Charan Singh Rajput
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की धरती क्रांति के लिए बड़ी उपजाऊ रही है। चाहे राजतंत्र हो या फिर लोकतंत्र। इस क्षेत्र ने एक से बढ़कर एक बागी दिये हैं। बात आजादी की लड़ाई और उसके बाद की करें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर अन्याय के खिलाफ आवाज उठी है। वैसे तो इस क्षेत्र में हजारों बागी हुए हैं पर मुख्य रूप से 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में मंगल पांडे को फांसी देने के बाद जहां धन सिंह कोतवाल ने अंग्रेजी रेजिमेंट पर फायरिंग कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका था तो वहीं आजाद भारत में पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की विदेशी नीति का विरोध करने वाले किसान नेता पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह थे। 1962 में चीन से हुए युद्ध में जब चीन के जमीन कब्जाने का मुद्दा उठा तो पंडित नेहरू के जमीन को बंजर बताने पर बिजनौर क्षेत्र महावीर त्यागी ने देहरादून के सांसद रहते हुए अपनी टोपी सिर से उतारकर कहा था कि तो फिर मेरे सिर पर भी कोई बाल नहीं है।
किसानों की आवाज उठाने के लिए चौधरी चरण सिंह के बाद सरकारों से बगावत करने वाले भाकियू के संस्थापक चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत थे। मोदी सरकार द्वारा पूंजीपतियों के पक्ष और किसानों की बर्बादी के लिए बनाये गये तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ चले किसान आंदोलन का चेहरा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत बने। जब मोदी सरकार ने सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स के बल पर विपक्ष पर शिकंजा कस रखा है तो जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल रहे पुराने समाजवादी सत्यपाल मलिक ने पुलवामा हमले में केंद्र सरकार और खुफिया एजेंसियों की खामियां बताकर मोदी सरकार के खिलाफ खुली बगावत कर दी है।
दरअसल वरिष्ठ पत्रकार करण थापर और रवीश कुमार को दिये अपने इंटरव्यू में सत्यपाल मलिक ने पुलवामा हमले में केंद्र सरकार और खुफिया एजेंसियों की कमियों को उजागर किया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने सीआरपीएफ जवानों को सड़क के रास्ते के बजाय एयर लिफ्ट करके ले जाने का प्रस्ताव दिया था पर गृह मंत्रालय ने उसे ठुकरा दिया था। मजबूरन सीआरपीएफ के जवानों को सड़क मार्ग से ले जाना पह़ा। उनके अनुसार केंद्र सरकार के मामले को गंभीरता से न लेने की वजह से पुलवामा हमला हुआ और ४० सैनिक शहीद हो गये। सत्यपाल मलिक ने हादसा उनकी लापरवाही से होना कहा तो प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एनएसए ने उन्हें चुप रहने के लिए कहा। पूरा विपक्ष मामले को लेकर मोदी सरकार पर हमलावर है पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुप्पी साध ली है। हालांकि पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल शंकर राय चौधरी की मामले में प्रतिक्रिया आई है। जनरल शंकर राय चौधरी ने टेलीग्राफ से बात करते हुए कहा है कि पुलवामा नरसंहार को टाला जा सकता था। उनका कहना है कि यदि कमजोर विकल्प वाली सड़क मार्ग से मूवमेंट के बजाय हवाई मार्ग से श्रीनगर की यात्रा की होती तो यह मामला टाला जा सकता है।
दरअसल पुलवामा हमला फरवरी 2019 में हुआ था। तब पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले में विस्फोटकों से भरी एक कार से एक बस ने सीआरपीएफ जवानों से भरी एक बस में टक्कर मार दी थी। इस विस्फोट में 40 सैनिक शहीद हो गये थे। दरअसल यह एक आतंकी हमला था। यह वही हमला था जिसके बल पर बीजेपी ने 2019 में फिर से सरकार बनाई थी। हालांकि पुलवामा हमले के बाद बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक हुई। इस पर भी सवाल उठे।
पुलवामा हमले के बाद बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक की उपलब्धियों पर भी सवाल उठे। देखने की बात यह है कि पुलवामा हमला कैसे हुआ ? इसकी विस्तृत जांच की विपक्ष की मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। भाजपा पर उठने वाली हर उंगली को राष्ट्रविरोधी करार दे दिया गया। इसमें दो राय नहीं कि भले ही पुलवामा हमला पाक से आए आतंकवादियों ने किया हो, बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक में हमने उनका बदला ले लिया हो पर जिस चूक की वजह से 40 सैनिक शहीद हो गये, क्या उसका थोड़ा सा भी एहसास मोदी सरकार को है। कोई बताएगा कि पुलवामा हमले में कौन कौन अफसर दंडित हुए ? शहीद हुए सैनिकों के परिजनों को क्या-क्या राहत दी गई ? आखिर सत्यपाल मलिक को विमान देने को क्यों मना कर दिया गया ? क्या सरकार के पास विमान नहीं थे ? या फिर मामला कुछ और था। आखिरकार 40 सैनिकों की शहादत का जिम्मेदार कौन है ?