संवाददाता
संपूर्ण विश्व में प्राचीन काल से आयुर्वेद की आवश्यकता और महत्व दोनों ही रहे है और आज भी आयुर्वेद का महत्व उतना ही है। आयुर्वेद विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति में से एक है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में हमें विज्ञान, कला और चिकित्सा के अनुपम दर्शन होते है। भारतीयों वेदों के आधार पर भगवान धन्वन्तरि जी को आयुर्वेद शास्त्र का जनक माना जाता है। भगवान धन्वन्तरि जी देवताओं के वैद्य माने जाते हैं।

बता दें कि आयुर्वेद का विकास ऋषि च्यवन के कर कमलों के द्वारा संपन्न हुआ है। इनके अतिरिक्त फिर आयुर्वेद की विकास यात्रा में अनेकों महर्षियों में अपना अमूल्य योगदान दिया है। च्यवन ऋषि के उपरांत भारद्वाज जी ने आयुर्वेद के विकास की यात्रा को संभाला और फिर उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सा के दम पर दीर्घायु, सुखी, आरोग्य जीवन जीने के अमूल्य सूत्र प्रदान किये। आयुर्वेद के तीन मुख्य स्तंभ आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य को माना गया है। यह तीनों हमारे शरीर के दोषों के नियंत्रण में मदद करती हैं।

आयुर्वेद का महत्व असीमित है क्योंकि आयुर्वेद के बहुत सारे पहलू है और हम केवल एक ही पहलू को आधार मान कर चिकित्सा पद्धति तक ही सीमित रह गये है। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति न केवल स्वास्थ्य रक्षा, रोग निवारण अपितु प्राणी मात्र के कल्याण के लिए शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक चेतना को जागृत करता है।
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