Friday, May 17, 2024
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Manipur Violence : गैर जवाबदेह पीएम साबित हुए मोदी!

चरण सिंह राजपूत 

क्या किसी देश का प्रधानमंत्री बस एक समुदाय को होता है ? क्या प्रधानमंत्री की सभी समुदायों की रक्षा की जिम्मेदारी नहीं है ? क्या प्रधानमंत्री अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से बच सकता है ? क्या प्रधानमंत्री को हर कार्यक्रम में विपक्ष को हो कोसना चाहिए ? क्या प्रधानमंत्री को जनता से ज्यादा चिंता चुनाव की होनी चाहिए ?  किसी अनपढ़ व्यक्ति से भी पूछेंगे तो यही कहेगा कि प्रधानमंत्री पूरे देश का होता है। उनकी जिम्मेदारी और जवाबदेही सभी समुदायों की रक्षा की होती है। प्रधानमंत्री को चुनाव से ज्यादा चिंता जनता की होनी चाहिए।

क्या हमारे प्रधानमंत्री इस सब बातों पर खरा उतर रहे हैं ? क्या प्रधानमंत्री हर कार्यक्रम में विपक्ष को ही नहीं कोसने लगते ? क्या प्रधानमंत्री की हर गतिविधि हिन्दू वोटबैंक के इर्द गिर्द नहीं होती ? क्या प्रधानमंत्री मुस्लिम, सिख ईसाई समुदाय पर होने वाले अन्याय को अनदेखा नहीं करते ? क्या प्रधानमंत्री देश के लोगों से ज्यादा एनआरआई के बीच में रहना पसंद नहीं करते ? क्या उन्हें देश से ज्यादा विदेश में रहना पसंद नहीं है ? क्या मणिपुर मामले पर प्रधानमंत्री की चुप्पी एक रणनीति के तहत नहीं रही है ? क्या मॉब लिंचिंग मामलों में पीएम का गैर जिम्मेदाराना रवैया नहीं रहा है ? क्या पीएम मोदी मणिपुर मामले में बोलने से बचते नहीं रहे हैं ?


यही सब वजह रही कि जब मणिपुर हिंसा पर संसद में आने से बचते रहे तो विपक्ष  को अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा। जब अविश्वास प्रस्ताव पर उन्हें आकर बोलना पड़ा तो उनका भाषण कांग्रेस और विपक्ष की कमियां निकालने में ही ख़त्म हो रहा था। आखिरकार विपक्ष उनका प्रवचन कब तक सुनता और वाकआउट कर गया। अब प्रधानमंत्री मोदी को देखिये कि पश्चिमी बंगाल में क्षेत्रीय पंचायती राज परिषद को संबोधित करते हुए भी वह कह रहे हैं कि विपक्ष ने मणिपुर के लोगों के साथ विश्वासघात किया। उन्होंने यह भी कहा कि वोटिंग से घमंडिया गठबंधन की पोल खुल गई। अरे भाई जब प्रचंड बहुमत के साथ सरकार चल रही है तो फिर अविश्वास प्रस्ताव गिरना ही था पर पीएम तो संसद में भी मणिपुर पर नहीं बोले। क्या यह जमीनी हकीकत नहीं है कि मणिपुर जलता रहा और पीएम मोदी ढाई महीने तक मणिपुर हिंसा पर एक शब्द भी नहीं बोले। जब दो महिलाओं को निर्वस्त्र परेड करानी की वीडियो वायरल हुई तो मोदी मात्र 21 सेकेंड ही बोले। उसमें भी उन्होंने मणिपुर का हालात न संभाल पाने के लिए कोई अफ़सोस जाहिर नहीं किया। इतना ही नहीं कि उन्होंने देश के शोर मचाने के बाद भी मणिपुर हिंसा रोकने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाये और मणिपुर से विश्वासघात विपक्ष कर रहा है।  पश्चिम बंगाल में क्षेत्रीय पंचायती राज परिषद को संबोधित करते हुए उनके निशाने पर विपक्ष ही रहा। उन्होंने कहा कि पूरे देश ने देखा विपक्ष के लोग सदन से भाग गए। और क्या करते ? पीएम का चुनावी भाषण सुनते ? खुद मोदी ही बताएं कि मणिपुर पर वह कितना बोले ? अविश्वास प्रस्ताव तो मणिपुर पर था न कि विपक्ष पर फिर मोदी को मणिपुर पर बोलना चाहिए था न कि विपक्ष पर।

पीएम का बोलने का स्तर देखिये कि वह विपक्ष के लिए बोल रहे हैं कि यह विपक्ष की पुरानी आदत है कि गाली दो फिर भाग जाओ, कूड़ा फेंको भाग जाओ। इनके पास सुनने का धैर्य नहीं है। मतलब पीएम की बिना मतलब की बात सुनते रहें सभी। मोदी पीएम वाला भाषण नहीं देते वह विपक्ष के नेता का भाषण देने लगते हैं। मोदी ऐसे बोलते हैं कि जैसे अभी भी कांग्रेस की ही सरकार चल रही है। अरे भाई कांग्रेस के खामियां थी तभी तो जनता ने देश की बागडोर आपके हाथ में सौंपी है। मतलब जो सरकार के खिलाफ बोले वह निगेटिव सोच रखने वाला व्यक्ति है। जो व्यक्ति मोदी की तारीफ करे वह सकारात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति है। यह है आज की सकारात्मक और नकारात्मक सोच की परिभाषा।
पीएम का बोलने से बचने का तरीका देखिये कि उन्होंने संसद में कहा कि सत्र प्रारंभ होने से पहले देश के गृह मंत्री ने इन राजनीतिक दलों को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वो तत्काल मणिपुर की चर्चा करना चाहते हैं। पीएम का कहना था कि इतने संवेदनशील विषय पर पक्ष-विपक्ष में बात होती तो मणिपुर के लोगों को भी मरहम लगता और समस्या के समाधान के कुछ नए रास्ते भी निकल आते लेकिन ये लोग मणिपुर पर चर्चा नहीं चाहते थे। मोदी ने यह भी कहा था कि उनको मालूम था कि मणिपुर का सच सबसे ज्यादा उनको चुभने वाला है। उनको मणिपुर के नागरिकों के दुःख-दर्द और पीड़ा की परवाह नहीं थी। क्या पीएम मोदी को यह नहीं बोलना चाहिए था कि उन्होंने मणिपुर हिंसा रोकने के लिए क्या किया ? उन्होंने मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह पर क्या एक्शन लिया ?

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