई के बाद जस्टिस शरद अरविंद बोबडे ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने थे। वह भारत के 47वें मुख्य न्यायाधीश थे। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बोबडे का आठ साल का कार्यकाल रहा। वह 23 अप्रैल, 2021 को सेवानिवृत्त हुए थे। रिटायर होने के बाद उन्होंने कोई आधिकारिक सार्वजनिक पद नहीं संभाला। वह मुंबई के महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी और नागपुर के महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के रूप में कार्यरत हैं।

 

50वें मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़

 

अयोध्या विवाद में फैसला सुनाने वाली पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ वर्तमान में भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं। उन्होंने नवंबर 2022 में भारत के 50 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद संभाला था। सीजेआई चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो साल यानी नवंबर 2024 तक का है।

 

राज्यपाल बना दिए गए जस्टिस नज़ीर

 

जस्टिस एस. अब्दुल नजीर जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए थे। रिटायरमेंट के महज एक माह बाद ही उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया है। रिटायरमेंट से ठीक पहले जस्टिस नज़ीर उस बेंच का हिस्सा थे, जिसने 2016 की नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया था।

पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस नज़ीर के अलावा जस्टिस वी रामसुब्रमण्यम, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थीं। जस्टिस नागरत्ना के अलावा चार जजों ने नोटबंदी को सही ठहराया था।

 

अरुण जेटली और नितिन गडकरी की राय

 

किसी जज को रिटायर होने के कितने दिन बाद पद दिया जाए, इस बारे में कोई कानून नहीं है लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी का मत है कि जजों के रिटायरमेंट और नई नियुक्ति के बीच दो साल का गैप होना चाहिए।

वहीं दिवंगत भाजपा नेता अरुण जेटली का मानना था कि रिटायरमेंट के पहले दिए जाने वाले फैसले रिटायरमेंट के बाद की नौकरी से प्रभावित होते हैं।

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