हाई-फाई आंदोलन को वाई-फाई

शंभु सुमन / जगदीश पंवार

नई दिल्ली। जैसे-जैसे किसान आंदोलनकारियों की केंद्र सरकार पर पकड़ मजबूत होती जा रही है, वैसे-वैसे पूरा आंदोलन एक मजमे में भी तब्दील होता दिख रहा है। सरकार के साथ छठी बार पांच घंटे की बैठक में महज दो बातों पर ही सहमति बन पाई। चार जनवरी को फिर से सरकार और किसान संगठनों के बीच मुख्य मांगों पर चर्चा होगी। यानि कि अगली तारीख के फैसले तक हजारों आंदोलनकारी किसान दिल्ली के सिंघु और टिकरी बाॅर्डर पर डटे रहेंगे।

हरियाणा एवं पंजाब के किसानों, जिसमें कुछ उत्तर प्रदेश के किसान भी हैं, के इस शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन से भले ही 2011 के भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन की याद ताजा हो गई हो, लेकिन यह तमाशा भी बन गया है। दिल्ली से बाहर के लोगों के मन में कुलबुलाने वाला सवाल है कि आखिर वे महीने भर बाद भी सर्दी के 1 से 4 डिग्री सेंटीग्रेड में मोर्चे पर कैसे डटे हुए हैं? इसके जवाब कई रूप में दिए जा रहे हैं।

आंदोलनकारी किसानों में 18 साल के जवान से लेकर 80 साल तक के बुजुर्गोंं  की बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल हैं। वे अनिश्चितकालीन धरने पर जमे हुए हैं। उनकी मांग नए कृषि कानून को हटाने की  है। एनडीए सरकार जबतक उसे हटा नहीं लेती तबतक वे डटे रहेंगे। हजारों की संख्या में आंदोलनकारी किसानों ने पूरी तैयारी के साथ हाइवे के किनारे डेढ-दो़ किलोमीटर तक लगी ट्रैक्टरों की ट्रालियों में बने अस्थाई टेंट को ही आशियाना बना लिया है।  

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वहां काफी चहल-पहल रहती है। जगह-जगह लंगर लगे हैं। खाने-नाश्ते का पूरा इंतजाम है। रोशनी है, रौनक है। पंजाब के विभिन्न इलाके से आए महिलाएँ और पुरुष सेवादार की भूमिका निभा रहे  शुरुआत में आग को घेरकर खाना बनाने की कोशिश की गई। बाद में उन्होंने रोटियां सेंकने, खिचड़ी पकाने, काॅफी बनाने, गन्ने का रस निकालने आदि की मशीनें लगा ली हैं। सरसो की साग और मक्के की रोटियों,कृ आलू पराठें के अलावा पिज्जा-बर्गर भी है। गांव से लाए गए वाटर टैंक हैं, तो तूंबा बजाकर ऊधम सिंह के बहादुरी के कारनामों के गाने गाए जा रहे हैं।  

दूसरी तरफ प्रदर्शनकारियों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए कँटीले तार बिछा दिए गए हैं। बालू से भरे ट्रक खड़े हैं और हाथों में बंदूक उठाए वर्दी पहने सैनिक गश्त लगा रहे हैं। उनके हाथ में आँसू गैस के गोले हैं। लेकिन, टिकरी और सिंघु बाॅर्डर पर दूसरी ओर किसान भी झंडे लहरा रहे हैं। आंदोलन स्थल पर सैलून, वाशिंग मशीन में कपड़े धोने और पानी गर्म करने के इंतजाम से लेकर अस्थाई स्टोर, कम्यूनिटी सेंटर, जिम और सैलून खोले गए हैं। एक तरह से किसान आंदोलन लोकतंत्र   एक नए रंग में रंगा हुआ दिख रहा है, जिसमें उत्सव जैसा माहौल है। एक नए रंग का ‘विरोध उत्सव’ बन गया है, जहां किसानों के समर्थन में उमड़ने वालों में अंदोलन के बदले स्वरूप को नजदीक से देखने और अनुभव करने वाले भी हैं।  परिवार समेत बच्चे घूमने आ रहे हैं। आंदोलन स्थलों पर कहीं कोई तनाव नहीं, कोई हिंसा की बात नहीं है। सत्ता के विरोध का यह गांधीवादी तरीका सभी को लुभा रहा है। विरोध का एक शालीन तरीका नजर आ रहा है। महिला आंदोलनकारियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लाठी लिए युवाओं पर है।

अब यहाँ प्रतिरोध के पिन्ड यानी गाँव बन गए हैं।स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं, लेखक, कवि, सिंगर का लगातार आना-जाना बना हुआ है। देश की मशहूर शख्सियतों का भी आना जारी है। उनमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल  तक शामिल हैं। पुस्तकों की स्टाल सजी हैं। वहां सांस्ड्डतिक एकता की झांकी देखी जा सकती है। जाति, धर्म भूलकर कानून विरोधी नारे लगा रहे हैं। इन सब को कवरेज करने वालों में संस्थानिक मीडिया, सोशल मीडिया, यूट्यूबर से लेकर फिल्मकारों का भी जमावड़ा लगा हुआ है।

हालांकि आंदोलनकारियों ने सेटेलाइट मीडिया के  अधिकतर चैनलों को गोदी मीडिया का नाम देकर उसका बहिष्कार कर दिया है। उनकी  पसंद सोशल मीडिया बन गए हैं और ट्राॅली टाइम्स नाम का अपना ही अखबार निकाल लिया है। प्रतिरोध से पैदा इस अखबार में यहाँ आए लोगों की कहानियाँ हैं। विरोध प्रदर्शन की जानकारियाँ हैं। किसानों या कैंपेन करने आए छात्र-छात्राओं के बनाए चित्र और उनकी लिखी कविताएँ हैं। समर्थकों और सहयोगियों की लिखी स्टोरी हैं। जो भी कुछ लिखना चाहता है, उसे इसमें जगह मिल रही है।

18 दिसंबर के पहले अंक में जसविंदर की लिखी स्टोरी ‘स्वेटर’ छपी थी। इसमें बीबी कही जानी वाली एक महिला की कहानी थी, जो हर दिन इस उम्मीद में स्वेटर बुन रही थी कि एक दिन में इसे पूरा कर लेंगी और फिर दूसरा शुरू कर देंगी। लेकिन, गाँव में सूचना का ऐलान करने वाले शख्स ने आवाज लगाई कि अगर उनके गाँव की कोई महिला विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेना चाहती हैं तो पहले गुरुद्वारे में हाजिरी लगाएँ। बीबी ने स्वेटर बुनना छोड़ दिया और गुरुद्वारे की ओर चल पड़ीं। लोग उन्हें मनाते रहे कि आपको अस्थमा है। बहुत ज्यादा ठंड भी है। लेकिन वह नहीं मानीं। सीधे गुरुद्वारे की ओर से चल दीं।

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उनकी बहू ने मजाक किया। बीबी आपका स्वेटर अब अधूरा रह जाएगा। सास ने पलट कर जवाब दिया, ‘अगर विरोध जताने नहीं गई तो अब तक जो बुना था, उसका बहुत कुछ उधड़ जाएगा- इसमें मेरे बेटे का सपना और तुम्हारे पिता की जोड़ी गई जमीन भी शामिल है।’

एक डेंटिस्ट, एक फिजियोथेरेपिस्ट, एक फिल्म राइटर, एक वीडियो डायरेक्टर, दो डाॅक्यूमेंट्री फोटो आर्टिस्ट और एक किसान ने मिलकर ट्राॅली टाइम्स निकालने के आइडिया पर काम करना शुरू किया था। अब इसके मास्टहेड के नीचे भगत सिंह का एक कोट लिखा है,

‘इंकलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।’

अपने प्रदर्शन के शुरुआती दिनों में किसान मेनस्ट्रीम मीडिया में इसकी इकतरफा कवरेज से परेशान थे। उन्होंने कवरेज के लिए आए मेनस्ट्रीम मीडिया संस्थानों के कुछ पत्रकारों का विरोध शुरू किया। वे तख्ती लेकर उनके खिलाफ नारे लगाते दिखे। इन तख्तियों पर लिखा था- ‘गोदी मीडिया वापस जाओ।’  जब यह आंदोलन शुरू हुआ था तो सिंघु बाॅर्डर और टिकरी में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं थी। किसानों को खुले में जाना पड़ रहा था। यह देख कर स्थानीय लोगों ने अपने घरों के शौचालय उनके लिए खोल दिए। लेकिन, कुछ ही दिनों में वहाँ मोबाइल शौचालय पहुँच गए। हरियाणा नगर निगम ने वहाँ ये टाॅयलेट लगाने शुरू किए।

इसके अलावा कई एनजीओ ने वहाँ पोर्टेबल शौचालय और पीने के पानी की व्यवस्था शुरू की। किसानों के लिए टेंट भी लगाए गए। सिंघु बाॅर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों को दिल्ली सरकार फ्री वाई-फाई की सुविधा प्रदान करने की घोषणा करने के बाद उनका आंदोलन और भी हाई-फाई बन गया है।  केजरीवाल सरकार ने सिंघु बाॅर्डर पर किसानों को नेटवर्क की समस्या का सामना करना की समस्या को देखते हुए किया है। प्रदर्शनकारी किसानों में महिलाएं भी शामिल हैं। इसके अलावा दिन में कई व्यक्ति पूरे परिवार के साथ किसानों से मिलने आते हैं। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बाॅर्डर पर सुरक्षाकर्मियों की एक कंपनी महिला पुलिसकर्मियों की भी तैनात है। पुलिस के लिए महिलाओं की तैनाती यहां जरूरी है।

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