Saturday, July 27, 2024
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Sahara Protest : काश ठगी में कोई अवार्ड दे देता सुब्रत रॉय को!

सी.एस. राजपूत

ठगी करने में महारथ हासिल करने वाले सुब्रत रॉय ने अवार्ड देने वालों को भी नहीं छोड़ा। देश दुनिया के कई अवार्ड हासिल कर लिए। मतलब गोरखपुर से बहुत कम पूंजी से सहरा इंडिया की स्थापना करने वाले सुब्रत रॉय ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ पहुंचते ही अवार्ड हासिल कर लिया था। 1992 राष्ट्रीय सहारा अख़बार क्या शुरू किया कि उन्हें बाबा-ए-रोजगार पुरस्कार मिल गया। सुब्रत रॉय को अवार्ड मिलने का यह सिलसिला लगातार चलता रहा। 1994 में उद्यम श्री, 1995 कर्मवीर सम्मान, 2001 में राष्ट्रीय नागरिक पुरस्कार, 2002 सर्वश्रेष्ठ औद्योगिक पुरस्कार, 2002 वर्ष का उद्यमी पुरस्कार, 2004 को वैश्विक नेतृत्व पुरस्कार, वर्ष 2007 का टीवी आइकन पुरस्कार, 2010 में विशिष्ट राष्ट्रीय उड़ान सम्मान, 2010 में रोटरी इंटरनेशनल द्वारा उत्कृष्टता के लिए व्यावसायिक पुरस्कार, 2011 में लंदन में पॉवरब्रांड्स हॉल ऑफ फेम अवार्ड्स में बिजनेस आइकन ऑफ द ईयर अवार्ड, 2013 में पूर्वी लंदन विश्वविद्यालय से बिजनेस लीडरशिप में मानद डॉक्टरेट की उपाधि मिली।

सुब्रत रॉय को कई संस्थाओं ने कई अवार्ड दिए। काश कोई संस्था ठगी का अवार्ड भी दे देती। मतलब सुब्रत रॉय लेना ही सीखा है। देना नहीं। सहारा इंडिया पैरा बैंकिंग में सुब्रत रॉय ने ऐसी व्यवस्था बना रखी थी कि निवेशकों की स्कीम की समय सीमा पूरी होने पर उसके पैसों को दूसरे मद में कन्वर्ट कर दिया जाता था। आज यदि निवेशक और जमाकर्ता अपने भुगतान के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं तो यह उनके पैसों का क्यू शॉप में कन्वर्जन कराना ही है।


दरअसल सुब्रत राय देश में ऐसा नाम बन चुका है कि उसकी शासनिक और प्रशासनिक पकड़ इतनी जबरदस्त है कि देशभर में उनके खिलाफ तमाम एफआईआर दर्ज होने के बावजूद उनका कुछ नहीं बिगड़ पा रहा है। सेबी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को झांसा देने में सुब्रत राय सफल होते प्रतीत हो रहे हैं। राजनीतिक दलों की बात करें तो सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में तो सुब्रत रॉय ऐसी पैठ है कि दर-दर की ठोकरें खा रहे निवेशकों और जमाकर्ताओं का साथ देने को कोई तैयार नहीं। दो लाख करोड़ से ऊपर का भुगतान सहारा इंडिया पर बताने वाले निवेशक लगातार जहां आंदोलन कर रहे हैं वहीं सुब्रत राय के साथ ही दूसरे निदेशकों के खिलाफ भी मुकदमे दर्ज करवा रहे हैं। सेंट्रल रजिस्ट्रार से लेकर विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों सहकारिता मंत्रालय देख रहे गृहमंत्री अमित शाह, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी भुगतान दिलाने के आवेदन भेजे जा रहे हैं। सब कुछ हो रहा है पर निवेशकों का भुगतान नहीं मिल पा रहा है। अभव देव शुक्ला की अगुआई में चल रहे ऑल इंडिया जन आंदोलन संघर्ष मोर्चा, मदन लाल आजाद के नेतृत्व में चल रहे ठगी पीड़ित जमाकर्ता परिवार और अमन श्रीवास्तव की देखरेख में चल रहे अखिल भारतीय जन कल्याण मंच लगातार आंदोलन कर रहे हैं पर सुब्रत राय पर इन सबका कोई असर नहीं पड़ रहा है।

दरअसल सुब्रत रॉय ने ठगी की तो ऐसी की कि न तो अपने निवेशकों को छोड़ा, न अपने जमाकर्ताओं को और न ही अपने कर्मचारियों को। यहां तक कारगिल में शहीद हुए हमारे सैनिकों के परिजनों को भी मदद देने के नाम पर अपने ही कर्मचारियों को 10 साल तक ठगा। यहां तक कि जेल से छुड़ाने के नाम भी अपने कर्मचारियों को ठग लिया। जेल में छुड़ाने के नाम पर सुब्रत रॉय अपने ही कर्मचारियों से की गई ठगी लगभग 12.5  सौ करोड़ बताई जाती है। यह मुद्दा सहारा मीडिया में आंदोलन होते समय जब आंदोलनकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल तिहाड़ जेल में सुब्रत रॉय से मिला तो यह मुद्दा उठा।

इस पर सुब्रत रॉय ने जवाब दिया था कि उन्हें किसी दूसरे मद में पैसों की जरूरत थी। इसलिए उन्हें अपने कर्मचारियों को पत्र लिखा। दरअसल उस समय सुब्रत रॉय ने अपने कर्मचारियों को पत्र लिखा था कि उनका स्वाभिमान जेल में बंद है। मुझे छुड़ाने के लिए मेरी आर्थिक मदद करें। उस समय जब कई महीने से वेतन नहीं मिला था तो किसी कर्मचारी ने कर्जा लेकर तो किसी ने अपनी पत्नी के जेवर बेचकर सुब्रत रॉय को जेल से छुड़ाने के पैसे दिए पर सुब्रत रॉय ने वे पैसे सेबी को नहीं दिया बल्कि अपने खर्चे में लगा लिए। इस व्यक्ति ने नेताओं, ब्यूरोक्रेट्स, खिलाड़ियों, अभिनेताओं और अभिनेत्रियों सभी को मौज मस्ती कराई पर जिनकी मेहनत से ये सब पैसा आ रहा था उनको दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया गया। अब उनको पैसे देने को यह व्यक्ति तैयार नहीं है। सहारा सेबी विवाद में उलझाए हुए है।


दरअसल सुब्रत रॉय देश का वह उद्योगपति हैं, जिसका दावा रहा है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से मात्र 2 हजार रुपए और तीन लोगों से अपना कारोबार शुरू किया था और देश में रेलवे के बाद सबसे अधिक रोजगार देने वाला सहारा ग्रुप खड़ा किया। सुब्रत रॉय को वैसे तो सहारा में सहारा श्री कहकर बुलाते हैं पर वह अपने को सहारा परिवार का अभिभावक बताते हैं। मतलब एक अभिभावक खुद तो मौज मार रहा है पर उसके वे परिजन जिन्होंने उसे बुलंदी पर पहुंचाया वे बेबसी और जलालत भरी जिंदगी जी रहे हैं। हां सुब्रत रॉय का अपना परिवार मौज में है। दरअसल सुब्रत रॉय ने वर्ष 1978 में सहारा की स्थापना की थी और 2004 तक सहारा कंपनी भारत में सबसे सफल समूह में से एक बनकर खड़ी हो गई थी। सुब्रत रॉय का दावा था कि सहारा इंडिया भारतीय रेलवे के बाद भारत में दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है। इसमें दो राय नहीं कि दो दशकों के बाद सुब्रत रॉय की सहारा इंडिया परिवार कंपनी नई ऊंचाइयों पर पहुंच चुकी थी। यह कंपनी का विस्तार रूप लेना ही था कि सुब्रत रॉय को ‘भारत के 10 सबसे शक्तिशाली लोगों’ की सूची में शामिल किया गया था। इसके अलावा सहारा समूह ने देश भर में 5,000 से अधिक प्रतिष्ठानों में अपने संचालन का विस्तार कर लिया था। किसी समय सुब्रत रॉय का दावा था कि सहारा इंडिया परिवार लगभग 1.4 मिलियन लोगों को रोजगार दे रहा है।

बताया जाता है कि सुब्रत रॉय अपने करियर की शुरुआत में अपने लैंब्रेटा स्कूटर पर नमकीन स्नैक्स बेचते थे। दरअसल सुब्रत राय ने गोरखपुर में एकल बस्ती के रूप में सहारा इंडिया की स्थापना की थी। उन्होंने कारगिल शहीदों के 127 परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करने का दावा किया था, वह बात दूसरी है कि कारगिल शहीदों के परिजनों को मदद देने के नाम पर सहारा कर्मचारियों से 10 साल तक पैसे काटे गए थे ।

यह अपने आप में दिलचस्प है कि सहारा इंडिया 2002 से 2013 तक सबसे लंबी अवधि तक भारतीय क्रिकेट टीम का आधिकारिक प्रायोजक भी रहा है। हालांकि यह सब उस पैसे के दम पर हो रहा था, जिसके लिए निवेशक और जमाकर्ता आंदोलन कर रहा है। दरअसल कुछ साल  गोरखपुर में काम करने के बाद सुब्रत रॉय 1990 के दशक में लखनऊ चले गए थे। लखनऊ ही सहारा समूह का आधार बना। लखनऊ से ही सुब्रत रॉय को लॉन्च किया गया था। यह वह समय था कि सहारा का दबदबा कई क्षेत्रों में बढ़ गया था। सुब्रत रॉय का यह रुतबा वित्तीय सेवाओं, रियल एस्टेट, मीडिया, मनोरंजन, पर्यटन, स्वास्थ्य देखभाल और आतिथ्य के क्षेत्रों तक था। 1992 में राष्ट्रीय अख़बार तो बाद सहारा टीवी लॉन्च किया, जिसे बाद में 2000 में ‘सहारा वन’ नाम दिया गया। आज की तारीख में सहारा समय के रूप में सहारा के चैनल को जानते हैं।
सहारा इंडिया के पास 10 करोड़ रुपये से अधिक के निवेशक और जमाकर्ता बताये जाते हैं, जिनकी भारत में लगभग 13 प्रतिशत घरों में हिस्सेदारी बताई जाती है। यह भी अपने आप में दिलचस्प है कि सहारा इंडिया पैराबैंकिंग पर जब रिजर्व बैंक और सरकार ने शिकंजा कस दिया और सहारा निवेशक कई साल से अपने भुगतान के लिए सड़कों पर हैं तो 2019 में सहारा ने अपना इलेक्ट्रिक वाहन (EV) ब्रांड ‘सहारा इवॉल्स’ नाम से लॉन्च किया है।

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